*लघुकथा*
कोरोना जब से महामारी का रूप लिया है तभी से लोगों में डर एवं भय व्याप्त है। लोग डरे सहमे जीवन को जीने के लिए मजबूर हैं। कमोबेश यही सब की स्थित है। यह बात मिस्टर x की है जो पड़ोस में ही रहते थे। उन्हें तो जैसे कोरोना का कोई भय ही नहीं था, या जानबूझकर कर रहे थे, या फिर मूर्खता पूर्ण कार्य। यदि उन्हें कोई समझाता, तो बात को अनसुनी कर देते थे । यह कहकर खिल्ली उड़ाते थे की कोरोना हमारा क्या कर लेगा। बिना मास्क के घूमने निकल जाना, सामाजिक दूरी का कोई पालन न करना यह उनके लिए आम बात थी। बेवजह घर से निकल जाते थे।
फिर एक दिन ऐसा आया जब कोरोना ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया। उनमें कोरोना का लक्षण देखकर घर के लोग अस्पताल में भर्ती कराए। फिर नियमित जांच एवं दवाइयों के द्वारा किसी तरह उनको ठीक किया गया।
जो व्यक्ति पहले किसी की बातें नहीं सुनता था और मूर्खतापूर्ण कार्य करता था वही अब दूसरों को समझा रहा है कि कैसे उनके मूर्खतापूर्ण कार्य से उनका जान जोखिम में पड़ गया था। अब सामाजिक दूरी का सबको पाठ पढ़ा रहे हैं तथा बता रहे हैं कि जब भी बाहर निकले आपने मुंह पर मास्क लगाकर निकलेl
अतः ठीक ही कहा गया है कि मनुष्य को सोच समझकर कार्य करना चाहिए।
आलोक कुमार यादव
असिस्टेंट प्रोफेसर
विधि विभाग
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल
केंद्रीय विश्वविद्यालय उत्तराखंड