याद साजन की
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अधलेटी ,अघखुली पलकें
पलकों में रुहानी सपने,
गोरी सोई या फिर जागी
प्रियतम में खोई अपने ।
नरम नरम दुर्वा के बिछौने
स्वप्न भार से बंद पलकें,
शबनमी बूंदों में नहायी
जब तब ले लेती अंगड़ाई ।
याद साजन की और तन्हाई
बीती बातें याद आयी,
करवट बदलती उठ बैठती
क्यूं रुठा है हरजाई ।
सूनो रे साजन, पढ़ो मेरा मन
अंग - अंग शरमाए,
मैं बाबरी , मैं पगली
खुदी में खोई , नैनो में तुझे बसाए ।
खोई - खोई रहने लगी मैं
बीमार भी दिखने लगी मैं,
प्यार से तुम देखो, जरा
तो शायद,मिल जाए दवा ।
स्वरचित एवं मौलिक - सुषमा सिंह ।