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प्रेमशंकर प्रेमी की कविता , आज की पढ़ाई का..


आज की पढा़ई का

बदल गया है रूप हमारे
आज की पढाई का ।
सारी सुविधा मिल रही अब 
नाम नहीं कड़ाई का ।।

पहले पढ़ने छात्र गुरु के
आश्रम जाया करते  थे ।
वहीं पे रहकर गुरुकुल मे
खुब कमाया करते थे ।।

जंगल से सुखी लकड़ी भी
जाकर लाया करते थे  ।
गुरू की सेवा मे तत्पर  हो
पैर  दबाया करते थे ।। 

हरी घास बिस्तर थी उनकी
पत्थर  उनका आसन था ।
कंद मूल और फल छात्रों को
मिलने वाला  राशन था ।।

गर्मी सरदी सबकुछ सहते
आश्रम में ही रहते थे ।
कठोर डंड पाकर भी कुछ न
घरवालों से  कहते थे ।। 

अब के छात्रों  का क्या कहना 
बिन एसी का पढना क्या ।
घरवालों का साथ मिला है
गुरूजनों से डरना क्या ।। 

गुरू की आज्ञा मान न सकते
इसे समझते हैं  तौहीन ।
हाथ मोबाइल साथ में लैपटॉप
बनते हैं इनका शौकीन ।। 

गर्मी  छुट्टी सरदी छुट्टी 
हरदम छुट्टी मिलती है ।
विद्यालय की इन छुट्टियों से
इनकी  बांछें खिलती है ।।

होती थी पढा़ई तपस्या
अब आराम का साधन है ।
घर हो या विद्यालय सबपर
अब इनका ही शासन है ।।

हम अपने बचपन में अक्सर
स्लेट पे लिखा करते थे ।
मां बाप और गुरू जनो से
प्रेम से सीखा करते थे ।।

लेकिन अब के छात्र को देखो
कलम लेकर खड़े होते ।
मूड बनता तो पढ़ेंगे या
बिन मूड कहीं पे पडे़ होते ।। 

गुरुवर पाते थे दक्षिणा अब
छात्रों को दक्षिणा मिलता ।
प्रेमशंकर क्या बोले इसपर
ज्ञान गुरू बिना मिलता ।।

कवि-----प्रेमशंकर प्रेमी (रियासत पवई )

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