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मुंशी प्रेमचंद महोत्सव, लघु कथा,गोवर्धन लाल बघेल

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ग्रामीण महिला मेनका बाई पती के मृत्यु पश्चात,मजदूरी कर अपने इकलौती पुत्री रंजना का भरण पोषण कर गरीबी से जीवन बीता रही थी। उनके पुत्री रंजीता संस्कारवान व समझदार थी,वह कक्षा दसवी में दखिला लेकर अध्ययन कर रही थी।माँ मेनका मजदूरी कर उसे शिक्षा दिला रही थी। रंजीता पढ़ने मे होसीयार थी ,उसे समय देखने के लिए एक हांथ घडी़ पहनने की इच्छा होती थी पर क्या करे उसके मम्मी के आय उतना नही था की वह उसके लिए एक घडी़ खरीद सके।कई बार छुपे जुबान माँ के पास अपने बात रख चुकी थी,समय बितते गया,मेनका पाई पाई जुटा कर आखीर एक हांथ घडी़ खरीद कर लाई और जन्मदिन के तोहफा के रूप में अपने पुत्री रंजना को दि,रंजना आज बहूत खुशी से झुमते हांथ में घडी़ को पहने विद्यालय पहूची। प्रार्थना के पश्चात वह कक्षा मे प्रवेश की ,अचानक रागनी नाम की एक लडकी जो बहूत बडे़ धनवान की बेटी थी ,उसके हांथ मे घडी़ देखकर चिड़ गई कहने लगी यह घडी मेरी है तू कहां पा गई?रंजना सकपका गई नही बहन यह मेरी है,रागनी प्राचार्य के पास शिकायत लेकर पहूची मेरी घडी रंजना ने चोरी की है,आखिर मे घडी को रागनी झपट ली सभी लोग खरी खोटी सुनाए शिक्षक गण भी रंजना को चोरी करने का दोसी माना,रंजना निराश होकर घर लौटी ,सारी बाते अपनी माँ को बताई,मां बोली बेटी हम लोग गरीब है समारी कौन सुनेगा ,सभी हमे ही दोषी ठहराते है,कोई बात नही,रंजना की दिल टूट चुकी थी वह बोली मां मै अब विद्यालय नही जाउगी ,अब नही पढूगी माँ बहूत समझायी पर वह नही मानी।
       इधर क्या हूआ धनवान की बेटी रागनी जब विद्यालय से घर पहूची तो देखी की उसकी अपनी घडी़ टेबल में पडी़ है,भूलवस वह नही पहन पाई थी,अपने कलाई के घडी़ को देखी उसे रंजना याद आई उस भोली भाली गरीब लड़की को कैसे जलील करके हाथ से घडी़ छिनी थी।वह अपसोस करने लगी मेरे से बहूत बडी़ गलती हो गई मैने बिना कसूर के रंजना को अपमानीत किया ,जैसे तैसे रात बीती ,विद्यालय का समय होते ही वह तपाक से पहूची और रंजना की इन्तजार करने लगी ,बहूत इन्तजार के बाद भी जब रंजना नही आई तो वह प्राचार्य कक्ष मे जाकर सारी बाते बताई जो उनसे भुल हो गई थी,फिर क्या सारा शिक्षकगण सारा विद्यार्थी रंजना घर के पता पुछते उनके घर पहूचे,रंजना घर मे बैठी थी रागनी जाकर दोनो हाथ जोडते उसे क्षमा मागने लगी बहन मुझसे बहूत बडी़ भूल हो गई,मेरी घडी मै स्वयं घर में भूल गई थी और तुम्हे चोरी करने का आरोप लगा रही थी,मुझे माफ करना ,बाते दिल की गहराई तक पहूच गई थी ,रंजना भी रो रही थी और रागनी भी रो रही थी।सभी शिक्षक यह दृष्य देख रहे थे,मन मे एक अपसोस हो रहा था।


 स्वरचित मौलिक रचना

गोवर्धन लाल बघेल 
टेढी़नारा जिला महासमुंद
छत्तीसगढ़

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