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मुंशी प्रेमचंद महोत्सव, लघु कथा, सौतेला प्यार, तपस्या चौहान


लघुकथा-सौतेला प्यार
 आखिर 36 वर्षीय मुग्धा का विवाह संपन्न हो गया.... लेकिन विदाई के समय उसकी आंखों के आंसू सूखे क्यों थे ? शायद आज वह अपनी जन्म देने वाली मां की यादों को मन में दबाए अरमानों की तरह भीतर ही भीतर घोंटा रही थी । भागीरथी (सौतेली मां) ने जो कहा; वह निभाया। झगड़ालू प्रवृत्ति की तेज -तर्रार भागीरथी के आगे मुग्धा के पिता ने तो वर्षों पूर्व ही हां में हां मिलाने का वचन दे डाला था लेकिन.....अपनी बेटी का विवाह कोविड-19 में हुए लॉकडाउन में करना......!! भागीरथी के वचनों को पूरा करने और अपने पत्नी- धर्म के प्रति समर्पण दिखाने का एक अजब ही तरीका था.....!!!!

कितने सपने थे मुग्धा के.......

हमेशा चहकती आवाज के साथ कहती, "मैं लेडीज़ संगीत में यह पहनूंगी.....! हल्दी में ऐसा करूंगी..... वैसा करूंगी.....इस तरह की सजावट होगी.....! स्टेज पर जाने के बाद अपने जीवनसाथी के साथ डांस करूंगी । फिर ढ़ेर सारे फोटोज़ और उसके बाद सभी का आशीर्वाद लेकर जब विदा होकर जाऊंगी तो अंदर ही अंदर खुश भी होऊंगी और सबको देख कर रोना भी आएगा ।

       लेकिन भागीरथी ने सौतेली बेटी मुग्धा से पहले ही कह दिया था, "ना तेरी शादी में गाना-बजाना होने दूंगी और ना ही जश्न ! तुझे इस चौखट से ऐसे विदा करूंगी जैसे कि कोई अर्थी...... ।" बस यही बात  मुग्धा को विदाई के वक्त याद आ गई थी कि मम्मी ने लॉकडाउन का सहारा लेकर मेरी शादी में ना लेडीज़ संगीत रखा, ना हल्दी और ना ही कोई जश्न मनाने दिया। बचपन से आज तक मैंने इस परिवार की  सेवा निस्वार्थ भाव से की । मम्मी की तो मैं सौतेली बेटी हूं लेकिन पापा का प्यार कैसे सौतेला हो गया ?

 @ तपस्या चौहान 
जन्मस्थान- आगरा
शिक्षा - एम. ए (हिन्दी एवं भाषा विज्ञान ), हिंदी अनुवादक डिप्लोमा, एम. फिल  (हिन्दी ), पी. एच-डी
पता-15/167 सोरों कटरा ,शाहगंज ,आगरा -282010

ईमेल - tapasarya67@gmail.com 


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