लघुकथा - शीत लहर
*************
ठंडी का मौसम था ऊपर से शीत लहर ठंड को दो गुना बढा रहा था। दो तीन दिन से सूरज निकलने का नाम ही नही ले रहा था ।चारो तरफ कोहरा छाया हुआ था। ठंडी ठंडी शीतल लहर चल रही थी । आज ठंड थोडा ज्यादा ही थी। ऐसे में धूप का इंतजार सभी को थी । पर आज धूप दिखाई नही दे रही थी। इसलिए चारो ओर कोहरा छाया हुआ था। जो पूरी तरह वातावरण को ढक लिया था। जिससी वजह से ठंड अत्यधिक लग रही थी।
मैने देखा मंदीर के पास एक गरीब महिला अपने बच्चे के साथ बैठी भीख मांग रही थी ।ठंड से बचने के लिए एक छोटे से चादर को अपने बच्चे को ओढा रखी थी और वह खुद को साडी के पल्लू से ढक लिया था। परन्तु बार बार पल्लू को खिचकर अपने आपको ढकने की कोशिश कर रही थी। देखकर ऐसा लग रहा था जैसे ठंड पर उसका काबू नही हो पा रहा है। इसलिए उसने अपने बच्चे की थोडी चादर खिचकर ओढ ली। लेकिन गरीब की छोटी सी चादर होने की वजह से वह अपने आपको पूरी तरह नही ढक पा रही थी।शायद शीत लहर की ठंड अधिक होने की वजह से उसे ठंड अधिक लग रही थी। क्योकि ठंडी से उसका ठिठुरना देख कर मुझे एहसास हो रहा था। उसका बच्चा पास ही बैठा था। वह बच्चे को पूरा ध्यान दे रही थी। इसलिए वह बच्चे को अधिक और अपने को कम चादर मे ढक रही थी। मां जो थी। अपने बच्चे का पूरा ध्यान रख रही थी।
लेकिन इस प्रकार एक छोटी चादर के ओढने से दोनो ठंड पर काबू नही कर पाते रहे थे।
भिखारिन मां ने दिमाग लगाया। बाजू मे बैठे अपने बच्चे को अपनी गोद मे बैठा लिया। और पूरी चादर अपने मे ढक लिया।
मां की गर्माहट बच्चे को और बच्चे की गर्माहट मां को दोनो ने ममता की गर्माहट से शीत लहर की ठंड पर काबू पा लिया।
जिसे देखकर मुझे अत्यंत खुशी महसूस हुई। लगा
मां भले ही धन से गरीब हो पर ममता की दौलत से वह दुनिया मे सबसे अमीर है।
लघुकथा रचनाकार
श्रीमती अंजली तिवारी मिश्रा बस्तर जगदलपुर छ0ग0
मो0न0 - 7987708655