साहित्यिक संस्था, साहित्य कुंज के तत्वावधान में आयोजित साहित्यिक संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे गांधीवादी विचारधारा के सम्पोषक परम आदरणीय अजय कुमार श्रीवास्तव जी, इस सारस्वत यज्ञ के उद्घाटन कर्ता भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी परम आदरणीय विजय प्रकाश जी, आज के इस कार्यक्रम को गरिमा प्रदान कर रहे मुख्य अतिथि की भूमिका में श्रद्धेय ज्ञानेंद्र मोहन खरे जी, इस कार्यक्रम का सफल संचालन कर रहे कवि अरविंद अकेला जी, इस कार्यक्रम को अपनी गरिमामई उपस्थिति से ऊंचाइयां प्रदान कर रहे नगर के सुख्यात चिकित्सक एवं साहित्यकार डा. रामाशीष सिंह जी, डॉ. सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह जी ,इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर एवं युवा समीक्षक डॉ कुमार वीरेंद्र जी, वरीयअधिवक्ता एवं समाजसेवी सिद्धेश्वर विद्यार्थी जी ,इस कार्यक्रम के सूत्रधार श्री राम राय जी ,नागेंद्र दुबे जी, उद्घोषक एवं शायर आफताब राणा जी, स्वागत कर्ता की भूमिका में अपने शब्द सुमनों को बिखेर रहे कवि धनंजय जयपुरी जी तथा प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से इस कार्यक्रम में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने वाले सरस्वती के उपासकों! सर्वप्रथम मैं गुरु पूर्णिमा के पावन दिवस पर आप तमाम लोगों को हार्दिक बधाइयां एवं शुभकामनाएं देता हूं ।आज का प्रतिपाद्य विषय ,'कैसे दें चीन को शह और मात'एक समयोचितएवं समीचीन विषय है। सज्जनों, हम जानते हैं कि चीन की विस्तार वादी नीति से भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई अन्य देश भी अस्त ,व्यस्त और त्रस्त है ।आज यह समय कि मांगहै कि हम हरमोर्चे पर,हर कहीं चीन को करारा जवाब दें। महाप्राण निराला की उन पंक्तियों से मैं श्री गणेश करना चाहूंगा कि' पद राजभर भी है नहीं ,
पूरा यह विश्व भार ,
जागो फिर एक बार ,।
हम जानते हैं यह आर्थिक युग है, जब तक किसी देश की आर्थिक रीढ़ तोड़ नहीं दी जाती ,तब तक वह कुचेष्टाओंसे बाज नहीं आएगा।अस्तु, इस प्रसंग में अपने देश की सक्षम सरकार ने प्रयत्न भी शुरू कर दिए हैं ।चीनी उत्पादों का बहिष्कार ,उसकी टेक्नॉलॉजी की विदाई और सीमा पर जोश से भरे अपने जवानों की हौसला अफजाई ,सब कुछ एक साथ चल रहा है ।आर्थिक धक्के ने चीन को भीतर से बिलबिला दिया है। विश्व के कई सबल और सक्षम राष्ट्र भारत के पक्षधर हैं ।चारों तरफ से गिरा हुआ चीन आसन्न संकट से भीतर ही भीतर हील गया है और क्रमशःउसके स्वर भी बदल रहे हैं ।जहां तक भारतीय सैन्य बल का प्रश्न है, उनमें
"उद्योगं साहसं धैर्यम
शक्ति बुद्धि पराक्रमः"
विजयी होने के समस्त गुण मौजूद हैं ,।हालांकि सभी जानते हैं युद्ध कभी भी किसी समस्या का हल नहीं होता ,अतः कूटनीति की मांग है,कि' कुछ ऐसा किया जाए कि
,बतास भी बहे ,और दीप भी जले। '
राष्ट्रीय सुरक्षा पर राष्ट्रकवि दिनकर के शब्द संपूर्ण भारतीय जनमानस को प्रेरणा का पाथेय देते हुए मंत्र फूंकते है कि
छिनता हो स्वत्व कोई और तू, त्याग तप से काम ले यह पाप है, पूण्य है विच्छिन्नकर देना उसे ,
बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है ।। अबआज की परिस्थिति में दुश्मन देश के आर्थिक पंख कुतर दिये जाएं,अन्य मित्र देशों से समन्वय स्थापित कर यथोचित दबाव बनाया जाए और दुश्मन की हेकड़ी को किरकिरी कर दिया जाए।
कभी हिंदी चीनी भाई भाई का नारा लगाने वाले आज बड़ी निराशा भरे शब्दों में कहने के लिए अभिशप्त हैं कि
'वक्त ने किया कितना बड़ा सितम,
तुम रहे न तुम,और हम रहे ना हम।
आज कूटनीति का जमाना है, बहुत ही गंभीरता पूर्वक सधे हुए कदम बढ़ाते हुए दुश्मन देश को मात देनी है ,और हम आशा करते हैं कि देश का सबल नेतृत्व इसमें पूरी तरह सफल होगा ।अब भारत भूमि के पाक दामन को दुश्मन देश की छाया भी ना छू पाएगी ।एक बार पुनः आप तमाम साहित्यानुरागी सज्जनों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए अपनी वाणी को विराम देता हूं ,बहुत-बहुत धन्यवाद....
प्रेषक
डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र
संपादक ,'समकालीन जवाबदेही' अंबे आश्रम, नागा बीघा औरंगाबाद बिहार
मोबाइल नंबर7992388383