कविता
मोरे पिया नहीं आये
दिन महीने बीत गये,
बीत गये मेरे दो साल,
रास्ता उनका देख देख,
यहाँ बुरा है मेरा हाल
किससे कहूँ बातें दिल की,
कोई समझ नहीं पाये,।
मोरे पिया नहीं आये।
बीत गये दो फागुन सावन,
नहीं आये मोरे मनभावन,
सुनी हो गयी मेरी जिन्दगी,
नहीं आये मेरे पतित पावन,
कड़क रही बिजली जोर से,
उमड़ उमड़ कर बदरा छाये,
मोरे पिया नहीं आये।
दिन किसी तरह कट जाता,
कटती नहीं अब मेरी रात,
तन विरह वेदना में जल रहा,
कौन समझे मेरे हलात,
नहीं आया कोई फोन उनका,
ना कोई चिठ्ठी भिजवाये
मोरे पिया नहीं आये।
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अरविन्द अकेला