1) विचार गोष्टि
हम स्वतंत्रता की 74 वी सालगिरह मना रहे है। चारो ओर जश्न का माहौल है। आजादी के इस लंबे अंतराल में देश ने कई उपलब्धियों हासिल की है। कई मोर्चों पर देश आत्मनिर्भर भी हुआ है। पर विश्लेषण करें तो यकीनन हमारी आजादी प्रदूषित हुई है, मलिन हुई है। प्रदूषण से मेरा तातपर्य देशहित का दरकिनार होना है। आज देशहित का स्थान व्यक्तिगत हित ने ले लिया है। देशसेवा हास्यविनोद का पर्याय बन गई है।
जब आजादी मिली थी तो अरमान थे कि वैचारिक, आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता होगी। जीवन शांतिपूर्ण और सुखमय होगा। पर स्वतंत्रता के दुरुपयोग ने भयावह और सोचनीय स्थिति पैदा कर है। हमारे स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने तो इसकी परिकल्पना भी नही की होगी। स्वतंत्रता ने शीतल बयार की तरह देश मे प्रवेश किया था जिसके एहसास मात्र से जनमानस के तन मन मे सुख औऱ सुकून उमंगे प्रवाहित हो रही थी। दिल जोशोखरोश से सरोबार था। कुछ कर गुजरने का जज्बा हिलोरें मार रहा था।
पर चंद लोगों ने देश के बटवारें के समय बोए गए वैमनस्य और स्वार्थपरता के बीज को हवा पानी देना जारी रखा। यह कलुषित पौधा आज विशाल वृक्ष बन चुका है। इसकी जड़ें भ्रष्टाचार, असवेंदनशीलता और अनाचार के रूप में सर्वत्र व्याप्त है और अपनी पराकाष्ठा पर है। जनमानस के आचार विचार पूर्णतः इसके अधीन है। इनसे निजात पाना नितांत मुश्किल कार्य है, एक दुःस्वप्न है।
आखिर देश इस मुकाम पर कैसे पहुंचा ? हमारी स्वतंत्रता को किसने ग्रहण लगाया। आजादी के बाद जनमानस में आकांक्षाएं बलवती थी। लोग कम समय मे कम प्रयास किये बगैर तरक्की और आराम चाहते थे। इस तारतम्य में अनुचित और अनैतिक तरीकों से कार्य सम्पन्न किये जाने लगे। जीवन में संस्कारों और नैतिक मूल्यों की उपेक्षा होने लगी। देशहित की भावना में व्यक्तिवाद की दीमक लग गई। लोगों का ध्यान राष्ट्र उत्थान के पथ से भ्रष्ट हो गया।
कब हम की जगह मैं ने ली पता ही नही चला।
ऐसा नही है कि आजादी के मायने अनवरत रखने के लिये नियम नही बनाये गए। दिशा निर्देश नही जारी किए गए। पर इनका अम्लीकरण सिर्फ कागजों योजनाओं तक सीमित रह गया। प्रतिबद्धता और अनुशासन का क्षय जो शुरु हुआ अब तक जारी है। जनमानस की वैचारिक स्वतंत्रता प्रभावित हो गई। विचारो के प्रदूषित होने से सोच और मानसिकता बीमार हो गई और कार्यशैली निम्न स्तर की तरफ अग्रसर होने लगी। लोग गलत निर्णय लेने लगे। सदमार्ग से पथभ्रष्ट होने से जीवन का चैन सुकून नष्ट होने लगा। असंतोष और विद्रोह उफान पर था। आज देश के बिगड़े हालात सभी को विचलित कर रहे है। जितनी तेजी से समृद्धि और खुशहाली आयी थी उसकी दोगुनी तीव्रता से अशांति और असंवेदनशीलता ने हमारे जीवन मे प्रवेश किया है।
आज जरूरत है कि नियमो और दिशानिर्देशों को सख्ती से लागू किया जाए। जनमानस को स्वानुशासन के लिए बाध्य किया जाए। जटिल और लंबी कानूनी प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाया जाय। दोषियों को दण्ड देने की कार्यवाही तीव्रगामी हो। नैतिक शिक्षा के पठन को प्राथमिकता दी जाए।
हर कालिमा के बाद सुनहली भोर होती है। जीवन उम्मीदों और अपेक्षाओं से लबरेज है। सभी मे कुछ अप्रत्याशित करने की अप्रतीम ऊर्जा और साहस है।
जरूरत है कि परमपिता द्वारा प्रदत्त इस असीम ऊर्जा को देशहित में केंद्रित किया जाय। रात गई बात गई।जो बीत गया वापस नही आता और बीती बातों के अनावश्यक विश्लेषण में भविष्य नष्ट करना मुनासिब नही है। आइये पिछले 73 वर्षों की उपलब्धियों पर गर्व करें औऱ इस स्वतंत्रता दिवस पर नई शुरुआत करें, अनुशासन और प्रतिबद्धता के साथ। अपनी सारी ऊर्जा देश की प्रगति पर केन्दित करें।
इस कृत्य से ही हमारी स्वतन्त्रता सार्थक और फलीभूत होगी।
@ज्ञानेंद्र मोहन खरे
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2) विचार गोष्टि
"आजादी के 73 वर्ष-क्या खोया, क्या पाया.."
