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बिन किए की सजा, आज वह भुगत रही थी, Sushma Singh , srisahity



अर्धनग्न,
 बिखरे वसन,
 घबराई,डराई सी ।
सोलह साल की वो लड़की,
किसी आश्रम से आयी थी ।

बोल न उसके फूटते थे,
अश्रु झर- झर गिरते थे।
इधर जाऊं या उधर जाऊं,
चुप रहूं  या   कि  बताऊं ।

कश्मकश में खड़ी वो,
होंठों को सिले हुए थी ।
अपनों से क्या कहूंगी ,
अब किसी की अपनी कहां रही।

बिन किए की सजा,
आज वह भुगत रही थी।
श्रद्धा पर पड़ी भयंकर प्रहार,
रह- रह कर सिसक रही थी।

सारे रिश्ते नज़रें चुरा रहे थे,
उस अभागन को कुलक्षणा बता रहे थे।
घर आयी क्यूं - क्यूं न उधर मर गयी,
यह कहते कन्नी काट रहे थे ।

मां बाप की देख रूखाई,
दरवाजा बंद कर रखा था भाई ।
वह नाजुक बेबस सी जान,
छोड़ दिए लाज से प्राण  ।

                           सुषमा सिंह।

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1 Comments
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समाज में व्याप्त कुकृत्यों की शानदार अभिव्यक्ति।