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मुंशी प्रेमचंद महोत्सव, लघुकथा , रविबाला ठाकुर स./लोहारा,कबीरधाम छ.ग.



                     "संस्कार"

        मालती बहुत संस्कारी लड़की थी,दो बहने तथा दो भाईयों में सबसे बड़ी थी। घर में दादी-दादा, चाची-चाचा सबकी लाडली थी, बढ़िया भरा-पूरा परिवार था। सभी घर में खुशी से रहते थे, समय ने करवट बदली, पिता को शराब की लत लग गयी और पूरे परिवार में अलगाव आ गया। घर की आर्थिक स्थिति भी कमजोर हो गयी, चारो भाई-बहन दहशत में जीने लगे, जहाँ शाम होती कि पिता नशे में धुत्त हो जाते, रात के एक से दो बजे तक बड़बड़ाते रहना या छोटी सी बात को लेकर मार-पीट करना,गालियाँ देना आदि हरकतों से परेशान करते थे। माँ बिचारी बहुत सीधी थी घर से कभी बाहर निकली नहीं थी सो उनके अत्याचारों को घुट-घुट के सहती थी। परिवार के सभी छोटे बड़े सदस्य उनसे मुँह लगना पसंद नहीं करते थे।
          मालती बी.ए. तृतीय वर्ष में थी तभी उसके विवाह के लिए चार-पाँच अच्छे-अच्छे रिश्ते आए परंतु पिता ने मना कर दिया। कुछ दिन बाद फिर एक रिश्ता आया पिता ने हाँ कर दिया घर में सब विरोध करनें लगे,अच्छे-अच्छे रिश्ते को ठुकराकर बिना पूछताछ किए एक अयोग्य लड़का के लिए कैसै बेटी का विवाह तय कर दिया,लड़का मालती के योग्य बिल्कुल नहीं था। पिता के जिद्द के आगे किसी की न चली। विवाह के दिन जब सभी नें लड़के को देखा तो माथा पीट लिए,लड़का थोड़ा मंद बुद्धि का था। मालती बहुत दुखी थी,सभी नें समझया कि तुम कैसे भी करके मंडप से उठ जाना बाकी हम सब सम्हाल लेंगे। मालती संस्कारों से बंधी हुयी थी दयालु भी थी, उसने सोचा यदि मैं विवाह मंडप से उठती हूँ तो परिवार की बदनामी होगी और लड़के वाले बारात वापस लेकर जाएँगे तो उन पर क्या बीतेगी ऐसा सोचते-सोचते विवाह सम्पन्न हो गया। मालती बुझे मन से ससुराल गयी,कुछ ही महीने में उसने सबका दिल जीत लिया, पास के एक स्कूल में पढ़ाने जाने लगी और पति का इलाज शुरू करवायी दिनों दिन पति के बौद्धिक क्षमता का विकास होने लगा,पूरा परिवार मालती के लगन, विद्वता और संस्कार के आगे नतमस्तक थे। और सब कहने लगे मालती जैसै संस्कारी बहू पाकर हम धन्य हो गए।
     रविबाला ठाकुर
स./लोहारा,कबीरधाम,छ.ग.

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1 Comments
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Anonymous said…
प्रेरणा योग्य