15 अगस्त को आजादी के 74 वर्ष हो गए। आज अगर हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं तो उन असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों की बदौलत जिन्होंने आजादी का जज्बा जनमानस में जगाया और उसे अपने लहू से सींचा।भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इन 73 वर्षों में कमोबेश हमने तरक्की भी की है परंतु जरूरत है यह विश्लेषण करने की कि हमने आजादी के बाद केवल पाया ही है या कुछ खोया भी है..? कहते हैं कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है तो हम थोड़ा रुक कर विचार करें कि हमने क्या खोया है और क्या पाया है।
जहां तक आर्थिक व्यवस्था का प्रश्न है गरीबी पहले की अपेक्षा कम हुई है। पहले अनाज की समस्या थी।हमें विदेशों से अनाज आयात करना पड़ता था, परंतु हरित क्रांति ने इस समस्या को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है। अब हम अनाज के क्षेत्र में आत्मनिर्भर ही नहीं हो गए हैं, वरन् निर्यात भी करने लगे हैं।लेकिन यहाँ यह भी देखना होगा कि आज भी देश की 21.9% आबादी गरीबी रेखा से नीचे है जो चिंता का विषय है। महंगाई और बेरोजगारी की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है.. रुपए का मूल्य कम हो गया है। बदलते हालात में जरूरी है कि हम आर्थिक व्यवस्था और आर्थिक नीतियों पर पुनर्विचार करें और वर्तमान समस्याओं के सामाधान के अनुरूप अपनी आर्थिक नीति बनाएं। उद्योग के क्षेत्र में भी हमने बहुत प्रगति की है। कई कारखाने खुले हैं, बहुत सारी चीजें हम खुद अपने देश में ही बना रहे हैं लेकिन तकनीकी क्रांति के क्षेत्र में भारत थोड़ा पीछे रह गया है, उतनी प्रगति नहीं कर पाया है जितनी कि दूसरे देश कर पाए हैं।इसीलिए, बहुत सी तकनीक हमें विदेशों से आयात करनी पड़ रही है, जिसकी वजह से तकनीकी क्षेत्र में भारत अभी भी आत्मनिर्भर नहीं है और उसे चीन या अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। दवाइयों के क्षेत्र में काफी हद तक भारत आत्मनिर्भर है,बहुत सी मेडिकल सुविधाएं हम स्वयं उपलब्ध करा पा रहे हैं।इस कोरोना महामारी ने इस क्षेत्र की निर्भरता को काफी हद तक आत्मनिर्भरता में बदल दिया है।मास्क, पीपीई जैसी चीजें पहले हम चीन से मँगा रहे थे लेकिन अब न केवल खुद उत्पादन कर रहे हैं बल्कि समय-समय पर निर्यात भी कर पा रहे हैं।
सामाजिक क्षेत्र का जहाँ तक सवाल है, अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्र करते समय सांप्रदायिकता के ऐसे बीज बो दिये थे जिससे भारत तो दो टुकड़े में बँटा ही,धर्म और संप्रदाय के नाम पर लोगों में दूरियाँ बढ़ने लगी, जो कालांतर में गहरी खाई का निर्माण करने लगीं।नतीजतन अक्सर समाज में जाति, धर्म और अमीरी-गरीबी को लेकर दंगे होते रहते हैं जिसकी वजह से अक्सर देश की एकता खतरे में पड़ जाती है।इस संबंध में हमें बहुत गहराई से विचार करने की जरूरत है ताकि हम दुश्मनों की गंदी राजनीति का शिकार होने से बचें।पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे अब अंग्रेजी के गुलाम हो गए हैं। हमारी अपनी भाषा को जितनी ऊँचाई पर पहुँचकर हमारे देश का गौरव होना चाहिए,उस तरह की ऊँचाई अभी तक हासिल नहीं हो पायी है।हम आज भी अँग्रेजी बोलने को शान समझते हैं ओर हिन्दी को कमतर आँकते हैं।हमारी यह मानसिकता बताती है कि जब तक हम अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व करना नहीं सीखेंगे,आजादी पाकर भी गुलाम ही रहेंगे।लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि अपनी भाषा और संस्कृति के अनुसरण से ही हम खुशहाल हो सकते हैं। हालांकि इस दिशा में जंग जारी है और उम्मीद है कि शायद आगे के दिनों में हम अपना मकसद पूरा कर पायेंगे और अपनी भाषा और संस्कृति को भी उसका यथोचित स्थान दिला पायेंगे।
बाजारवाद और उदारीकरण के दौर में हमने मैटेरियलिस्टिक आजादी तो प्राप्त कर लिया है मगर कई मसलों पर हमें स्वतंत्र होने की अभी भी आवश्यकता है। भौतिकता ने हमारे ड्राइंग रूम और घर के कोने कोने की सजावट को बदल तो जरूर दिया है परंतु हमारे आचार विचार को भी पूर्णतया भारतीय करने की जरूरत है।देश भर में बचत की आदत विकसित हुई है। प्रधानमंत्री जनधन योजना के द्वारा लोगों के बैंक खाते खोलकर उन्हें घरेलू गैस सब्सिडी और बीमा का लाभ दिया गया है। देश की महिलाएं नौकरी पेशा हो रही हैं।राजनीति से लेकर अन्य क्षेत्रों में भी महिलाएँ योगदान दे रही हैं।परन्तु महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। तकनीकी विकास की वजह से अपने से दूर बैठे व्यक्ति से हम चर्चा कर सकते हैं लेकिन हम अपनों से ही दूर होते जा रहे हैं। हम सुविधा भोगी हो गए हैं और नैतिक मूल्यों को भूल रहे हैं।बच्चे बुजुर्गों से दूर हो रहे हैं। सामाजिक भारतीयता का बाजारीकरण तो बहुत अच्छा हो गया है परंतु हमारा दिल वास्तव में हिंदुस्तानी रहा है या नहीं इस पर विचार करने की जरूरत है।
वर्तमान में सफलता का पर्याय आधुनिक और महानगरों में बड़े पैकेज का पा लेना मान लिया जाता है, परंतु छोटे शहर और गांव विकास के लिए आज भी सरकारी योजनाओं की बाट जोहते रहते हैं।यहाँ के युवा अपने सपने लेकर शहरों की तरफ रुख करते हैं और कई बार किसी एक जगह के नहीं रह पाते, रोजी रोटी की खोज में पूरी तरह से विस्थापित हो जाते हैं।इन छोटे शहरों को विकास के पैमाने पर अक्सर नकार दिया जाता है। यद्यपि हाल के दिनों में बहुत कार्य हो रहे हैं, इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत लोगों को घर दिये जा रहे हैं,शौचालय जैसी छोटी व्यवस्था पर भी सरकार का ध्यान गया है और बहुत से नये नियम बनाकर समाज की व्यवस्था को ठीक करने की कोशिश की जा रही है।
बाजार अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। बाजार चलेंगे तो देश चलेगा...बाजार को सुचारू रूप से चलाने के लिए किसान को संपन्न बनाने की जरूरत है।किसानों की हालत पहले से कुछ बदली जरूर है,उन्हें साहूकारों के चंगुल से मुक्ति मिल गई है परंतु फिर भी किसान अक्सर निम्न स्तर की राजनीति के शिकार हो जाया करते हैं, जो भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए उचित नहीं।इस संबंध में भी सुदृढ़ नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है। डिजिटल इंडिया के निर्माण की दिशा में क्रांतिकारी कदम ने छोटे-छोटे गाँवों को भी विकास के कार्यों से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है और कृषि के क्षेत्र में काफी फायदा दिया है।
देश आधुनिकता की राह पर बढ़ रहा है और अब आत्मनिर्भरता का मंत्र भी आत्मसात करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है जो निश्चय ही भारत के लिए सुनहरा भविष्य गढ़ेगा। तेजस, राफेल जैसे विमान हमारे पास आ गए हैं..रक्षा के बहुत से उपकरण हम आयात कर रहे हैं ताकि देश की सुरक्षा को मजबूत किया जा सके।मेक इन इंडिया जैसे मंत्र से कई रक्षा उपकरण हम बना भी रहे हैं और निर्यात भी कर रहे हैं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत ने कई मुकाम हासिल किए हैं।
हमारी विदेश नीति भी सफल रही है ओर समय-समय पर हम दुश्मनों की चुनौतियों का जवाब भी दृढ़ता से दे रहे हैं।हाल के दिनों के एयरस्ट्राईक और सर्जिकल स्ट्राईक इसके जीवन्त उदाहरण हैं।
कुल मिलाकर देखा जाये तो हमने बदलते समय के हिसाब से स्वयं को बदला है और विकास की ओर तेजी से अग्रसर हैं।आत्मनिर्भरता की नीति पर तेजी से काम हो रहा है और शीघ्र ही हम इस उद्देश्य में भी सफल होंगे।जरूरत है कि युवाओं को रोजगार मिले, शिक्षा व्यवस्था समय के अनुसार बदले और समाज का बौद्धिक विकास हो। यह जरूर है कि बीच-बीच में आपसी विश्वास और अपनी संस्कृति के प्रति आस्था में थोड़ी कमी दिखाई दे जाती है,परन्तु समय के साथ हम भारतीय भी जागरूक हो रहे हैं और इस कमी को भी शीघ्र ही दूर कर देंगे।जब हर तरफ शांति होगी, हर कोई खुशहाल होगा, तभी देश सही मायने में आजाद कहलायेगा और हम विश्व गुरू के स्थान पर खड़े होंगे।
अर्चना अनुप्रिया।
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3)विचार गोष्ठी
साहित्य कुंज के तत्वावधान में स्वतंत्रता दिवस समारोह के अंगीभूत आयोजित ऑनलाइन विचार गोष्ठी के उद्घाटन कर्ता, अत्यंत ही चर्चित व्यक्तित्व, परम आदरणीय ज्ञानेंद्र मोहन खरे साहब, इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में अपनी गरिमामयी उपस्थिति से उपकृत कर रहे भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी सम्माननीय विजय प्रकाश जी, इस कार्यक्रम के सम्मानित अध्यक्ष और युवा कवि श्री राम राय जी, इस साहित्यिक संस्था के महासचिव और चर्चित कवि अरविंद अकेला जी, स्वागत कर्ता के रूप में अपनी भूमिका निभाने कर वाले चर्चित कवि और कथाकार धनंजय जयपुरी जी, कवि एवं कुशल वक्ता नागेंद्र केसरी जी एवं ऑनलाइन कार्यक्रम से जुड़े तमाम प्रबुद्ध सज्जनों !
