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मुंशी प्रेमचंद महोत्सव,लघुकथा, संस्कार, रशीद अकेला


"संस्कार"
लघु-कथा 
लेखक -रशीद अकेला 

कक्षा में विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा दी जा रही है। 
शिक्षिका: पता है, बच्चों एक झूठ को छिपाने के लिए हमें 100 झूठ और बोलने पड़ते हैं। और हर बार उस झूठ को छिपाने के लिए एक नया झूठ बोलना पड़ता है। इसलिए हमें सदा सत्य बोलना चाहिए। वैसे भी झूठ एक ना एक दिन पकड़ा ही जाता है। 
       तभी कक्षा में किसी बच्चे का मोबाइल फोन बजता है। 
शिक्षिका : कौन मोबाइल फोन लेकर आया है? जल्दी खड़े हो जाओ। 
      सभी बच्चे एक दूसरे को देखते हैं। 
शिक्षिका: जिसके पास है, वो स्वंय खड़ा हो जाए, यदि मैं पकडूंगी तो उसे कड़ी सज़ा मिलेगी। 
     कोई भी खड़ा नहीं होता है। उसी समय विद्यालय के प्रधानाध्यापक गुजर रहे थे। उन्होंने ये सब देखा और विद्यालय के अन्य कर्मचारियों को बुलवाया और सभी की तलाशी लेने को कहा। 
       राहूल के पास से एक मोबाइल फोन मिलता है। राहूल बताता है कि वह गलती से लेकर आ गया है। वह कभी भी मोबाइल लेकर विद्यालय में नहीं आता है। 
शिक्षिका: झूठ मत बोलो। हम तुम्हारे माता-पिता को बुलाएंगे। 
राहूल: डरते हुए कहता है। "मैंने विकास से बात करने के लिए पिताजी से लिया था और जल्दबाजी में उन्हें देना भूल गया।" 
       तभी शिक्षिका को ध्यान आता है राहूल का तो साधारण फोन है। आवाज़ तो किसी मल्टीमीडिया फोन की थी। 
एक बार और तलाशी ली जाती है।इस बार कुछ और बच्चों के पास से मल्टीमीडिया फोन मिलते हैं। अगले दिन सभी के अभिभावक को विद्यालय में बुलाया जाता है। 
प्रधानाध्यापक: आपको पता है, आपके पीठ के पीछे आपके बच्चे क्या कर रहे हैं? कक्षा में मोबाइल फोन लेकर आते हैं। पढ़ने की उम्र में आपलोगों ने उनके हाथों में मोबाइल देकर उनका भविष्य स्वंय अपने हाथों से बर्बाद कर रहे हैं। 
राहूल के पिताजी: क्षमा चाहूँगा! गलती से मेरा बच्चा फोन लेकर विद्यालय आ गया। मैं एक साधारण व्यक्ति हूँ। मेरी इतनी हैसियत भी नहीं की बच्चों को मोबाइल फोन दिला  सकूँ। क्षमा चाहता हूँ। अगली बार से वो मोबाइल लेकर विद्यालय नहीं आएगा। 
प्रधानाध्यापक: इतना ही नहीं है। जरा इनके फोन के गैलेरी खोल के देखें आप। एक से बढ़के एक अश्लील सामग्री भरी पड़ी है। बच्चे बिगड़ेंगे नहीं तो क्या होगा। आए दिन समाज में जो घटनाएं हो रही है न, इसी का परिणाम है। 
जिस समय हाथों में किताबें होनी चाहिए। उनके हाथों में मोबाइल देकर और उनको खुली छूट देकर आप स्वंय  उनके चरित्र के पतन का कारण बन रहे हैं। 
समाज में आए दिन जो घटनाएं हो रही है न उसके जिम्मेवार सिर्फ आप जैसे अभिभावक हैं। बच्चा संस्कार अपने घर से सीखता है। 
          सभी अभिभावकों के सर शर्म से झुक जाते हैं। वहां कुछ नहीं बोल पाते हैं। बच्चों को घर में खूब डांटते हैं, समझाते हैं। कुछ अभिभावक मोबाइल छीन लेते हैं। कुछ मोह-माया में वापस दे देते हैं। 
सन्देश:-अच्छे संस्कार बच्चे घर से ही सीखते हैं। माता-पिता का कर्तव्य है, कि वो अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें। अपने बच्चों के सन्दर्भ में पूर्ण जानकारी रखें। अच्छे बुरे का उसे पहचान कराएं। उसकी गलतियों को नजरअंदाज ना करें। उसे उसी वक्त समझायें।विद्यालयों में भी नैतिक शिक्षा का एक विषय अवश्य हो।
                      !!रशीद अकेला!!
                          झारखण्ड 
               स्वरचित पूर्णतः मौलिक 
                  अधिकार सुरक्षित 
                   9709553376
ईमेल :rashidakela142@gmail.com

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