लघुकथा
सराहनीय कार्य
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किसी सरकारी विभाग में बड़ा बाबू के पद पर कार्यरत ठाकुर आदित्य प्रताप सिंह का भतीजा आनंद प्रताप सिंह किसी प्रतिस्थित कम्पनी में इस उम्मीद के साथ मैनेजमेंट की ट्रेनिंग ले रहा था कि जब वह यहाँ से बनकर निकलेगा तब वह अपनी बुढ़ी विधवा माँ की सेवा करेगा और उसे मातृ सुख देगा साथ हीं वह उस चाचा चाची की सेवा भी करेगा जिन्होनें उसे पढ़ाया था।
आनन्द की बुढ़ी माँ आशा देवी अपनी जिन्दगी का बचा खुचा समय काटने के लिये अपने देवर के घर पर रहती थी। वह अपने देवर के घर का झारू पोछा,चौका वर्तन एवं खाना पकाना कर देती थी।
एक दिन शराब के नशे में ठाकुर आदित्य प्रताप सिंह ने अपनी पत्नी व बेटे की शिकायत पर अपनी भाभी आशा देवी के साथ काफी गाली गलौज किया और उन्हें घर से बाहर निकाल दिया।
इधर आनन्द प्रताप सिंह इन सभी बातों से वेफिक्र व अंजान था। वह अपने चाचा आदित्य प्रताप सिंह को अपने पिता से भी बढ़कर मानता था और उनकी काफी इज्जत करता था।
एक दिन जब आनन्द ने घर के सभी सदस्यों का हाल चाल जानने के लिए फोन किया तब उसके चाचा आदित्य प्रताप ने आनन्द को खुशी मन से बताते हुए कहा कि बेटा मैनें तुम्हारी माँ को अपने घर से निकाल दिया है।
अपने चाचा की इन बातों को सुनकर आनन्द को बहुत गुस्सा आया परन्तु उसने अपने गुस्से पर नियन्त्रण रखते हुए कहा है कि आपने बहुत ही सराहनीय कार्य किया है जिसके लिए आपको राष्ट्रपति पुरस्कार मिलना चाहिये।
अपने भतीजे आनन्द का यह जबाब सुन आदित्य प्रताप को काठ मार गया। मानो काटो तो खून नहीं। इतना सुनते हीं आदित्य प्रताप ने अपना फोन रख दिया था।
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अरविन्द अकेला