Type Here to Get Search Results !

मुंशी प्रेमचंद महोत्सव, लघुकथा -गरीबों का मसीहा,जनार्दन शर्मा JD, इंदौर


             

जनार्दन शर्मा JD, इंदौर (आशुकवि,लेखक)

मुंशी प्रेमचंद जी ने हमेशा अपनी कहानी,नाटको व लेखनी मे समाज के गरीबों और व्यवस्था से कुचले हुये व्यथित लोगो का चित्रण ही लिखा हैं ।और अपनी लेखनी से समाज को आइना दिखलाया है।
उसी को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत हैं ये *लघुकथा* साहित्य कुंज मंच के मुंशी प्रेमचंद स्मृति कार्यक्रम के लिये प्रेषित है।

*लघुकथा शिर्षक :-गरीबो का मसीहा*

*शाम का समय* ,,आज मंत्री जी कि आलिशान कोठी के बाहर चमचमाती महंगी कारो कि भीड़ थी ,लग रहा था कोई विशाल आयोजन है।अंदर भव्यता और विलासिता से सजे बड़े से लाॅन में विदेशी संगीत पर थिरकती बालाए किसी बड़े आयोजन का अहसास करा रही थी।शहर के सभी बड़े धनाढ्य, मंत्री,संत्री इसमे शामिल हुऐ थे।पार्टी अपने पूर्ण चरम पर थी मकसद था, मंत्री महोदय को मुख्य मंत्री ने आज
"गरीबो के मसीहा*" के अवार्ड से राजधानी बुलाकर २लाख की राशी देकर मंत्री पद से सम्मानित किया था।सभी लोक मदहोशी के आलम मे गीत,संगीत का आनंद ले रहै थे।
अचानक, भोजन के पंडाल के पास से एक शोर गुंजा 
चोर, चोर, चोर, 
कुछ दुर कौने में भीड़ सा नजारा था मैने पास जाकर देखा कुछ लौग एक फटेहाल से गरीब आदमी को मंत्रीजी और उनके पट्ठे मारे जा रहे थे और बार बार उससे कहे जा रहे थे बता क्या है हाथ में, खोल अपनी मुट्ठी, पर वो दौनो हाथो को सीने से दबाकर झुका हुआ मार खाता रहा और नहीं दूंगा नही दूंगा की रट लगाता रहा जब लुहलहान हो के वो गिरा और उसके हाथो कि पकड़ ढीली हो चुकी थी और उसमें से चंद रोटीया बाहर झाकती नजर आई।मैने पूछा इसके लीये इतनी मार क्यो खाई वो बोला साब दो दिन से भूखा था सोचा मंत्रीजी के पास कुछ खाने को मिलेगा द्वार के चौकिदारो ने भगा दिया बडी मुश्किल से जुठी प्लेटो से रोटी उठाई थी तो मंत्री जी ने देख लिया और यह हाल कर दिया। मै भारी मन से वहा खड़ा सोचता रहा, सच क्या था ? वो भूखा गरीब आदमी या गरीबो का मसीहा कहलाने वाले मंत्री महोदय।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.