आज का विषय अत्यंत ही समीचीन और समयानुकूल है ।देश को स्वतंत्रता प्राप्त किए सात दशक से अधिक हो गए ,ऐसी स्थिति में यह आलोच्य विषय कि हमने इस कालखंड में 'क्या खोया क्या पाया' अत्यंत ही प्रासंगिक है/ मेरी अपनी मान्यता है कि देश ने कुछ क्षेत्रों में निश्चित रूप से आशा केअनुरूप प्रगति का सफर तय कर लिया है, तथापि कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जो अभी भी विकास की किरणों की बाट जोह रहे हैं ।
सबसे पहले मैं उन तथ्यों की ओर आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहूंगा जिन्हें प्राप्त करना शेष है। हम जानते हैं कि हजार वर्षों की गुलामी के बाद जब देश ने स्वतंत्रता प्राप्त की तो यहां की सामाजिक आर्थिक तथा सांस्कृतिक व्यवस्था बिल्कुल तार तार थी।
भूमि उर्वर होने के बाद भी जलसंपदा का उचित उपयोग ना हो पाना ,सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में अपेक्षा के अनुरूप काम ना होना साथ ही देहाती सुदूर क्षेत्रों में चिकित्सा, शिक्षा ,यातायात पर सम्यक जोर न दिया जाना देश की प्रगति को मुंह चिढ़ाते रहे ।एक बात और बड़ी कुरेद ने वाली प्रतीत होती है कि जैसे-जैसे समृद्धि बढ़ रही है क्रमशः लोगों के राष्ट्रभक्ति की भावना विलोपित होती जा रही है।
अभी भारत को एक सर्वमान्य राष्ट्रभाषा ,कॉमन सिविल कोड, जनसंख्या नियंत्रण की नीति पर सम्यक काम करना है। समाज के बूढ़े ,विकलांग और वंचित वर्ग, अभी भी त्रासद जिंदगी जी रहे हैं। मानव श्रम का सदुपयोग ना होना, अतिवाद, आतंकवाद, धार्मिक उन्माद और जातीयता अलगाव की हवा दे रहे हैं ।अभी भी जो युद्ध क सामग्रियों और रसायन के मामले में हम परावलंबी हैं। अभी ढेर सारे काम करने शेष रह गए हैं।
परंतु जब दूसरे पक्ष पर दृष्टि निक्षेप करते हैं तो पाते हैं कि विसंगतियों, प्रतिकूलता और साधन हीनता के बाद भी देश ने कुछ क्षेत्रों में प्रगति की है। जल संसाधन का सदुपयोग होने से अपनी भूमि की उर्वरता बढीहै ।हम खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर ही नहीं बल्कि निर्यात करने की स्थिति में भी हैं ।संचार क्षेत्र में तो मानो ऐसी क्रांति आई हुई है कि दुनिया के कई विकसित क्षेत्रों से हम होड. ले रहे हैं।
अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण हो,या बुलेट ट्रेन चलाने की योजना, अथवा सीमाओं की सुरक्षा का प्रश्न हो ,देश बखूबी अपने उज्जवल भविष्य के रास्ते पर अग्रसर है ।अभी स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले के प्राचीर से देश के यशस्वी प्रधानमंत्री ने देश की उपलब्धियों को गिनाते हुए लोगों को आश्वस्त किया कि वह दिन दूर नहीं जब, हम युद्धक सामग्रियों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेंगे ।इस वैश्विक महामारी कोरोना की वैक्सीन निकट भविष्य में सबको उपलब्ध होगी ।देश पुनः एक बार अपनी गति और लय से प्रगति .पथ पर चल पड़ेगा ।'वोकल फांर लोकल' स्वदेशी करण का मंत्र के साथ ही शिक्षा, चिकित्सा, संचार ,यातायात आदि की सुबिधा देश की संपूर्ण आबादी को मिल सके, के खातिर आश्वस्त किया ।
जब हम तुलनात्मक दृष्टि से विकास के कार्यों को देखते हैं तो ढेर सारे काम हुए प्रतीत होते हैं।
कश्मीर से 370 धारा का हटना, 35a की समाप्ति, नारी प्रताड़ना का प्रतीक तीन तलाक प्रथा का अंत , शोध पर बल, अब अपने देश को प्राचीन गौरव गरिमा दिलाने के लिए मूल मंत्र साबित हो रहे हैं ।समास शैली का आश्रय लेते हुए यह कहा जा सकता है कि कुछ क्षेत्रों को छोड़कर देश ने काफी तरक्की की है प्रगति के सोपान तय किए हैं ।अंत में वीरेन डंगवाल की कविता को उद्धृत करते हुए :--
मैं नहीं तसल्ली झूठ मुठ की देता हूं
हर सपने के पीछे सच्चाई होती है हर दौर कभी तो खत्म हुआ ही करता है
हर कठिनाई कुछ राह दिखा ही देती है।
बहुत-बहुत धन्यवाद
जय हिंद, जय भारत
डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र
संपादक
समकालीन जवाबदेही
औरंगाबाद
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4) विचार गोष्टि
कितना अच्छा लगता है आज आज़ादी में साँस लेना और अपने को स्वतन्त्र कह कर गर्वित होना ।
पर क्या कभी पीछे मुड़ कर देखा है कि इस आज़ादी के लिए हमारे पूर्वजों से कितना संघर्ष किया ,कितनी माँओं ने एक भी अश्रुबिंदु गिराए हुए देश पर अपने नौजवान ही नही अबोध बालक भी न्यौछावर कर दिए ।
रानी लक्ष्मी बाई से शुरू हुआ गुलामी के विरुद्ध युद्ध मंगल पांडे के विरोध से होता हुआ भगत सिंह,राज गुरु आजाद, सहदेव , बटकेश्वर, दुर्गा भाभी,गुलाब बाई , सावरकर से चलता हुआ लाल, बाल, पाल से संरक्षित गांधी जी के आवाहन पर बच्चा बच्चा इस स्वतन्त्र यज्ञ में प्राणों के समिधा ले कर खड़ा था ।
एक तरफ क्रांतिकारी थे और एक तरफ अहिंसा वादी,तीसरा रास्ता सुभाष का था जो अपने ही देश से विस्थापित हो दूसरे देश की धरती से अंग्रेजो के पाँव उखाड़ने में लगे थे ।
अंग्रेजो ने पाँव उखड़ते देख कर कूटनीति के तहत देश का बंटवारा कर दिया , ये नासूर अब तक सालता है देश वासियों को ।
न जाने कितने ऐसे वीर क्रांतिकारी व अहिंसावादी लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी जिनका नाम इतिहास के किसी पन्ने पर अंकित नही हैं ।
