आत्मज्ञान
जगत जब
निस्सार लगा,
मानव से
अवतार बना ।
लुम्बिनी का
सिरमौर,
चला करने
सत्य की खोज ।
बूढ़े बीमार
बृद्ध लाचार,
निस्पृह हृदय को
पहुंचाए आघात ।
राजमहल
त्याग गया,
अरण्य की राह गया
सत्याअन्वेषी विदेह भया ।
मोहपाश
से मुक्त,
छोड़छाड़ राजमुकुट
वैरागी वन-वन फिरा ।
जगत
कल्याणार्थ जो जन्मा,
उसे बांधेगी क्या
भला यशोधरा ।
नि: स्वार्थ
जीवन अति उत्तम,
पाया ध्येय
बने गौतम ।
अनुशासन
मन पर नियंत्रण,
हुआ आत्मज्ञान
मंगलमय जीवन ।
यायावरी
सदाचारी,
समूचा विश्व
बना अनुगामी ।
सुषमा सिंह