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कुत्तों के बॉस, व्यंग्य, अरविंद अकेला की लघुकथा


लघुकथा 

      कुत्तों के बॉस 
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        प्रदेश के एक मंत्री सुबह-सुबह अपने दो रौबदार कुत्ते व अपने   पी ए के साथ टहल रहे थे तभी एक कवि महोदय की नजर मंत्री जी के साथ दो रौबदर व खतरनाक कुत्तों पर पड़ी। कवि जी यह देखकर ठिठक गए और मन हीं सोचने लगे कि एक तो ये प्रदेश के दबंग नेता ठहरे, साथ में मंत्री पद भी है। इतना हीं नहीं  इनके साथ दो रौबदार व  खतरनाक कुत्ते भी टहल रहें हैं। एक खतरनाक कुत्ता तो सारे समाज को तंगो-तबाह करके रख देता है,उस पर मंत्री जी के पास एक नहीं दो-दो खतरनाक कुत्ते।
      कवि जी इसी उधेड़बुंद में कुछ सोच हीं रहे थे कि तभी एक  कलाकर महोदय ने कवि जी के कंधे पर हाथ रखते हुये कहा कि कवि जी आप क्या सोच रहे हैं, यहीं ना कि मंत्री जी के एक नहीं दो-दो रौबदार व खतरनाक कुत्ते हैं।
   अरे कवि जी ये सिर्फ प्रदेश के मंत्री हीं नहीं बल्कि कुत्तों के बॉस भी हैं, कुत्तों के बॉस भी हैं।
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          अरविन्द अकेला

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1 Comments
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ARVIND AKELA said…
वाह,बहुत खूब।
धारदार व्यंग्य।