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मुंशी प्रेमचंद महोत्सव, लघुकथा, गिरगिट, अंजना सिन्हा


 लघुकथा
 -गिरगिट
 'फाँसी दो.....फाँसी दो
"बलात्कारियों को फाँसी दो"
"नहीं सहेंगे....नहीं सहेंगे...
बेटियों पर अत्याचार नहीं सहेंगे"
काफी लंबा जुलूस था।युवा लड़के लड़कियों ने बाहों में काली पट्टियाँ बाँध रखी थी ।सभी के हाथ में तख्तियाँ थी,जिसमें नारे लिखे हुए थे।आक्रोश उनके चेहरों से झलक रहा था।
"बहुत बुरा हुआ"एक नौजवान नें कहा।
उसके हाथ में जो तख्ती थी उसमें लिखा था,"यत्र नारयस्ते पुजयन्ते रमन्ते तत्र देवता"
दूसरे नें कहा-"बलात्कार के बाद शव को क्षत विक्षत करना"उफ्फ!
"दरिन्दे ही थे "
"इन्हें तो फाँसी ही होनी चाहिए"
" चौराहे पर फाँसी दी जानी चाहिए,ताकि लोगों में खौफ हो"
तभी पहले यवक नें कहा,"सामनें देख"
"क्या है ....?
"वह नीली शर्ट वाली लड़की"
"अरे हाँ"
"क्या मस्त माल है यार"
"बिलकुल"
"चलो आगे चलते हैं"
दोनो भीड़ में जगह बनाते हुए उस लड़की की ओर बढ़ गए।भीड़ जोर जोर से नारे लगा रही थी
"हमें न्याय दो,स्त्री को सम्मान दो।
          अंजना सिन्हा
          शिक्षिका
          एम ए,(हिन्दी)बीएड
         आकाशवाणी राँची के गुलदस्ता कार्यक्रम में पूर्व में कई वर्षों तक कविता वाचन।

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13 Comments
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Unknown said…
वास्तव में हमारे समाज के गिरगिटियापन की वास्तविकता को आईना दिखाती हुई एक शानदार कविता, बधाई एवं शुभकामनायें Mam
Unknown said…
वास्तव में हमारे समाज के गिरगिटियापन की वास्तविकता को आईना दिखाती हुई एक शानदार कविता, बधाई एवं शुभकामनायें Mam
Unknown said…
Bohot acchi kahani hai
समाज मे फैली अमानवीय एवं अनैतिक आचरन का सही समायोजन किया गया है। कुछ लोगों द्वारा अपने स्वार्थ को चमकाने का सही समय देख वस्तुस्थिति को दिगभ्रमित करने का मौका का इंतजार रहता है। सही मे आज भी नारी अबला ही है।
Unknown said…
नारी की वास्तविक स्थिति को दर्शाती है। भीड़ का "फायदा" उठाने की नीयत से इस तरह के प्रदर्शन में शामिल होने वालों की कमी नहीं
Unknown said…
यही समाज की सच्चाई है.
Unknown said…
यह केवल मात्र एक कथा ही नहीं है,इस कथा के माध्यम से समाज को एक संदेश जाता है कि समाज से दिखावा रुपी अशुरो को खत्म करना जरूरी है।
Unknown said…
जो लोग ऐसी ओछी सोंच रखते हैं उन्हें ये जरूर सोंचना चाहिए कि उनके घर में भी बेटी हैं बहु हैं। और तो और उनकी माँ भी एक स्त्री हैं। ऐसे लोग अपने माता पिता की परवरिश को शर्मसार करते हैं।
Unknown said…
Lajawab,akalpniye
Unknown said…
Very nice ...
Akanksha said…
कितना रोये, और कितना सहेगी वो ।
लड़े, तो मर्यादा लाँघती है वो।
ग़र आपबीती को अस्मत गँवाना कहना ही है,
तो पीड़ित नहीं, योद्धा बनेगी वो।

हमारे समाज की सोंच दोगलेपन की उदाहरण ही है ।
आवाज़ उठाना आसान है सोंच बदलना कठिन।
Sweta sinha said…
सच में मुखौटाधारी मानसिकता ही समाज में स्त्रियों की दुर्दशा का कारण है।
सटीक और यथार्थ चित्रण।
बेहतरीन लघुकथा।