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मुंशी प्रेमचंद महोत्सव, लघुकथा, दो बहनें:-सुषमा सिंह


दो बहनें

-सुषमा सिंह

 डॉक्टर विश्ननोई  शहर के जाने माने  चिकित्सक । प्राईवेट किल्निक भी चलाते हैं । दिन रात मरीजों से घिरे रहते। मरीज़ इन्हें देवता समान समझते ।

          निधि और निशा बला की खूबसूरत इनकी दो बेटियां  हैं , पिता की लाडली । सम्पन्नता की झलक उनके तौर-तरीकों और रहन सहन से साफ़ दृष्टिगोचर होता ।
डॉक्टर साहब अपनी बेटियों को दिलोजान से चाहते । अच्छे स्कूल में दाखिला  से
लेकर स्वीमिंग , डांसिंग  भी    सिखलाए जाते थे । 
           समय सरकता गया दोनों अब दसवीं कक्षा में पहुंच चुकी  थीं ।  बढ़ती उम्र के साथ साथ बचपन की निश्छलता भी जाती रही । अब  उनमें अपनी रईसी को लेकर थोड़े गर्व के भाव आने लगे थे ।
              ऋषभ उनका सहपाठी था जो कि साधारण परिवार से था , जिसका ये दोनों बहनें सदैव मजाक बनाया करती थीं। लेकिन शांतचित्त ऋषभ कभी कुछ नहीं बोलता । वैसे भी उसे अपनी और इन दोनों की औकात की जानकारी थी ।ऋषभ की मां दूसरे के घरों में खाना बनाती और अपने इकलौते बेटे का भरण-पोषण करती थी । पिता नहीं थे ।ऋषभ को कोई कुछ कहे फर्क नहीं पड़ता  था ।वह खुद भीअध्यापन (ट्यूसन) करके अपना खर्च निकालता था।
     ऋषभ परीक्षा में हमेशा अव्वल रहता। मास्टर जी उसे बहुत प्यार करते । फिर भी समाज रसूख वालों का है ।एक बाई के बेटे को मात्र इस वजह से कि वह पढ़ाई में बहुत अच्छा है , अपने बूते पढ़ाई करता है , सम्मान मिलना नामुमकिन था ।
                           खैर बोर्ड की परीक्षा समाप्त हुई ।आज उसका परिणाम आया।ऋषभ पूरे प्रदेश में अव्वल आया।अखबार , रेडियो , टीवी पर समाचार में फोटो के साथ उसका नाम आया साथ ही उसका साक्षात्कार भी प्रसारित हुआ ।
         आज उसे सम्मानित करने के लिए सम्मान समारोह आयोजित किया गया था। समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध डॉक्टर, डॉ० विश्नोई को आमंत्रित किया गया था। उनके साथ उनकी दोनों बेटियां भी थीं । सम्मान पत्र प्रदान करने के पश्चात डॉक्टर साहब ने ऋषभ को ढेर सारी शुभकामनाएं दीं । ये नजारा देखने के पश्चात दोनों बहनें अपनी नजरें नीचे किए हुए  थीं। शायद वे माफी मांग रही थीं। ऋषभ शान्तचित्त मुस्कुरा रहा था ।

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30 Comments
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Unknown said…
यथार्थ को परिभाषित करती और कुलीन समाज के संकीर्ण सोच को आइना दिखाती हुई आला दर्जे की लघुकथा
Anonymous said…
आधुनिक जीवन की कडवी सच्चाई
J N Singh said…
सुषमा, आपकी ये लघुकथा आज के समाज को दर्पण दिखाती है। भविष्य की शुभकामनाओं सहित
Kumar Saurabh said…
अति उत्तम सूक्ष्म कथा। गागर में सागर को चरितार्थ करती। आशा है की भविष्य में आपकी लेखनी से और ऐसी रचनाएं आती रहेंगी।
Kumar Saurabh said…
सुषमा, लघुकथा का प्रबोधन सामाजिक परिवेश की सत्यता को प्रतिबिंबित एवम् निरूपित कर रहा है। शुभकामनाओं सहित।
the way my mom loves the poetry and express it in the way of writing express your love toward Indian culture and it's shows my grandpa inside u which makes me more proud maa❤❤❤
Unknown said…
कहानी बहुत अच्छी लिखी है आपने परन्तु क्षमा करें मुझे इस कहानी का शीर्षक न्यायोचित नहीं लगा ।
Unknown said…
आपकी ये लघुकथा आज की पीढ़ी को ये अच्छी प्रकार से बता रही है कि सफलता के लिए अंतिम उपाय अपना परिश्रम ही होता है
Rakhi singh said…
Samaj ko bimb dikhati ye laghukatha. Bahut hi sunder
Rajesh Singh said…
आधुनिक समाज से प्रेरित आपकी लघुकथाबहुत अच्छी है। कथा की शैली, और गति बहुत सुंदर है।
Unknown said…
दिल को छू लेने वाली रचना, समाज का सही चित्रण 😍
Anonymous said…
Heart touching story
Anonymous said…
Good story
Amrita said…
Very well written
Sushma Singh said…
सभी शुभचिंतकों को हार्दिक धन्यवाद
Unknown said…
Bhut khusurat story Sushma keep going
Unknown said…
Very well presented. ✌
Anonymous said…
Very well written. Keep going mausi🙏
Anonymous said…
Well written🙏
Rakhi Singh said…
Well written
बिपिन said…
बहुत ही सुंदर कथा। दिल को छु लेने वाले रचाना।
नूपुर said…
दिल को छु लेने वाली रचाना। बहुत ही सुंदर कथा।
Anonymous said…
Nice 👍🏻
Saurabh Singh said…
ऋषभ का चरित्र कितना गहरा है। वह बहुत ही भरोसेमंद है, और पूरी तरह से वास्तविक लगता है। अद्भुत लेखन! मैं आपके लेखन की सराहना करता हूं।
Anonymous said…
Bohot hi sundar .
Santosh said…
Very nice.
Harsh said…
Nice one
Unknown said…
Rishabh jiwant pratit hota hai