मांगू मैं रब से एक ऐसा जमाना
उदासी का गम का नहीं हो ठिकाना।।
सलामत रहे हर एक गांव बस्ती ,
न डूबे किसी की उम्मीदों की कश्ती ।
न उजड़े परिंदो का आशियाना,
मांगू मैं रब से एक ऐसा जमाना।।
महंगाई की भार से न बोझिल जमी हो,
दंगे फसाद कहीं भी नहीं हो।
लाशें पड़े ना कभी भी ढुलाना,
मांगू मैं रब से एक ऐसा जमाना।।
बाँझ न हो कभी बारिश वहाँ की,
बदले ना तेवर फिजा और हवा की।
रहे जहाँ मौसम सदा ही सुहाना,
मांगू मैं रब से एक ऐसा जमाना।।
उदासी का गम का नहीं हो ठिकाना।।
सलामत रहे हर एक गांव बस्ती ,
न डूबे किसी की उम्मीदों की कश्ती ।
न उजड़े परिंदो का आशियाना,
मांगू मैं रब से एक ऐसा जमाना।।
महंगाई की भार से न बोझिल जमी हो,
दंगे फसाद कहीं भी नहीं हो।
लाशें पड़े ना कभी भी ढुलाना,
मांगू मैं रब से एक ऐसा जमाना।।
बाँझ न हो कभी बारिश वहाँ की,
बदले ना तेवर फिजा और हवा की।
रहे जहाँ मौसम सदा ही सुहाना,
मांगू मैं रब से एक ऐसा जमाना।।
@@प्रियदर्शी किशोर श्रीवास्तव,औरंगाबाद
बहुत सुन्दर।