आज हम आज तिरंगा शान से फहरा कर स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं ।
इस बेशकीमती स्वतंत्रता का मोल तभी पता चलता है जब हम इतिहास के गर्भ से कुछ खोज निकाल लाते हैं
इन चौहत्तर सालों में हमने क्या खोया और क्या पाया ।
देश निरन्तर चलायमान है नित नए आयाम आगे बढ़ने के देश को समृद्ध करने के गढ़ रहा है ।
साथ ही भ्रष्टाचार रिश्वत खोरी नेताओं से चलते चलते जन मानस में ऐसे घुस गई जैसे प्राणों के किये वायु । एक दूसरे को आरोपित करना और स्वं निरीक्षण न करना मानव दुर्बलता बन गई ।
मैं क्यों तू कर की मनोस्थिति ने देश को पीछे धकेलना शुरू कर दिया विकास के नाम पर बेइंतहा जंगलों की कटाई ने पर्यावरण विक्षोभ पैदा कर दिया जिससे प्राकृतिक आपदाओं ने घेर लिया ।
युग परिवर्तन होता ही है फिर से समय ने करवट ली सत्ता की बाग ध्र थामने वाले हाथ बदले और अब कुछ व्यवस्था पटरी पर आनी शुरू हुई ।
देश भक्ति की अलख जगी , राजनैतिक मुद्दे जो गले में फंसी हड्डी की तरह थे खत्म हुए, चाहे वो धारा तीन सौ सत्तर हो , तीन तलाक हो या न्यायालय में चल रहा राम जन्म भूमि का मुद्दा ।
एक बार फिर विश्व ने भारत का लोहा माना । स्वाभिमान से खड़ा भारत एक बार फिर विश्व गुरु की भाँति आगे बढ़ने की ओर निर्बाध अग्रसर है ।
पूरे विश्व को योग के रूप में स्वास्थ्य का उपहार देने वाला भारत ही है जिसके कारण अब 21 जून अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
जो देश भारत को हेय दृष्टि से देखते थे अब भारत की ओर आशा से देख रहें हैं ।
विश्व कोरोना काल से संक्रमित है भारत भी अछूता नहीं पर निरंतर सही समय पर लिए गए निर्णय बीमारी से बचने का साधन बन रहे हैं । भारत में कोरोना को मात देकर बचने का प्रतिशत विश्व में सबसे ज्यादा है , जिसका सबसे बड़ा कारण भोजन का शाकाहारी होना माना जा रहा है ।
अब जरूरत है नागरिकों के कर्तव्य निष्ठ व ईमानदार हो कर पालन करने की ।
देश के प्रति समर्पण व नीतियों का पालन हम सबको करना होगा, अब स्वतंत्रता का ये ही मूल मंत्र है।
आगे बढिये और मानसिक गुलामी से निकल कर पूर्ण स्वतंत्रता की ओर मिल कर क़दम बढ़ाए ,ये प्रण धारिए।
स्वतन्त्र लेखन
निशा"अतुल्य"
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5) विचार गोष्टि
"आजादी के 73वर्ष-क्या खोया, क्या पाया.."
15 अगस्त को आजादी के 74 वर्ष हो गए। आज अगर हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं तो उन असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों की बदौलत जिन्होंने आजादी का जज्बा जनमानस में जगाया और उसे अपने लहू से सींचा।भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इन 73 वर्षों में कमोबेश हमने तरक्की भी की है परंतु जरूरत है यह विश्लेषण करने की कि हमने आजादी के बाद केवल पाया ही है या कुछ खोया भी है..? कहते हैं कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है तो हम थोड़ा रुक कर विचार करें कि हमने क्या खोया है और क्या पाया है।
जहां तक आर्थिक व्यवस्था का प्रश्न है गरीबी पहले की अपेक्षा कम हुई है। पहले अनाज की समस्या थी।हमें विदेशों से अनाज आयात करना पड़ता था, परंतु हरित क्रांति ने इस समस्या को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है। अब हम अनाज के क्षेत्र में आत्मनिर्भर ही नहीं हो गए हैं, वरन् निर्यात भी करने लगे हैं।लेकिन यहाँ यह भी देखना होगा कि आज भी देश की 21.9% आबादी गरीबी रेखा से नीचे है जो चिंता का विषय है। महंगाई और बेरोजगारी की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है.. रुपए का मूल्य कम हो गया है। बदलते हालात में जरूरी है कि हम आर्थिक व्यवस्था और आर्थिक नीतियों पर पुनर्विचार करें और वर्तमान समस्याओं के सामाधान के अनुरूप अपनी आर्थिक नीति बनाएं। उद्योग के क्षेत्र में भी हमने बहुत प्रगति की है। कई कारखाने खुले हैं, बहुत सारी चीजें हम खुद अपने देश में ही बना रहे हैं लेकिन तकनीकी क्रांति के क्षेत्र में भारत थोड़ा पीछे रह गया है, उतनी प्रगति नहीं कर पाया है जितनी कि दूसरे देश कर पाए हैं।इसीलिए, बहुत सी तकनीक हमें विदेशों से आयात करनी पड़ रही है, जिसकी वजह से तकनीकी क्षेत्र में भारत अभी भी आत्मनिर्भर नहीं है और उसे चीन या अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। दवाइयों के क्षेत्र में काफी हद तक भारत आत्मनिर्भर है,बहुत सी मेडिकल सुविधाएं हम स्वयं उपलब्ध करा पा रहे हैं।इस कोरोना महामारी ने इस क्षेत्र की निर्भरता को काफी हद तक आत्मनिर्भरता में बदल दिया है।मास्क, पीपीई जैसी चीजें पहले हम चीन से मँगा रहे थे लेकिन अब न केवल खुद उत्पादन कर रहे हैं बल्कि समय-समय पर निर्यात भी कर पा रहे हैं।
सामाजिक क्षेत्र का जहाँ तक सवाल है, अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्र करते समय सांप्रदायिकता के ऐसे बीज बो दिये थे जिससे भारत तो दो टुकड़े में बँटा ही,धर्म और संप्रदाय के नाम पर लोगों में दूरियाँ बढ़ने लगी, जो कालांतर में गहरी खाई का निर्माण करने लगीं।नतीजतन अक्सर समाज में जाति, धर्म और अमीरी-गरीबी को लेकर दंगे होते रहते हैं जिसकी वजह से अक्सर देश की एकता खतरे में पड़ जाती है।इस संबंध में हमें बहुत गहराई से विचार करने की जरूरत है ताकि हम दुश्मनों की गंदी राजनीति का शिकार होने से बचें।पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे अब अंग्रेजी के गुलाम हो गए हैं। हमारी अपनी भाषा को जितनी ऊँचाई पर पहुँचकर हमारे देश का गौरव होना चाहिए,उस तरह की ऊँचाई अभी तक हासिल नहीं हो पायी है।हम आज भी अँग्रेजी बोलने को शान समझते हैं ओर हिन्दी को कमतर आँकते हैं।हमारी यह मानसिकता बताती है कि जब तक हम अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व करना नहीं सीखेंगे,आजादी पाकर भी गुलाम ही रहेंगे।लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि अपनी भाषा और संस्कृति के अनुसरण से ही हम खुशहाल हो सकते हैं। हालांकि इस दिशा में जंग जारी है और उम्मीद है कि शायद आगे के दिनों में हम अपना मकसद पूरा कर पायेंगे और अपनी भाषा और संस्कृति को भी उसका यथोचित स्थान दिला पायेंगे।
बाजारवाद और उदारीकरण के दौर में हमने मैटेरियलिस्टिक आजादी तो प्राप्त कर लिया है मगर कई मसलों पर हमें स्वतंत्र होने की अभी भी आवश्यकता है। भौतिकता ने हमारे ड्राइंग रूम और घर के कोने कोने की सजावट को बदल तो जरूर दिया है परंतु हमारे आचार विचार को भी पूर्णतया भारतीय करने की जरूरत है।देश भर में बचत की आदत विकसित हुई है। प्रधानमंत्री जनधन योजना के द्वारा लोगों के बैंक खाते खोलकर उन्हें घरेलू गैस सब्सिडी और बीमा का लाभ दिया गया है। देश की महिलाएं नौकरी पेशा हो रही हैं।राजनीति से लेकर अन्य क्षेत्रों में भी महिलाएँ योगदान दे रही हैं।परन्तु महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। तकनीकी विकास की वजह से अपने से दूर बैठे व्यक्ति से हम चर्चा कर सकते हैं लेकिन हम अपनों से ही दूर होते जा रहे हैं। हम सुविधा भोगी हो गए हैं और नैतिक मूल्यों को भूल रहे हैं।बच्चे बुजुर्गों से दूर हो रहे हैं। सामाजिक भारतीयता का बाजारीकरण तो बहुत अच्छा हो गया है परंतु हमारा दिल वास्तव में हिंदुस्तानी रहा है या नहीं इस पर विचार करने की जरूरत है।
वर्तमान में सफलता का पर्याय आधुनिक और महानगरों में बड़े पैकेज का पा लेना मान लिया जाता है, परंतु छोटे शहर और गांव विकास के लिए आज भी सरकारी योजनाओं की बाट जोहते रहते हैं।यहाँ के युवा अपने सपने लेकर शहरों की तरफ रुख करते हैं और कई बार किसी एक जगह के नहीं रह पाते, रोजी रोटी की खोज में पूरी तरह से विस्थापित हो जाते हैं।इन छोटे शहरों को विकास के पैमाने पर अक्सर नकार दिया जाता है। यद्यपि हाल के दिनों में बहुत कार्य हो रहे हैं, इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत लोगों को घर दिये जा रहे हैं,शौचालय जैसी छोटी व्यवस्था पर भी सरकार का ध्यान गया है और बहुत से नये नियम बनाकर समाज की व्यवस्था को ठीक करने की कोशिश की जा रही है।
बाजार अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। बाजार चलेंगे तो देश चलेगा...बाजार को सुचारू रूप से चलाने के लिए किसान को संपन्न बनाने की जरूरत है।किसानों की हालत पहले से कुछ बदली जरूर है,उन्हें साहूकारों के चंगुल से मुक्ति मिल गई है परंतु फिर भी किसान अक्सर निम्न स्तर की राजनीति के शिकार हो जाया करते हैं, जो भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए उचित नहीं।इस संबंध में भी सुदृढ़ नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है। डिजिटल इंडिया के निर्माण की दिशा में क्रांतिकारी कदम ने छोटे-छोटे गाँवों को भी विकास के कार्यों से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है और कृषि के क्षेत्र में काफी फायदा दिया है।
देश आधुनिकता की राह पर बढ़ रहा है और अब आत्मनिर्भरता का मंत्र भी आत्मसात करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है जो निश्चय ही भारत के लिए सुनहरा भविष्य गढ़ेगा। तेजस, राफेल जैसे विमान हमारे पास आ गए हैं..रक्षा के बहुत से उपकरण हम आयात कर रहे हैं ताकि देश की सुरक्षा को मजबूत किया जा सके।मेक इन इंडिया जैसे मंत्र से कई रक्षा उपकरण हम बना भी रहे हैं और निर्यात भी कर रहे हैं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत ने कई मुकाम हासिल किए हैं।
हमारी विदेश नीति भी सफल रही है ओर समय-समय पर हम दुश्मनों की चुनौतियों का जवाब भी दृढ़ता से दे रहे हैं।हाल के दिनों के एयरस्ट्राईक और सर्जिकल स्ट्राईक इसके जीवन्त उदाहरण हैं।
कुल मिलाकर देखा जाये तो हमने बदलते समय के हिसाब से स्वयं को बदला है और विकास की ओर तेजी से अग्रसर हैं।आत्मनिर्भरता की नीति पर तेजी से काम हो रहा है और शीघ्र ही हम इस उद्देश्य में भी सफल होंगे।जरूरत है कि युवाओं को रोजगार मिले, शिक्षा व्यवस्था समय के अनुसार बदले और समाज का बौद्धिक विकास हो। यह जरूर है कि बीच-बीच में आपसी विश्वास और अपनी संस्कृति के प्रति आस्था में थोड़ी कमी दिखाई दे जाती है,परन्तु समय के साथ हम भारतीय भी जागरूक हो रहे हैं और इस कमी को भी शीघ्र ही दूर कर देंगे।जब हर तरफ शांति होगी, हर कोई खुशहाल होगा, तभी देश सही मायने में आजाद कहलायेगा और हम विश्व गुरू के स्थान पर खड़े होंगे।
अर्चना अनुप्रिया।
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6) विचार गोष्टि
🙏आज का विषय🙏
*आज़ादी के 73 वर्ष -----क्या खोया क्या पाया हमने* ?
मेरे देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को नमन है।🙏
*बात मत पूछो क्या खोया क्या पाया है*।
*सब कुछ खोकर इस स्वतंत्रता को पाया है* ।
देश के वीरों के बलिदान को स्मरण करने के साथ -साथ हमें अपना आत्मचिंतन भी करना है। हम आप स्वतंत्र हैं ।आज जिन शहीदों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के कारण हमें आजादी मिली है। आज वही 73साल की हो गई है। शहीदों ने आजादी का उपहार दिया है हम क्या पा सकते है और क्या खो सकते हैं ,हम पर निर्भर है।आजादी विशाल वटवृक्ष का रूप ले चुकी है। आज हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है ।हमारे देश ने इन 73 वर्षों में अपने सभी क्षेत्र में तरक्की की है जैसे विज्ञान,कृषि,खेल,अंतरिक्ष, साहित्य, शिक्षा, तकनीकी , चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों में विकास किया है। औसत भारतीय से पूछिए कि क्या वह पड़ोसी देश पाकिस्तान ,बंगलादेश,नेपाल,चीन आदि में बसना चाहेगा?तो अधिकांश उत्तर न होगा।यहीं हमारी सफलता की विशेषता है।यह वर्ष तो ऐतिहासिक रहा।एक तरफ कोरोना तो दूसरी तरफ 370, राम मंदिर का भूमि पूजन होना जिसकी प्रतीक्षा 600 वर्षों से थी। हमने अध्यात्म के क्षेत्र में उन्नति की है ।योग ,भारत माता की सनातन संस्कृति के गर्भ से निकला एक उपहार है। हमारा देश अंतरिक्ष महाशक्ति बन चुका है ।राफेल पाकर हमारी सेना मजबूत हो गई है।
*बदल गया था बहुत कुछ मुझ में*।
*पहले था जैसा अब नहीं था*।
*पाया यहाँ पर बहुत कुछ मैंने*।
*पर जो खोया वह सब नहीं था*।
हमें दुख है इतनी तरक्की करने के बाद भी सामाजिक बुराइयाँ खत्म नहीं हुई है। राजनीतिक स्वार्थ के लिए जातिवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है।अब तो सरकार भी खरीदी -बेची जा सकती है।बेरोजगारी चिंता का विषय है। बेरोजगार ऐसे युवाओं की बड़ी फौज खड़ी है जो न केवल बेरोजगार है बल्कि प्रतिस्पर्धा के दौर में किसी रोजगार की योग्य नहीं है। नैतिक मूल्य, स्वार्थ भाव ,समन्वय वादी दृष्टिकोण, धार्मिक सहिष्णुता , परस्पर प्रेम, भाईचारा, आदि बहुत कुछ खो दिया है। गरीबी ,भेदभाव, गन्दी राजनीति, आदि को हटाने के लिए सब पर भी ध्यान देना है।पर सबसे बड़ी बात है कि हम परतन्त्र नहीं है।हमारे देश की अच्छाई के लिए हम निर्णय ले सकते हैं।पर्यावरण मुँह बिचका रहा है। बहुत कुछ पाकर भी क्यों अधूरा -सा हूँ मैं? एक प्रश्न है जिसके उत्तर हमें पाने हैं।
मीना जैन दुष्यंत भोपाल
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7)विचार गोष्टि
विषय - आजादी के बाद क्या
बदलाव आया और क्या खोया
सभी सहित्यकुज के महानुभावों को मेरा प्रणाम एवं नमस्कार🙏🏻🙏🏻।।इस पटल पर आज अपने विचार शेयर करते हुए बहुत गौरवान्वित महसूस हो रहा है।
मनुष्य में समय के साथ बदलाव बहुत आवश्यक है और अगर समय के साथ बदलाव ना हो तो बुजुर्गो का मानना है कि मनुष्य की सफलता आगे चल कर रुक जाती है ।और अगर बात आजादी से लेकर आज तक के बदलाव कि हो तो देश के साथ साथ प्रतेक मनुष्य के जीवनशैली और कर्यशयली में काफी बदलाव आया है। आजादी के बाद हमें लोकतंत्र मिला जिसे हम अन्य शब्दों में प्रजातंत्र के नाम से भी जानते है। इसमें सरकार का गठन लोगो के मत के द्वारा होता है और इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि लोग अपने द्वारा चुने गए सरकार से सवाल पूछने के लिए पूरी छूट दी गई है,और इसमें सबसे बड़ा सौभाग्य ये रहा है कि हमलोग का लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।और आजादी के बाद हमें नई संविधान मिली जिसे बनाने में कई लोग ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। इस संविधान में सभी को बराबर अधिकार मिला है और खासकर इस संविधान को बनाते समय महिलाएं पर भी खास ध्यान केंद्रित किया गया है। आजादी के बाद हमें अपना देश का अलग झंडा मिला जिसे देख सिना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
आजादी के बाद हमें रेलवे का सुविधा मिला जो एक तरह से मनुष्य के लिए वो रीढ़ की हड्डी के तरह महत्वपूर्ण है चाहे वो गरीब हो या अमीर।। कहते है मनुष्य का स्वभाव दीपक की तरह होना चाहिए जो अमीर के घर में भी उतना रोशनी देता है जितना गरीब के घर में ।वैसे ही स्वभाव से परिपूर्ण , यशस्वी , कर्मठी हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को देश ने आजादी के बाद खो दिया जिसकी पूर्ति करना बहुत मुश्किल है । महात्मा गांधी योगदान जो आजादी के रहा है उसे शब्दों मै बया किया जाए तो वो नाइंसाफी होगा क्युकी उनका योगदान शब्दों से परे है। आजादी के बाद जमींदारी प्रथा का भी अंत हो गया और उसके बाद प्रजातंत्र का आगमन हुआ। कहा गया ज़िंदगी लंबी नहीं यादगार होनी चाहिए तो इस चीज पर शत प्रतिशत हमारे सभी स्वतंत्रता सेनानी खरे उतरे है जिन्होंने अपने देश के लिए अपनी जान जवानी में ही न्योछावर कर दिया तब जाकर हमें आजादी मिली। आजादी के बाद शिक्षा व्यस्वस्था में भी कभी बदलाव आया है और पहले से काफी लोग अपने संतान को शिक्षित करने पर ध्यान आकर्षित कर रहे है।। कहते है ज़िंदगी लंबी नहीं यादगार होनी चाहिए , सभी शहीदों ने हमें आजादी देकर अपना जीवन यादगार बना लिया और आज भी हमलोग के दिल में बसे है।।
लेखक - ब्रजराज सिंह (औरंगाबाद)
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8)विचार गोष्टि
साहित्य कुंज, औरंगाबाद द्वारा आयोजित अत्यंत महत्वपूर्ण विषय "आजादी के 73 वर्ष बाद क्या पाया क्या खोया "पर विचार हेतु आज की ऑन लाइन संगोष्ठी के अध्यक्ष श्री राम राय जी ,संचालक श्री अरविंद अकेला जी, उद्घाटन कर्ता श्री ज्ञानेंद्र मोहन खरे जी, मुख्य वक्ता आदरणीय विजय प्रकाश जी तथा आदरणीय विशिष्ट वक्ता गण एवं अन्य सभी प्रतिभागी भाइयों एवं बहनो।मेरे विचार से स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही नागरिक आजादी मिल गई। अपना संविधान बना। अपनी लोकतांत्रिक सरकार बनी और हम सभी भारतीय स्वतंत्र वातावरण में सांस लेकर पूर्ण स्वतंत्र हो गए ।परंतु, प्रारंभिक दिनों से ही आर्थिक और भौतिक विकास पर विशेष जोर दिए जाने के बावजूद भी लोक सरोकार की बातें गौण होने लगी। जातीय ,वर्गीय, क्षेत्रीय, धार्मिक तुष्टीकरण और ध्रुवीकरण का बीज अंकुरित होकर विशाल वृक्ष का रूप धारण कर लिया। सिस्टम में अनेक व्यवस्था सम्बन्धी चुनौतियां सामने आने लगी ।आजादी के बाद पाया खोया की एक संक्षिप्त सूची विचार के लिए आज सामने रख रहा हूं।भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही औद्योगिकरण और शहरीकरण की प्रक्रिया के साथ ही भारत की आत्मा अर्थात गांव वीरान होने लगे और शरीर अर्थात शहर सुंदर बनने लगे। स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही भ्रष्टाचार का भी आगमन हो गया और स्वार्थपरता बढ़ने लगी। हम विश्वविद्यालय की डिग्री लेकर शिक्षित तो कहलाने लगे, लेकिन हमारे संस्कार समाप्त होने लगे। व्यक्तिवाद को अपनाकर समाजवाद को भूल गए ।स्वतंत्रता पूर्व जो राष्ट्रवादी भावनाएं यहां देखी जाती थी वह धीरे-धीरे नष्ट हो गयी। जिस शिक्षा व्यवस्था को अपनाया गया उसे मानवता का तो ह्रास हुआ ही,साथ ही आतंकवाद और विघटनकारी तत्वों की शक्ति बढ़ी। चिकित्सालयों की संख्या बढ़ी पर चिकित्सा समाप्त हो गई। हम अपने लिए जीना सीख गए और परिवार तथा समाज को लात मार दिए। न्यायालय बढ़े पर न्याय की स्थिति कमजोर पड़ गई ।सभी कार्यों के लिए अनेक विभाग बने, लेकिन पूर्ण विकास छलावा साबित हुआ। नहरे बढ़ी पर नदियां मर गई। वन विभाग बढ़े पर वन नष्ट हो गए। सड़कों ने कस्बा, गांव और शहरों को जोड़ दिया लेकिन मानव मानव के बीच के संबंध लगभग टूट गए। कई प्रकार के सुरक्षा बल बने , लेकिन समाज में चोरी, हत्या, लूट, बलात्कार आदि की घटनाएं बढीं। कल कारखाने बढ़े,लेकिन बेरोजगारी ज्यों की त्यों बनी रही या कुछ बढ़ीं ही। गरीबी नियंत्रण के लिए अनेक योजनाएं बनी, लेकिन जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं बना। जनसंख्या बढ़ी, जनहित की भावना नहीं। घर घर,झोपड़ी झोपड़ी बिजली का प्रकाश फैला,लोगों के ह्रदय अंधकार में डूब गए। अब तक अनेक संवैधानिक संशोधन हुए ,लेकिन राष्ट्रीय जनसंख्या पंजी अभी तक नहीं बन पाई। हमने 73 वर्षों में अधिक बौद्धिक और अन्य सुविधाएं पायी, लेकिन मानवीय मूल्यों का ह्रास होते गया ।हमें खोई वस्तुओं को पाने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए ।जयहिंद।
शिव नारायण सिंह अवकाश प्राप्त प्रधानाध्यापक
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9)विचार गोष्टि
क्या खोया क्या पाया
16/7/2020
पदमा तिवारी दमोह
शिक्षा के क्षेत्र में
1947 के बाद वर्तमान समय तक शिक्षा में हमने उन्नति तो की साक्षरता दर में वृद्धि हुई ।लेकिन महिलाओं की शिक्षा दर में आशा जनक परिणाम देखने नहीं मिले। मेडिकल इंजीनियरिंग की तकनीक शिक्षा में हमने अभूतपूर्व उन्नति की। अधिकांश स्थानों पर इंजीनियरिंग कॉलेज भी खोले गए।
खोया - वहीं व्यवसायिक शिक्षा पाठ्यक्रम के विस्तार में काफी देर की जिसके परिणाम आज हमारी जननांगी मैं देखने को मिलते हैं उदाहरणार्थ केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल श्रमशक्ति का मात्र 7 प्रतिशत कौशल युक्त श्रम शक्ति है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में- आजादी के बाद से ही स्वास्थ्य सेवाओं मैं उन्नति देखी जा सकती है जिसका अनुमान हम 1947 के आसपास मातृ मृत्यु दर मातृ शिशुदर वर्तमान में 2020 में होने वाली मृत्यु दर मातृ शिशु दर जैसे आंकड़ों की तुलना कर देख सकते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं को और सशक्त बनाने के लिए लगातार प्रयासों में सबसे बड़ा प्रयास आयुष्मान भारत अभियान भारत में प्रारंभ हुआ।
खोया- जनसंख्या के अनुसार आज भी प्रति 15000 की जनसंख्या पर भारत में 1 डॉक्टर उपलब्ध है ।
इतने विकास के बाद भी हम स्वास्थ्य सेवाओं में G4 के देशों से काफी पीछे हैं।
आर्थिक क्षेत्र में'- आज लोगों की आय में वृद्धि तो हुई लेकिन उतनी नहीं जितनी आवश्यकता। उसी के साथ महंगाई भी चरम सीमा पर बढ़ गई।
ए सो चैम की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल संपत्ति का 90% देश के 10% लोगों के पास है आप अनुमान लगा सकते हैं कि हमने क्या खोया। हमारे देश में जिस तरह जनसंख्या तो बढ़ती है लेकिन उस अनुपात में संसाधनों की वृद्धि नहीं हो पाती जिसके फलस्वरूप सीमित संसाधनों का बंटवारा हमें पहले के मुकाबले अधिक लोगों के साथ करना पड़ता है नतीजतन हमारा आर्थिक विकास धीमा पड़ जाता है।
क्षेत्रीय असंतुलन- सामाजिक आर्थिक राजनीतिक घटकों के विकास में मुंबई दिल्ली बैंगलोर कोलकाता जैसे महानगरों में अभूतपूर्व विकास हुआ।
वहीं मेट्रो सिटी के अलावा बिहार झारखंड मध्य प्रदेश के कई महानगरों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। अब आप समझ सकते हैं कि जनता के हित में नहीं है।
भारतीय कृषक- देश की कुल श्रम शक्ति का लगभग 51% भाग कृषि एवं संबंधित उद्योग धंधों से अधिक का चलाता है ब्रिटिश काल में भारतीय कृषक अंग्रेजों एवं जमीदारों के जन्म से परेशान भी हाल थी आजादी के बाद सुधार हुआ।
खोया- परंतु जिस तरह कृषकों के शहरों की ओर पलायन एवं उसकी आत्महत्या की खबरें सुनने मिलती हैं उसे स्पष्ट है कि अपेक्षित सुधार नहीं हुआ स्थिति विकट है कोई कृषक अपने बच्चे को कृषक बनाना नहीं चाहते।
रेल से संबंधित- 16 अप्रैल 1853 को जब भारत में पहली रेलगाड़ी मुंबई से थाणेकी मध्य 34 किलोमीटर की दूरी तय की थी जब किसी ने सोचा ना होगा कि आने वाले दिनों में भारतीय रेलवे संसार में अपना दूसरा स्थान बना लेगी तब से लेकर आज तक रेल में बहुत तेजी से प्रगति की है इससे 14 लाख लोगों को रोजगार
मिला जो देश में किसी भी उपक्रम में सबसे अधिक है तथा केंद्रीय कर्मचारियों की संख्या का 40% है।
पदमा तिवारी दमोह
मो 9131470428,9630856049
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10)विचार गोष्टि
७4सालों में क्या खोया क्या पाया
स्वतंत्र भारत आज 74वर्ष का हो गया है। सभी पाठकों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई। यह अवसर औपनिवेशिक शासन से आजादी का जश्न मनाने, देश के सैंकड़ों वीर स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान और उनके बलिदान को स्मरण करने के साथ-साथ आत्मचिंतन करने का भी है। पिछले सात दशकों में क्या कुछ बदला है, क्या कुछ बदलना शेष है और एक महान राष्ट्र के तौर पर भारत में क्या संभावनाएं हैं तथा उसके समक्ष कौन-सीचुनौतियां मुंहबाए खड़ी हैं? स्वाभाविक रूप से इस पर मंथन और आकलन करने का यह उपयुक्त समय है।
हम सबसे बड़े राष्ट्र और बढ़ती जनसंख्या पर नम्बर दो पर पहुँच गये है !
कुछ हद तक ग़रीबी घटी पर युवाओं में नौकरी और सही वेतन न मिल पाने से कुंठा बढ रही है
स्वतंत्रता के 72 वर्ष बाद देश में कानून-व्यवस्था जितनी सुदृढ़ होनी चाहिए थी, उतनी बिल्कुल नहीं है।आये दिन चोरी डकैती बलात्कार हत्या के केस में बढ़ोतरी हो रही है !
