बिखरे वसन,
घबराई,डराई सी ।
सोलह साल की वो लड़की,
किसी आश्रम से आयी थी ।
बोल न उसके फूटते थे,
अश्रु झर- झर गिरते थे।
इधर जाऊं या उधर जाऊं,
चुप रहूं या कि बताऊं ।
कश्मकश में खड़ी वो,
होंठों को सिले हुए थी ।
अपनों से क्या कहूंगी ,
अब किसी की अपनी कहां रही।
बिन किए की सजा,
आज वह भुगत रही थी।
श्रद्धा पर पड़ी भयंकर प्रहार,
रह- रह कर सिसक रही थी।
सारे रिश्ते नज़रें चुरा रहे थे,
उस अभागन को कुलक्षणा बता रहे थे।
घर आयी क्यूं - क्यूं न उधर मर गयी,
यह कहते कन्नी काट रहे थे ।
मां बाप की देख रूखाई,
दरवाजा बंद कर रखा था भाई ।
वह नाजुक बेबस सी जान,
छोड़ दिए लाज से प्राण ।
सुषमा सिंह।