कविता
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जिधर जवानी चलती है,
उधर जमाना चलता है,
देखती एकटक उसे दुनियाँ,
दुश्मन देखकर जलता है।
जब जवानी लेती अंगड़ाई,
इतिहास बनता बिगड़ता है,
कोई देखकर आश्चर्य करता ,
कोई अपने हाथों को मलता है ।
कोई जवानी में बनता है,
कोई खुब बिगड़ता है,
जिसने सँवारी जवानी अपनी,
वह अलग इतिहास रचता है।
आती जवानी हवा की झोंको सी,
लाती क्रांति यह जीवन में,
हिमालय सी होती यह जवानी,
जिससे दुश्मन भी डरता है।
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अरविन्द अकेला