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आत्मज्ञान, सुषमा सिंह...

आत्मज्ञान

जगत जब
निस्सार लगा,
मानव    से
अवतार  बना ।

लुम्बिनी का
सिरमौर,
चला करने
सत्य की खोज ।

बूढ़े बीमार
बृद्ध लाचार,
निस्पृह हृदय को
पहुंचाए आघात ।

राजमहल
त्याग गया,
अरण्य की राह गया 
सत्याअन्वेषी  विदेह भया ।

मोहपाश
से मुक्त,
छोड़छाड़ राजमुकुट
वैरागी वन-वन फिरा ।

जगत
कल्याणार्थ जो जन्मा,
उसे बांधेगी क्या
भला यशोधरा ।

नि: स्वार्थ
जीवन अति उत्तम,
पाया ध्येय
बने  गौतम ।

अनुशासन
मन पर नियंत्रण,
हुआ आत्मज्ञान 
मंगलमय जीवन ।

यायावरी
सदाचारी,
समूचा विश्व
बना अनुगामी ।

            सुषमा सिंह

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