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मुंशी प्रेमचंद महोत्सव,लघुकथा, कजरा -शुभा मिश्रा कनक

*कजरा*

दीदी दे देना दीदी....सिर्फ एक कपड़ा फिर नहीं मांगूंगी। अरे तू फिर आ गई।कितनी बार कह चुकी हूं तुझे मैं अपना कपड़ा नहीं दूँगी।जा किसी और से मांग।नहीं दीदी तुम ही देदो न बस एक....इसबार कोमल को बेहद गुस्सा आया।उसने झल्लाते हुये कहा।तुझे समझ नहीं आता क्या एकबार में?न तो तू कोई काम करती है।न ही पढ़ती लिखती है।बस सारा दिन ऐसे ही घर-घर माँगती फिरती है।अरे दीदी मुझे कौन पढ़ायेगा?और माँ के पास तो स्कूल भेजने के भी पैसे नहीं हैं।यह सुन कोमल को थोड़ा दुःख हुआ।उसने उस लड़की के आगे एक शर्त रखी।ठीक मैं तुम्हें पढ़ाऊंगी।जिस दिन तुम अच्छे से पढ़ने लगोगी।मैं तुम्हें एक नयी ड्रेस दिलवाऊंगी।ठीक है दीदी तो तुम मुझे अभी से पढ़ाना शुरू कर दो।ये कहते हुये दरवाज़े के सामने बने चौरे पर वह बैठ गई।उसका ऐसा रूप देख कोमल बेहद खुश हुई।अंदर से कोमल चाक लेकर आई और बाहर बने चौरे में उसके साथ बैठ गई।कोमल ने उस से पूछा तुम्हारा नाम क्या है?उसने जवाब में कहा "कजरा"....अरे वाह!ये तो बहुत सुंदर नाम है।चलो मैं तुम्हें आज अ से अनार लिखना सिखाती हूँ कहते हुये कोमल ने उसे पढ़ाना शुरू किया।अब कजरा हर रोज इसी वक्त पर आकर कोमल से पढ़ती।पढ़ाई के प्रति उसकी लगन और नया कपड़ा पाने के प्रति उसकी उत्सुकता देखकर कोमल बेहद खुश थी।वे रोज़ इसीतरह पढ़ने लगे और कजरा कपड़े के बारे में भूलकर अपनी पढ़ाई में अब कहीं खो गई थी....अगली सुबह जब कजरा आई तो उसके हाथों में एक कॉपी और पेन थी।कोमल ये देख बेहद खुश थी।उसने पूछा ये कहाँ से लाई?कजरा ने जवाब दिया मैं घर जाकर मिट्टी पर कोयले से लिखकर पढ़ा करती थी दीदी जिसे देख माँ ने कुछ पैसे बचाकर मेरे लिए कल रात को ये खरीदा।कजरा ने अपनी कॉपी का पहला पन्ना खोलकर दिखाया।उसमें लिखा था "कजरा"।उसने कहा देखो दीदी आज मैंने अपना नाम लिखना सीखा।कोमल को आज उसकी आँखों में वह दिखा जिसका उसे प्रथम दिन से इंतजार था।उसने उसे पढ़ाने के बाद कहा।चलो मेरे साथ एक जगह ज़रूरी काम है तुम्हारी भी ज़रूरत लगेगी।कोमल उसे एक कपड़े की दुकान पर लेकर गई और उसने उसे उसके पसंद की एक नयी ड्रेस दिलाई।साथ ही उसने एक और कपड़ा कोमल ने दिलाया वो था "स्कूल यूनिफॉर्म"...जिस स्कूल में कोमल शिक्षिका थी उसमें उसने कजरा को एडमिशन भी दिलाया और उसका जीवन बदल दिया।आज कजरा ने अपने आस-पास के गरीब बच्चों के लिये "कजरा" नाम से निःशुल्क कोचिंग क्लास भी प्रारंभ कर लिया।और आज कजरा कितनों की आदर्श बन गई है।
*शुभा मिश्रा"कनक",रायपुर, छतीसगढ़*

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2 Comments
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एक प्रेरक कहानी
Shubha said…
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।🙏🏻