दोहा
पियूष दायिनी है ये , करुणा के अवतार ।
ममता स्नेहिल जिंदगी, माँ जीवन आधार ।।
नारी के सम्मान से , सुखी होता परिवार ।
नारी को भी है सभी , नर जैसा अधिकार ।।
प्रेम समर्पण त्याग से , बनता है परिवार ।
विश्वास सुमन को सींच , दो आपस में प्यार ।।
नारी से पूर्ण जगत , पाता है आधार ।
उमा , रमा के रूप में , करती है यह प्यार ।।
जीवन कैसे जी रहा , देखो वह मजदूर ।
भूखे प्यासे जा रहा , होकर वह मजबूर
कर्म भाग्य इंसान का, लड़े भला अब कौन ।
महामारी के आगे , सभी खड़े हैं मौन ।।
निक्की शर्मा रश्मि
मुम्बई
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (22-06-2020) को 'नागफनी के फूल' (चर्चा अंक 3747)' पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव