"सच्ची-भक्ति"(लघुकथा)
अवनी और तारा सावन में झूला झूल रही हैं। तारा अवनी की कामवाली (सन्तो)की बेटी है। तारा का अपनी अम्मा के सिवा कोई नहीं है। अवनी और तारा दोनों एक ही उम्र की हैं। जब सन्तो अवनी के यहाँ काम करने आती है तो वह तारा को अपने साथ ले आती है।तब तारा और अवनी दोनों साथ-साथ धमाचौकड़ी मचाते हैं। दोनों साथ-साथ खेलते हैं,लेकिन अवनी को लगता है कि तारा आज कुछ उदास है। अवनी तारा से उदास होने का कारण पूछती है लेकिन तारा कोई जवाब नहीं देती है और गुम-सुम होकर चली जाती है। तब अवनी ने कुछ देर सोचा और वह अपनी मम्मी के पास जाकर ये बात बताती है। अवनी की मम्मी ने तारा को बुलाकर बड़े प्यार से उससे उदासी का कारण पूछा,तो तारा ने झिझकते हुए उनसे बोला कि सावन का महीना शुरु हो गया है। लेकिन मैं और अम्मा जिस छोटे से कमरे में रहते हैं उसमें कई जगह से छत से पानी टपकता है। उसने रोते हुए कहा कि अब हम उस कमरे में अपना गुजारा कैसे करेंगे। फिर मम्मी ने हँसते हुए तारा से कहा,अरे बस इतनी सी बात तुमने पहले क्यों नहीं बतायी। जब तक सावन का महीना चल रहा है तब तक तुम और तुम्हारी अम्मा हमारे साथ रहोगी।ये सुन तारा बहुत खुश हुई। तब तारा को खुश देखकर अवनी ने मम्मी को पुच्ची देते हुए कहा,मम्मी आप कितनी अच्छी हो। तब मम्मी ने हँसते हुए कहा-बिटिया सावन का महीना चल रहा है,यदि हमारे कारण किसी को खुशी पहुंचती है तो भोलेनाथ बहुत प्रसन्न होते हैं और यही उनके प्रति हमारी सच्ची भक्ति भी है। फिर क्या था अवनी ने खुशी से झूमते हुए कहा कि मैं भी सबकी सहायता करूँगी और भोलेनाथ की सच्ची भक्ति करूँगी। फिर अवनी और तारा हँसते-मुस्कुराते साथ-साथ खेलने चली गयीं।
डाॅ०विजय लक्ष्मी
काठगोदाम,उत्तराखण्ड
Shobhanam!
Keep it up!!