ब्रम्हभोज
सुबह-सुबह गांव में कुछ ज्यादा चहल-पहल था।सभी लोग एक तरफ भागे जा रहे थे।मैंने भी जानकारी प्राप्त करना चाहा कि आखिर हुआ क्या?पूछने पर पता चला कि रघुनी के पिता की मृत्यु हो गयी।वैसे गांव में ज्यादा मातम नहीं था, क्योंकी उनकी उम्र लगभग 85 वर्ष हो चुका था।और महीनों से उनकी तबियत भी खराब रह रही थी।इसे लेकर गांव के लोग खुश भी थे,की चलिए एक दिन विशेष खाने पीने का व्यवस्था हो गया है,यानी "ब्रम्हभोज"।
मैंने भी रघुनी को संतावना देने उसके घर पहुंच गया,ताकि अंतिम दर्शन भी हो जाये।वहाँ का माहौल थोड़ा गमगीन था।सभी लोग उनके जीवन के बारे में चर्चा कर रहे थे।वैसे आदमी अच्छे थे,मेहनती थे,ईमानदारी तो उनका गहना था।रघुनी तो पिता को खोने से दुःखी था,लेकिन विशेष बात चीत से पता चला कि वह ज्यादा दुःखी नहीं है।क्यों कि उनके इलाज में 3-4 हजार अतिरिक्त खर्च बढ़े हुए थे घर मे।रघुनी मेहनत मजदूरी करने वाला व्यक्ति था,इससे घर चलाने में काफी दिक्कत हो रहा था।उसके पास थोड़ी जमीन थी जिसे वह मजबूरन पिता जी के इलाज के लिए हिं गिरवी रख दिया था।
रघुनी ने पूरे विधि-विधान से अपने पिता का दाह संस्कार किया।लेकिन उसके दिमाग मे एक बड़ा प्रश्न खड़ा था,जो एक पहाड़ के समान था ,ओ था "ब्रम्हभोज"।
वैसे ब्रम्हभोज से हमलोग अपरिचित नहीं हैं,हिन्दू धर्म में व्यवस्था है कि किसी आदमी की मृत्यु के बाद बारहवें दिन कम से कम पांच ब्राम्हणों को खिलाया जाता है,दान दिया जाता है और पूरे गांव के लोगो को भी सामूहिक भोज दिया जाता।और अभी के समय मे लगभक इसमे 50 हजार रुपये खर्च होंगे।और रघुनी के पास इस समय फूटी कौड़ी भी नहीं है।इसीलिए वह ब्रम्हभोज नहीं करना चाहता है।
इसकी जानकारी जब गांव के लोगो को हुई,तो वे दुश्मन की तरह रघुनी पर टूट पड़े।कहने लगे इसे तो समाज से निकाल देना चाहिए,यह हमारे धर्म को नष्ट कर देगा,इसे गांव से भगा देना चाहिए,कुछ लोगों ने पंडित जी से सलाह लेने के लिए कहने लगे।गांव का कोई भी व्यक्ति रघुनी के इस निर्णय का साथ नहीं दिया।वह पूरी तरह टूट गया और लोंगो के दबाव पर उसने अपने निर्णय को बदल लिया।अब वह पैसों का व्यवस्था करने में लग गया,लेकिन उस गरीब मजदूर को इतनी बड़ी रकम कौन दे सकता है?अंततः उसने गिरवी रखी जमीन को बेच दिया,जिससे उसे 60 हजार रुपये प्राप्त हुए।अब इतने में तो ब्रम्हभोज आसानी से पार हो जाएगा।
अब वह दिन भी आ गया जिसमें उसने ब्राम्हण लोगो को भोज दिया, दान में गाय,बिछावन,चौकी,सहित कई समान कुछ नगद राशि भी दिए।पूरे गाँव को खूब चाव से खिलाया,इसतरह उसके लगभग सारे पैसे खर्च हो गए।गांव के लोंगो ने खूब मजे से ब्रम्हभोज का आनन्द लिए।और रघुनी समाज के बारे में सोचते हुए ,अपने भभिष्य को झांक रहा था।
समुन्दर सिंह
हसपुरा,औरंगाबाद,बिहार
9534158615
जो ब्रह्मभोज देने में सक्षम नहीं है उनपर से ये सामाजिक दबाव हटना चाहिए।
ये लघु कहानी समाज में फैले कुरीतियों को दर्शाता है।