Type Here to Get Search Results !

कोशिश, एक कथा; सोनी कुमारी, मुंशी प्रेमचंद जन्मोत्सव-


लघु कथा... ✍️✍️

कोशिश - एक कहानी 
हम कहते हैं सिर्फ भलाई का नाम और जब बारी आती है तो ना जाने कहां से संकोच होती है! बात उस वक़्त की की है 'मैं दोपहर के समय बहुत ही तपती धूप में मैं बाजर से गुजर रहीं थीं! अचानक मेरी नज़र एक मासूम बच्चे पे पड़ी, मैंने देखा कि वो दुकान के पास धूप में सोया हुआ और रो रहा था! मैं वहां गयी तो दुकान के पास कोई नहीं बस बच्चा लेटा हुआ था.. हालांकि आसपास दुकान थे लेकिन जिस दुकान मंडी के पास बच्चा रो रहा था वहाँ कोई नहीं था... मैं वहाँ गयी, मुझे डर भी था कि मैं बच्चे को हाथ लगाऊँ और कोई मुझपर इल्ज़ाम लगा दे, फिर सोच रहीं मैं अगर पास हू तो बच्चा तो रोना बंद कर सकता है! मैं अजीब कशमकस में थी! हिम्मत बाँध के मैं वहाँ खड़ी हुई और मैंने बच्चे को देखने और चुप करने के बहाने सब्जी देखने लगी और पूछने लगी 'दुकान दार कहां है.... दस मिनट बाद दुकान में देखी एक औरत आयी मैंने पूछा "बहन सब्ज़ी कैसे दिया' उसने बहुत ही करुणा रूप से मुझे देखा और बोल पड़ी... एक मिनट रुक सकते हैं बहन मैं अपना बाबु को पानी पीला दु! मुझे बहुत ही दया आयी और ऐसा लगा कि.... सारे धन दौलत एक तरफ माँ की ममता को कोई भी खरीद नहीं सकता! मैंने बेवजह ही सब्जी ली उनके दुकान से और बात करने की कोशिश की!पहले तो वो मुझसे बात करने से कतराने लगी क्योंकि मैंने सवाल ही उनसे दर्द कुरेदने वाला कर दी थी फिर मैंने इतना तो किया  कि उनका मन हल्का कर दिया...! मैंने उनसे सवाल भी पूछे, "बहन आप अपने बच्चे को छोड़ कर कहा चली गयी थी और दुनिया में ऐसे बहुत से कांड होते रहते हैं कोई आपका बच्चा ले जाता तो कैसे रहते" ? उसने बड़े ही मासूमियत से जबाब दिया... बहन ये मैं सब्जी मंडी में हू... यहां चार भाई जान बचाने वाले है जिस जगह रहती हू वहाँ तो हर लड़की लूट जाय.....मैं अपने बाबु के लिए पानी लाने गयी थी, उसने सड़क के किनारे इशारा करते हुए कहा" बहन हम यही रहते हैं बगल में पुल के नीचे और मैं ही नहीं बहुत सारे बेघर जिनका तो नाम कोई आधार कार्ड से भी ना जुड़ा हो! सड़क पर आते जाते बहुत देखते हैं पर कोन है कि मदद करे! दिन भर इधर उधर जान छुपाये बैठती हू.. और रात को हवसियों का शिकार हो जाती हू..... मेरा पति नहीं है फिर भी माँ हू....! वो बोलते हुए रोने लगी मुझे बहुत बुरा लगा और अफसोस भी हुआ... मैंने उसे धैर्य बंधाया और मैंने उनके दर्द को देखा बहुत ही गहराई से और मैंने अपने घर उसे काम करने के बहाने अपने घर में रखा !

सोनी कुमारी
पूर्णिया, बिहार

Post a Comment

7 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Unknown said…
Very helpful story didu😘😘😘😘😘👌👌👌👌👍👍👍❤❤❤❤❤
Unknown said…
👌👌👌💯💯
Unknown said…
बहुत ही अच्छा और एक शिक्षाप्रद कहानी लगी
Unknown said…
Bhout sundar 👌👌👌👍👍👍💯💯💯
PKy said…
बहुत खूब सोनी जी जबरदस्त 👌👌👌👌👈
Survi kumari said…
Bohot lajabab soni ji