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मुंशी प्रेमचंद महोत्सव, लघुकथा, दिया तले अँधेरा-अंजली खेर



      **दिया तले अंधेरा**

‘’अब मुझे बिल्‍कुल बर्दाश्‍त नहीं हो रहा था’’, एक नहीं दो नहीं, एक के बाद एक 5-7 मैसेज पर मैसेज मैसेंज़र पर ।
रविवार की अलसुबह अलमस्‍त सी नींद के आलम में ये ‘’टिंग-टिंग’’ ध्‍वनि तो जैसे कल-कल करते झरने के मंजुल नाद के बीच गरजते कर्कश मेघों समान थी । 
मोबाइल उठा कर देखा तो उन्‍हीं बड़े वरिष्‍ठ साहित्‍यकार के ये सारे मैसेज थे ।  पढ़ने की आतुरता बढ़ी तो एक मैसेज खोला –‘’आपको मेरी शायरी पसंद आयी, इसके लिए आपको धन्‍यवाद ।‘’
दूसरा मैसेज  –‘’अपना मोबाइल नंबर भेजो, मुझे आत करनी हैं आपसे अभी,,, इसी वक्‍त ।‘’
तीसरा मैसेज  –‘’ देखो, दोस्‍तो की तरह बात करना, खुलकर अपने दिल की बात बताना । जल्‍दी भेजो ना अपना मोबाइल नंबर ।‘’
चौथा मैसेज –‘’देखो, दोस्‍ती का हाथ तुमने ही बढ़ाया था, अब पीछे हट रही हो । अरे इस दुनिया से डरो मत, खुलकर जियो, से तुम्‍हारी अपनी जिंदगी हैं, जो मन में हो बिंदास को ।‘’
पाचवा मैसेज- अरे भेज क्‍यूं नहीं रही हो अपना नंबर?? जल्‍दी करो, मुझे बाहर जाना हैं ।‘'

मैं भौचक सी सोचती रही कि अभी हाल इतनी बड़ी साहित्यिक गोष्‍ठी में विशिष्‍ट अतिथि के रूप में उन साहित्‍यकार से मेरा परिचय हुआ, अगले ही दिन एफ बी पर उनकी फ्रेंड रिक्‍वेस्‍ट आयी तो थोड़ा आश्‍चर्य जरूर हुआ कि इतने बड़े साहित्‍यकार ने मुझे याद रखा, ये तो बड़ी खुशी की बात हैं ।
वो शायरियां बड़ी ही सुंदर किया करते हैं, कल रात ही तो मैने उनकी 2-4 शायरियों को पढ़कर लाइक और कॉमेंट किया था, बस जनाब के तो पैर ही जमीं पर नहीं टिक रहे ।
एक क्षण भर में ही उनके प्रति श्रद्धा-सम्‍मान भाव समाप्‍तप्राय हो गये ।  यदि वे सोच रहे हैं कि उभरती महिला साहि‍त्‍यकार होने के नामे कम समय में और बिन कलम चलाये प्रसिद्धि या शोहरत पाने के लिए उनका ये मूल-आमंत्रण स्‍वीकार कर लूंगी तो उनकी सोच को धिक्‍कार हैं ।
अपने जीवन के आठ से भी अधिक दशक पूरा करने वाले, जो बिन सहारे दो कदम आगे नहीं चल सकते वे इतनी लंबी दौड़ दौड़ने की लालसा रख्‍ते हैं ?अपने संबोधनों में बड़ी-बड़ी ज्ञान की बातें कहने वाले भी इतनी उथली मानसिकता वाले हो सकते हैं?
और तो और, अपने नाम के आगे ‘’दीपक’’ लिखने वाले भी ‘’दिया तले अंधेरे’’ की कहावत को चरितार्थ कर सकते हैं??  ये मैने आज़ ही जाना ।

मैने भविष्‍य में अपरिहार्य स्थिति से बचने के लिए झटपट उन सभी मैसेजेस के स्‍क्रीन शॉट लिये और फिर उन तथाकथित महान विभूति को मैसेंजर पर ब्‍लॉक और एफ बी पर अन-फ्रेंड कर दिया और दु:स्‍वप्‍न समझ वापस तकिये पर सिर रख आंखे बंद कर लेट गई । 

अंजली खेर-8989875084
सी-206, जीवन विहार  अन्‍नपूर्णा बिल्डिंग के पास
पी एंड टी चौराहा, कोटरा रोड भोपाल- 462 003

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6 Comments
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Anjana Sinha said…
यथार्थ लिखा है आपने।बहुत सुन्दर।
साहित्य के क्षेत्र में ऐसे गुरु घण्टाल बहुत है.... आपने साहस के साथ ऐसी मनोवृत्ति को उजागर किया.. धन्यवाद और बधाई 💐💐💐
Unknown said…
बहुत ही बढ़िया। ऐसे लोग वाकई हर क्षेत्र में पाए जाते है।
shashi bansal said…
बहुत बढ़िया लघुकथा👌
Unknown said…
बहुत ही अच्छे तरीकेसे स्वत: को बचाकर सभी को सावध किया. अभिनंदन!