लघुकथा
वाह रे, सरकारी सिस्टम
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"माँ, हमें भी सरकारी विद्यालय में टीचर की नौकरी करने का मन करता है, हमें बी.एड. में नाम लिखवा दो ना "।
यह बात बी.ए. में पढ़नेवाली छात्रा निकिता ने अपनी माँ मधुमिता से कही। मधुमिता ने अपनी बेटी से कहा कि "तुम्हें मालूम है कि नहीं, बी.एड .की पढाई में काफ़ी पैसे खर्च होते हैं सो तुम्हें पढ़ाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं है "।
"बात बात पर तुम पैसे का हीं रोना रोते रहती हो, तुमसे पैसे के मामले में बात करना ही बेकार है। जाती हूँ मैं अपने जुगाड़ू पापा पास। वहीं मैरी समस्या का हल निकालेंगे। यह बातें निकिता ने मुँह फुलाते हुए अपनी माँ से कही"।
निकिता के पिता अवधेश सिंह अफसर एवं नेतागण के साथ रहकर दलाली का काम करते थे जबकि माँ मधुमिता प्राइवेट जौब करती थी।
"पापा, पापा। हमें सरकारी विद्यालय में टीचर की नौकरी करनी है। इसके लिये हमें बी.एड.में नाम लिखवानी है, बोलिये आप मेरी मदद कीजियेगा या नहीं "।
"बेटा पहले तुम कुर्सी पर आराम से बैठो और तनिक हमें सोचने का समय दो । हाँ, एक बात और बेटा, पहले बी. ए. का रिजल्ट तो आने दो "।यह बात अवधेश ने अपनी बेटी निकिता से कही ।
इस बात के चार पाँच साल बाद अवधेश को पता चला कि कहीं जुगाड़ू तरीके से महिला शिक्षक की बहाली हो रही तो किसी तरह से बी.एड. के प्रमाणपत्र की व्यवस्था करके पिछले दरवाजे से अपनी बेटी निकिता को सरकारी टीचर की नौकरी लगवा दी, जिससे निकिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सरकारी टीचर की नौकरी लगने के दो साल बाद निकिता को प्रधान अध्यापक का पदभार दिया गया।
15 अगस्त के झंडोतोलन के बाद जब निकिता ने अपने मोबाईल से माँ के व्हाट्सअप पर झंडोतोलन की तस्वीर भेजी तो निकिता की माँ मधुमिता की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। मधुमिता ने अपनी बेटी निकिता को मैसेज भेजते हुए कहा कि "बेटी हमें तुम पर बहुत हीं गर्व है "।
इधर निकिता का बी.एड.पास बेरोजगार एवं शादीशुदा देवर आकाश यह सब देखकर कभी खुद को तो कभी सरकारी सिस्टम को कोस रहा था और मन हीं मन सोच रहा था कि " कोई भ्रष्ट सरकारी सिस्टम का दुरुपयोग कर सरकारी नौकरी पा जाता है और कोई इमानदारी पूर्वक रहकर बेरोजगार रह जाता है। वाह रे, जमाना। वाह रे, सरकारी सिस्टम। "
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अरविन्द अकेला
लाजवाब।
दिल से आभार आपका आदरणीय श्री राम भाई ।
दिल से आभार आपका श्री राम भाई।