आज की पढा़ई का
बदल गया है रूप हमारे
आज की पढाई का ।
सारी सुविधा मिल रही अब
नाम नहीं कड़ाई का ।।
पहले पढ़ने छात्र गुरु के
आश्रम जाया करते थे ।
वहीं पे रहकर गुरुकुल मे
खुब कमाया करते थे ।।
जंगल से सुखी लकड़ी भी
जाकर लाया करते थे ।
गुरू की सेवा मे तत्पर हो
पैर दबाया करते थे ।।
हरी घास बिस्तर थी उनकी
पत्थर उनका आसन था ।
कंद मूल और फल छात्रों को
मिलने वाला राशन था ।।
गर्मी सरदी सबकुछ सहते
आश्रम में ही रहते थे ।
कठोर डंड पाकर भी कुछ न
घरवालों से कहते थे ।।
अब के छात्रों का क्या कहना
बिन एसी का पढना क्या ।
घरवालों का साथ मिला है
गुरूजनों से डरना क्या ।।
गुरू की आज्ञा मान न सकते
इसे समझते हैं तौहीन ।
हाथ मोबाइल साथ में लैपटॉप
बनते हैं इनका शौकीन ।।
गर्मी छुट्टी सरदी छुट्टी
हरदम छुट्टी मिलती है ।
विद्यालय की इन छुट्टियों से
इनकी बांछें खिलती है ।।
होती थी पढा़ई तपस्या
अब आराम का साधन है ।
घर हो या विद्यालय सबपर
अब इनका ही शासन है ।।
हम अपने बचपन में अक्सर
स्लेट पे लिखा करते थे ।
मां बाप और गुरू जनो से
प्रेम से सीखा करते थे ।।
लेकिन अब के छात्र को देखो
कलम लेकर खड़े होते ।
मूड बनता तो पढ़ेंगे या
बिन मूड कहीं पे पडे़ होते ।।
गुरुवर पाते थे दक्षिणा अब
छात्रों को दक्षिणा मिलता ।
प्रेमशंकर क्या बोले इसपर
ज्ञान गुरू बिना मिलता ।।
कवि-----प्रेमशंकर प्रेमी (रियासत पवई )