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मुंशी प्रेमचंद महोत्सव, लघुकथा, हिम्मत नहीं हारा, आचार्य सूर्य प्रसाद शर्मा, निशिहर


आचार्य सूर्य प्रसाद शर्मा निशिहर-रायबरेली
  हिम्मत नहीं हारा (लघु कथा)
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राम खेलावन चाट का ठेला रामकृपाल चौराहे पर लगाए था ।चाट खाने के शौकीन लोगों की भीड़ एकत्र थी ठेले के इर्द -गिर्द । कुछ लोग खड़े खड़े खा रहे थे तो कुछ लोग बेंच पर बैठे हुए । कुछ लोग आर्डर देकर प्लेट पाने के इंतजार में थे । इंतजार करने वाले लोगों में से एक ने बगल वाले से कहा, "भाई साहब!यह चाटवाला राम खेलावन बी ए पास है ।गरीब का बेटा है । अभी तक सरकारी नौकरी नहीं पा सका ।आए दिन नौकरी हेतु आवेदन पत्र भेजता रहता है । घर में बड़ी मेहनत से तैयारी करता है और यह व्यवसाय भी ।
बगल में खड़े दो तीन और लोगों ने भी यह बात सुनी । उनमें से एक बोला, "मेहनती है ।अपना परिवार पाल रहा है इस धंधे से । नौकरी नहीं भी मिलेगी तो भी भूखों नहीं मरेगा ।"
तभी पास के ही एक व्यक्ति ने मुश्काते हुए कहा, " आप ‌लोग नहीं जानते ।यह टी जी टी भी किए हुए है । इंटरमीडिएट कालेज में शिक्षणकार्य करने के लिए इसका नियुक्ति पत्र आ गया है ।पंद्रह दिन बाद आप इसे ठेला लगाते हुए नहीं देखेंगे ।यह प्रवक्ता बन जाएगा ।यह लगन का पक्का है । अच्छी तनख्वाह पाएगा और मान बढ़ जाएगा । वर्षों से प्रयासरत रहा है ।क ई बार असफल होने पर भी हिम्मत नहीं हारा ।भाग्य ने साथ दिया।मेहनत का फल मिल गया है इसे ।"
रामखेलावन अपने काम में व्यस्त था ।उसे अपने विषय में कौन क्या कह रहा है,सुनने का समय ही नहीं था और न कोई चिंता ।चाट का चुकने वाले लोग रुपए देकर अपनी राह पकड़ लेते थे ।
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