Type Here to Get Search Results !

महोत्सव, कथा, खुशी -डॉ नेहा इलाहाबादी


डाः नेहा इलाहाबादी दिल्ली
     🌴 9891105466🌴
  💃 मुंशी प्रेम चंद जयन्ती 💃
                  खुशी 
                 ******
दिसंबर का महीना कड़कड़ाती ठंड में  मैं अपने परिवार के साथ घर जा रही थी। अपने 
घर के पास अचानक मेरी आँखों में आँसू भर आए साथ के लोगों को मैने कहा आप 
सब ऊपर जाओ मै आ रही हूँ।  कुछ समझ नहीं आया क्या करूँ।। सोचती रही दिल नहीं माना मैने तय कर लिया बिना मिले नहीं जाऊँगी। 
                 वह गरीब कूरियर वाला जिसके शरीर पर एक फटी शर्ट और एक फटास्वेटर केसिवाय कुछ नहीं था । पैरों की चप्पल इतनी टूटी थी कि वह चल नहीं पा रहा था। 
                   ठंड के मौसम में वह ठिठुर रहा था  यह देख कर मैं अपने आप को रोक 
नहीं पाई उसे आवाज़ देकर पास बुलाया और पूछा आपने और भी
गरम कपड़ा क्यूँ नहीं पहना है ।     यदि बीमार पड़ गये तो तुम्हारे घर
परिवार का बोझ कौन उठाएगा कभी सोचा है। पैरों से चला नहीं 
जाता है। 
   आपसे एक बात कहुँ आप मुझेअपनी बड़ी बहन समझो तो मै आपकी कुछ मदद कर सकती  हूँ ज्यादा कुछ तो नहीं है पर एक जोड़ी नये चप्पल व एक शाल ज़रूर दे
सकती हूँ  । इतना  सुनते ही उसकी आँखों से अश्रु धारा बहने लगी मैं तुरन्त ऊपर से चप्पल व एक शाल लाकर दिया उसे पाते ही उसकी आँखों में वो चमक नज़रआई जिसे देखने के लिए मेरा दिल बेकरार था । 
                 यह मंजर देख कर मेरी  भी आँखें डबडबा गईं। मुझे आज ऐसी खुशी मिली थी जोमुझे जिंदगी में कभी नहीं मिली। वह जाते 2 मुड़ मुड़ मुझे देखता रहा। 
        ये वो  खुशियाँ हैं जो अरबों दौलत  से भी नहीं खरीदी जा सकती हैं । इसका एहसास आज
 हुआ था मुझे जिसे लफ्जो़ में बयान नहीं किया जा सकता है। 
        ख़ुशी ढूँढी़ जाती है खरीदी नहीं।        ✍️♻️✍️
         सर्वाधिकार सुरक्षित

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.