पराकाष्ठा
होते मनुज जो मेहनतकश
भाग्य सूर्य उन्हीं का चमकता है,
संघर्षों को पाथेय बना
जीवन में आगे बढ़ता है ।
गर बिछे हों राहों में कांटे
अविचल फिर भी रहते हैं,
शनै शनै खुद को तराशते
पथ आप अपना प्रशस्त करते हैं।
छांव की चाहत ना रखते
संघर्ष लौ बूझने ना देते,
संकरी गलियों से निकलकर
आसमां तक दस्तक देते हैं ।
चाहे जग बैरी हो जाए
द्रोण चाहे अंगूठा ले जाएं,
हो ना सर पर हाथ पार्थ का
रण में चाहे अकेले पड़ जाएं।
चाहे कवच ले जाए कोई
गोद से विलग कर दे माई,
चमक बिखेरना ही सबब इनका
मन बल पराकाष्ठा पर होता है ।
सुषमा सिंह (औरंगाबाद)