सब्जीवाला
(लघु कथा )- डी.ए.प्रकाश खाण्डे
बारिस तेज हो रही थी तभी सड़क पर रुंधे स्वर में कोई आवाज लगा रहा था । सब्जी लेलो ...सब्जी ...,लौकी करेला ले | मेरी पत्नी इंतज़ार कर ही रही थी की "कोई सब्जी वाले आ जाते तो खाना बनाती |" बरसते पानी में मेरी पत्नी निकलकर विनम्रपूर्वक बोली - अंकल ! कैसे दे रहे हो ? वह सब्जी वाले अपने सिर पर दो बड़े गट्ठा और कंधे में एक झोला रखा हुआ था, धीरे से उतार कर अपने सब्जी को दिखाकर बोला, अरे !बेटी सब्जी ताज़ी है, जो लेना हो; ले लीजिये |सब्जी वाला भी विनम्रता से बोला
"करेला तीस रुपये और लौकी बीस रुपये है, लाभ का धंधा नहीं है,केवल उत्पाद को आप जैसे उपभोगताओं को देकर हम गरीब धन्य होते हैं |"
मेरी पत्नी ने कही, दो -दो किलो दे दो अंकल जी | कहकर अंदर आ गई परन्तु वह गरीब सब्जी वाला,ग्रामीण परिवेश को लिए तराजू निकाल कर ईमानदारी से दो -दो किलो करेला और लौकी तौल दिया | पत्नी देखकर बोली , अंकल जी लगता है ज्यादा तौल दिए है,आपका ये उम्र व्यापार के लिए नहीं है,आपका स्वभाव और चरित्र उच्च मानवता को परिभाषित करता है | भगवान् जाने आप कौन सत्कर्मी पुरुष हैं ,आपमें शिक्षा और संस्कार का अतुल्य भण्डार है | लीजिये एक सौ रुपये ये सब्जी का है और पचास रुपये मेरे तरफ से बेटी कहने के लिए |
सम्मान और भाव पाकर सब्जी वाला सारी वेदना और व्याकुलता भूल कर बताता है | बेटी आप लोग छोटे थे तब आपके पिता के साथ आपके घर जाया करता था |आपके पिता फौज में चले गए तो हम खेती ही करते चले आये, घर में बेटा बहु है पर क्या औचित्य ?
सब अपने में मस्त और व्यस्त रहते हैं इसलिए जीवन चलाने
के लिए कुछ करना पड़ता है | हर दिन डर लगता है हमें कि मौसम का अनहोनी न हो जाये, चार महीने पसीना बहाने के बाद भी कई बार फसल के दाम नहीं मिलते । यह कहते हुए उसके आँखों से आत्मीयता की मोतियाँ ढलने लगी , वह सब्जीवाला अपने निजता का पिटारा खोलकर बयान कर देता है "हम
गरीबों की दुनिया में मेहनत के शिवाय कुछ और लिखा ही नहीं है | किसानों ; मजदूर के साथ आत्मीयता एवँ करुणा से पेश आयें ।"
लेखक - डी.ए.प्रकाश खाण्डे शिक्षक ,शासकीय कन्या शिक्षा परिसर पुष्पराजगढ़ ,जिला--अनूपपुर (मध्य प्रदेश )
मोबा .9111819182