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मुंशी प्रेमचंद महोत्सव, लघुकथा, अपना कोई नहीं-रीतु प्रज्ञा


अपना कोई नहीं (कहानी)

मुन्नी दादी सब कुछ छोड़कर ससुराल से मठ पर रहने आयी थी।बाबा नागेश्वर जी से प्रभावित होकर विधवा मुन्नी दादी मठ पर रहने आयी थी।ससुराल के सभी संपत्ति बेचकर सारा धन बाबा नागेश्वर जी को अर्पित कर दी थी।लेकिन आज एक-एक रूपया के लिए तरस रही है।मठ पर कुछ दिन तो उसका जीवन भगवत भजन ,पूजा में बहुत भक्तिमय वातावरण में बिता।पर धीरे-धीरे उसके साथ अभद्र व्यवहार होने लगा।वह बेचारी कहीं की नहीं रही।दिल पर पत्थर रखकर मठ के वातावरण के अनुकूल अपने आप को ढालने की कोशिश करती रही।बाबा नागेश्वर अपनी माधुर्य चपलता से उससे अपना खूब सेवा करवाते थे।कभी-कभी बिस्तर पर भी साथ देने को कहते।लेकिन वासुदेव भक्त मुन्नी दादी मना कर देती । वासुदेव को स्मरण कर भजन गाने लगती।तब जाकर बाबा उसे छोड़ देते।एक दिन तो बाबा नागेश्वर ने हद कर दी।"तुम्हें मेरे साथ आज हम बिस्तर होना ही होगा।देखता हूँ ,तुम कैसे मेरे साथ बिस्तर पर नहीं सोती हो?" बाबा नागेश्वर उसके हाथ पकड़ कर कमरे में ले जाने लगे।
 " मुझे छोड़ दीजिए। मैं आपकी हाथ जोड़ती हूँ।मुझे वासुदेव जी की भजन एवं सेवा में रमने दीजिए । "रोती हुई मुन्नी दादी बोली।
 " जाओ मुन्नी, बाबा की इच्छा पूर्ति करने में कोई पाप नहीं है। मैं और मेरी तरह अन्य महिलाएं भी यहाँ रहकर भजन किर्तन के साथ बाबा नागेश्वर जी का सेवा करती है।" मठ की प्रधान सेविका बोली।
 बाबा नागेश्वर मना करने पर भी उसे जबरदस्ती कमरे में ले जा रहे थे।तभी एक साँप उनको डंस लिया।बाबा मूर्छित हो गए।पूरे मठ में शोर हो गया।उन्हें तत्काल एक तांत्रिक के पास ले जाया गया।काफी झाड़ फूंक और मंत्र पढने के बाद बाबा नागेश्वर को होश आया।तब समझ गए कि मुन्नी दादी के साथ वासुदेव सहाय रहते हैं।लेकिन उस दिन के बाद मुन्नी दादी नौकरानी की तरह मठ पर रहती थी।मठ का सारा काम करके भगवत भजन बाद एक ही समय भोजन करती थी।उनकी आवाज में मिश्री घुली थी।आस पास के सभी भक्तजन उनके भजन सुनने आते ।सभी खुश होकर रूपये देते।वह रूपया भी मठ के अन्य साधु या औरतें ले लेती।" तुम रूपया लेकर क्या करोगी? यहाँ तुम्हें सब कुछ मिल ही रहा है।" एक औरत बोली।
    धीरे-धीरे उनकी तबीयत बिगड़ने लगी।कभी मठवासी दवा ला देते तो कभी नजर अंदाज कर देते ।असहाय मुन्नी दादी फिर भी  मठ का सारा काम तन्मयता से करती और भगवत भजन में लीन रहती। लेकिन कुछ दिनों से उनकी तबीयत बहुत खराब है।उन्हें बुखार और खाँसी हैं।कोई दवा लाकर नहीं देता है।वह एक-एक रूपया के लिए मोहताज हो गयी हैं ।किसी से दवा नहीं मंगा पाती हैं।
     " मरने दो इसको ।यह अब किसी काम की नहीं रही।" बाबा नागेश्वर हँसकर बोलते हैं।
     " आप किसकी बात कर रहे हैं। किसे मरने के लिए छोड़ दिए हैं।  मुन्नी दादी कहाँ है?उनकी मधुर आवाज सुने बहुत दिन हो गए । " एक सज्जन बोला जो वासुदेव जी की पूजा अर्चना करने आया था।
    एक औरत उसे मुन्नी दादी से मिलवाती है।वह मुन्नी दादी को अस्पताल ले जाता है।मुन्नी दादी जल्द ही ठीक हो जाती है।लोगों की आशंका भी दूर हो गयी कि उन्हें कोरोना है।जाँचने बाद डाक्टर कोविड-19 निगेटिव बताता है।उन्हें बुखार और खाँसी हो गयी थी।" बेटा,  मुझे अब वासुदेव जी की शरण में जाने दो।मठ पर पहुँचा दो।"मुन्नी दादी बोली ।
   "आप वहाँ नहीं जाएंगी ।वहाँ लोभी भेड़ियों का राज है।आप जैसी निश्चल भक्त के लिए वह स्थान उपयुक्त नहीं है।" सज्जन व्यक्ति बोला।
    वह फफक कर रोने लगी।"मुझ अभागीन को कौन सहारा देगा।अब मैं कहाँ जाऊँ।" 
    आप मेरे साथ चलिए।मेरी छोटी सी कुटिया में एक मंदिर है। वहाँ चलकर भक्ति रस से हम सबको सराबोर कर दीजिए।इस बेटे को सेवा करने का मौका दीजिए। " सज्जन व्यक्ति बोला। वह हर्षित होकर सच्चे मन से मुन्नी दादी को अपने घर लाता है।मुन्नी दादी अब बहुत खुश है।

                     रीतु प्रज्ञा
             करजापट्टी,दरभंगा,बिहार
   स्वरचित एवं मौलिक
  20-07-2020

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