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मुंशी प्रेमचंद महोत्सव, लघुकथा,ये कैसी भक्ति-अर्चना अनुप्रिया




         "ये कैसी भक्ति ?" 

बहु चारों धाम की यात्रा करके लौटी थी। हर दिन अपने दोस्तों को अपनी भक्ति-यात्रा की झलकियाँ दिखाने के लिए तरह-तरह के फोटो सोशल मीडिया पर लगा रही थी। सभी दोस्त उसकी खूब वाहवाही कर रहे थे। 
उधर दूर किसी दूसरे शहर में बूढ़ी सास अकेली बाढ़ और मुसीबतों से जूझ रही थी। ससुर का देहांत हो चुका था और बूढ़ी सास हालातों से लड़ने के लिए अकेली,बेबस और लाचार थी।
मंदिर में दुर्गा माँ सोच रही थीं -"जीवित माँ जैसी सास की आँखों में आंसू देकर और मुसीबतों में साथ न देकर जो शख्स मेरे  समक्ष भक्ति दिखाए, उसे क्या देना चाहिए...." आशीष या आँसू..?"
             अर्चना अनुप्रिया।

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1 Comments
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ARVIND AKELA said…
वाह, बहुत अच्छे