पहले से अधिक सक्षम और आधुनिक हो गई है, किन्तु बलात्कार, यौन-उत्पीडऩ, घरेलू-हिंसा और मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी जैसे गंभीर अपराधों का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। क्या यह सत्य नहीं कि इस स्थिति के लिए समाज में नैतिक शिक्षा और संस्कारों के पतन व भौतिक सुख के साथ पाश्चात्य संस्कृति के प्रति आकर्षण सर्वाधिक जिम्मेदार हैं?
यदि कुछ संतोष करने लायक बात है तो वह आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और संवैधानिक रूप से महिलाओं की भागीदारी का लगातार बढऩा है
बेटियों को शिक्षा दी जा रही है
वो मेहनत कर आगे आ रही है !
बालविवाह। नहीं हो रहे !
प्रेम विवाह भी स्वीकारे जा रहे है !
देश में आज शिक्षा के साथ चिकित्सा के क्षेत्र में भी व्यापक सुधार हुआ है और गंभीर रोगों के प्रति लोगों की जागरूकता भी बढ़ी है। निम्न आय और गरीबों के लिए केन्द्र सरकार के अतिरिक्त विभिन्न सरकारों द्वारा सस्ता उपचार भी उपलब्ध करवाया जा रहा है
पर लूट तो हमेशा फन फैला कर बैठती है यह अलग मुद्दा है !
योग को पहचान मिली है
शिक्षा बहुत मंहगी हो गई है ।
संस्कारों का हांस हुआ है !
संयुक्त परिवार नहीं रहे एकल परिवार बढ रहे है !
माँ बाप को वृद्वाआश्रम में रखावजाने लगा है
हमारे यहाँ पहले गुरुकुल होते थे अब वृद्धा आश्रम होते है !
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई
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11) विचार गोष्टि
**आजादी के 74 साल बाद हमने क्या पाया क्या खोया**
सभी को नमस्कार
आजादी के इन 74 वर्षों में हमने बहुत कुछ पाया..... स्वतंत्र देश... अपना स्वतंत्र संविधान... आम नागरिक के लिए अधिकार.... कर्तव्य... पंचवर्षीय योजनाएं जिनमें आम नागरिक की भलाई के लिए उसे उस की आर्थिक दशा सुधारने के लिए काम मिलता था... देश को ऊपर लेकर जाना था...भारत एक विकासशील देश होते हुए भी अपना एक प्रभुत्व कायम कर पाया.. शिक्षा जगत व चिकित्सक जगत, औद्योगिक क्षेत्र, व्यापर हर क्षेत्र में बढ़ावा हुआ..
अगर हम जमीनी लेवल पर देखें तो हमने बहुत कुछ गवाया भी है.. आम इंसान की जिंदगी आज भी बहुत कठिन है उसे अपनी दो वक्त की रोटी के लिए आज भी बहुत मेहनत करनी पड़ती है.. आज देश में आर्थिक पाड़ा बहुत बड़ी ऊंचाई पर है.. जो गरीब है वह वही रहता है और अमीर और अमीर हो रहा है.. लोगों में प्यार भावना भ्रात्रिभाव बहुत कम हो रहा है.. शिक्षण संस्थान बढ़े लेकिन शिक्षा कम हो गई.. चिकित्सालय की संख्या बढ़ी लेकिन मैं लोगों को इलाज नहीं होता... बेरोजगारी बढ़ रही है जो हमारे पढ़े-लिखे बच्चे हैं उनको काम नहीं मिलता और वह देश छोड़कर भारत से बाहर जा रहे हैं.. जात पात बहुत बड़े लेवल पर बढ़ गया है..
हमारे बहुत से राजनीतिक दल हैं वह इसे बढ़ावा देते हैं.. लोगों को वोट बैंक ही समझते हैं इलेक्शन के बाद वह लोगों को कोई तवज्जो नहीं देते.. बेशक भारत एक खेतीबाड़ी प्रधान देश है... इसमें बहुत अनाज पैदा होता है लेकिन हमारा जो किसान है वह कर्जे तले दबा है खुदकुशी कर रहा है उसे अपनी मेहनत का मूल्य नहीं मिल पाता... इसी तरह विधार्थीयों को भी उसकी मेहनत का मूल्य नहीं मिल रहा.... बड़ी-बड़ी डिग्रियां करके विद्यार्थियों का शोषण होता है... इसीलिए किसान, विद्यार्थी और बहुत कम उम्र के जो बच्चे हैं वह आत्महत्या कर रहे हैं..
जरूरत है सिस्टम को सुधारने की, आम लोगों के लिए अच्छी भलाई स्कीमे बनाने की.. शिक्षा की, सेहत की जो भी योजनाएं बनती है.. उनका स्पष्ट लाभ आम पब्लिक को मिल सके... होता क्या है कि जो स्कीमें आम पब्लिक के लिए बनती है.. वह नीचे आते-आते दम तोड़ देती हैं..
अमरप्रीत कौर देहड़, लुधियाना पंजाब
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12) विचार गोष्टि
अध्यक्ष जी , मुख्य अतिथि तथा संगोष्ठी मे शामिल सभी को नमस्कार ।
बंधुओं, आजादी प्राप्त करने मे हजारों देशवासियों का त्याग और बलिदान शामिल है । उन तमाम लोगों को श्रद्धाजंलिअर्पित करते हुए कहना है कि जिन कारणों से देश गुलाम हुआ था , वह सभी कारण आज भी बिद्यमान है । उन कारणों को समाप्त कराने हेतु सरकार द्बारा कोई कार्य नहीं किया गया है । आज भी देशवासी जात-पात मे, उच्च- नीच मे बंटे हुये हैं । सम्प्रदायिकता को तो और बढ़ावा दिया गया है । इसी का नतीजा है देश का बंटवारा कर दिया गया , 370 के तहत विशेष सुविधा प्रदान की गयी तथा अल्पसंख्यक आयोग का गठन कर अल्पसंख्यकों को विशेष सुविधा दिया जा रहा है । वही लोगों द्धारा सुनने को मिलता है कि "हंस के लिया पाकिस्तान लड़ के लेंगे हिन्दुस्तान" । पहली बात तो यह कहना है कि देश कोअखंड रखना ही एक चुनौती है ।
मिलने के लिये संबिधान मिला , परन्तु संबिधान का अनुपालन कराने वाला कड़क सरकार नहीं मिली । सभी संबिधान को अपने अनुसार परिभाषित कर रहे हैं और अपने फायदे के लिये कार्य कर रहे हैं यही कारण है कि देश मे उग्रवाद , नक्सलवाद , सम्प्रदाय वाद के दंगे हो रहे हैं , जो विकास मे बाधक हैं। इस कारण हम विकास मे पिछड़े है । मूलभूत सुविधाओं से भी देशवासी बंचित है ।
बर्तमान दौर मे राष्ट्रवाद के महत्व देने वाले कार्य किये जा रहे है , देश को मान सम्मान देने वाला कार्य किये जा रहे हैं जिसके कारण आज देश का मान सम्मान दूनिया मे बढ़ा है । 370 हटाकर देश को मजबूती देने का कार्य किये जा रहे है । राममंदिर का निर्माण कर देश के सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा दिया जा रहा है परमाणु संपन्न बनकर देश को पांचवे स्थान पर पहुंचाया गया है । अब तो देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात भी हो रहा है । सुंदर भविष्य देखकर देश वासी सुखद अनुभव कर रहे हैं ।
सिद्धेश्वर विद्यार्थी
सभी विद्वतजनों को सादर नमन।
राकेश कुमार,डालटनगंज