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मुंशी प्रेमचंद महोत्सव, कहानी-नीलम शर्मा


"हरी और घास "दोनों एक बार उपजे थें ! कान्हा ने ढूंढा बंसी राधा ने ढूंढा प्रीत, कहा जाता है कि हर मानव की उत्पत्ति और प्रेम एक साथ उपजकर इस धरती पर आती है, और आत्मीय योजना उसे खुद ढूंढ लेता है, मुंशी प्रेमचंद जब 18 वें साल में इस प्रक्रिया को ग्रहण कर लिए थे, वह जब अपनी अवस्था को जैसे ही प्राप्त किए कि उन पर एक ऐसा जुल्म और सितम दोनों हाथ लग गए , जो उन्होंने वाणी और हाथों की रेखा का आनंद के जानकारियां  प्राप्त करने के लिए एक  किशोरी के पास अपनी उत्पन्न तथ्य को रखें, किशोरी लगभग उनके उम्र से काफी छोटी थी परंतु उसकी आवाज में बड़प्पन से लेकर विद्या का गुणगान देख मुंशी प्रेमचंद उसके श्रृंखला से  बिभोर हो गए थे, मुंशी प्रेमचंद अपनी आंखों में तैरकर और हृदय की बयान उस किशोरी से कह कर अपना दिल का हाल बयान सभी को सुनाते हुए खुद की मंजिल और उद्देश्य उस किशोरी पर शॉप वहां से चल दिए, अतः पूर्ण जानकारियां उनके भविष्य की "रत्नाअधिकारी "यानी अपने हर भाषा जो भी उनकी सिलसिला से लेकर चाहत तक के निकलती थी मुंशी प्रेमचंद की सिर्फ उस किशोरी के बारे में ही, अतः उसे भूलना उन्हें पसंद नहीं स्वीकारना वश की नहीं थी,कहा जाता है कि प्रेम अंधा होता है,यह सत्य है !
यह प्रक्रिया लगभग लोगों के साथ होता है, और आवश्यक को न  समझ विद्यावान खुद बन इस धरती पर रचनाओं को काल ग्रंथ की ढेर लगाने वाले ना जाने कितने दृश्यवान इस धरती पर आस लगाए बैठे होते हैं,
---आखिर सत्य क्या है?
--- सत्य एक खोज से लेकर प्रारंभिक विद्या ज्ञान तक वहीं से शुरु और वहीं सीमित बन रह जाता है ,जो रहस्य के बारे में जानना और सत्य को ढूंढना मात्र यह आंखें ही होती है, वही मुंशी प्रेमचंद अपने आप को उस किशोरी के हवाले आत्म से लेकर शरीर तक सौंप उस विद्या की बखान में जुट गए कि आखिर यह रहस्य है क्या, जिन्हें मैं भूलना बिल्कुल नहीं चाहता, 
मात्र एक प्रतिछाया मान उस किशोरी की पूरी उम्र से लेकर विद्यमान अंग तक को उन्होंने दान कर दिया!
और लिया कलम लिखना शुरू किया,
 पंथ से लेकर कवि तक की ज्ञान ,विवशता से लेकर विद्या की पहचान ,हंसी दिल्लगी से लेकर हर कागजात उगाने जैसी उनमें सीमाएं प्रवेश कर गई ,और वह लिखते चले गए धरती से लेकर कागज तक की सीमाओं में उनकी रचना कभी खत्म ना हुई !
यह हमारे कलम द्वारा मुंशी प्रेमचंद जी की पहली प्रेरणात्मक तथ्य उत्पन्न हुई जो मैंने इस कागज पर उतारा है,
 यह मेरी कहानी "लघुकथा "के रूप में जाने जा सकते हैं!
( जय हिंद जय भारत)
----- नीलम शर्मा

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