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अब भी सुधर जाओ, लघु कथा,अकेला

लघुकथा 

   अब भी सुधर जाओ 
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     कोरोना के बढ़ते हुए केस से सरकार एवं प्रशासन की चिंता बढ़ती  हीं जा रही थी परन्तु अधिकांश जनता को कोई चिंता हीं नहीं थी। अब भी लोग बिना मास्क लगाये एवं सोशल डिस्टेन्ससिग का पालन पालन किये बिना  अपने अपने घरों से बिना किसी डर भय के निकल रहे थे ।
    प्रशासन ने माइक से जनता के बीच यह प्रचार करवा दिया कि यदि अब भी लोग बिना मास्क लगाये अपने अपने घरों से निकलेंगे तो उन पर कड़ी कार्रवाई की जायेगी एवं उनके वाहनों को जब्त कर लिया जायेगा। प्रशासन की इन तमाम घोषणाओं के बीच लोग अपने अपने घरों से बिना मास्क लगाये निकल हीं रहे थे। 
      इसी दरम्यान दो दोस्त अजय एवं बिजय अपने अपने घरों से बिना  मास्क लगाये बाजार निकल रहे थे कि  तभी दोनों के माता पिता ने अपने अपने बच्चों को रोककर समझाया कि "बिना मास्क लगाये घर से बाहर नहीं निकलो, अभी भी कोरोना का केस बहुत तेजी से बढ़ हीं रहा है। खतरा बढ़ा हुआ है ।"
      अजय ने तो अपने माता पिता की बातें मानते हुए घर जाकर 
मास्क लगा लिया परन्तु बिजय ने अपने माता पिता को समझाया कि "आप लोग बिना मतलब के हीं परेशान हो रहे हैं। थोड़ी दूर रमेश चौक पर हीं तो जा रहे हैं एक घंटा में घर लौट आयेंगे। "
      अभी दोनों दोस्त अजय एवं बिजय कुछ दूर आगे बढ़े हीं थे कि पेट्रोलिंग पार्टी ने अजय एवं बिजय की मोटर साइकिल रोकवायी। बिजय को बिना मास्क में देखकर वरीय पुलिस पदाधिकारी बिजय पर काफी भड़का एवं बिजय को समझाते हुये कहा कि आपलोग नहीं सुधरियेगा। बिना मास्क लगाये हीं निकलियेगा। आपलोग स्वंय भी कोरोना से मरियेगा और दूसरों को भी मारियेगा ।
     वरीय पुलिस पदाधिकारी ने विजय से कहा कि "आप पर एक हजार रूपये का जुर्माना लगाया जाता है। आप एक हजार रुपयेे का जुर्माना भरिये और गाड़ी लेकर चलते बनिये। यदि रुपये नहीं हैं तो गाड़ी यहीं छोड़िये और घर जाकर रुपये ले आइये और अपनी मोटर साईकिल ले जाइये। "
       बिजय जब अपना मुँह लटकाकर अजय की मोटर साईकिल से घर पहुंचा तो बिजय के माता पिता को सारी बात समझते हुए देर नहीं लगी अपने पर्स से एक हजार रुपये देते हुए कहा कि अब मुँह लटका ने एवं पछताने से क्या होगा। यदि तुम मेरी बात मान लिए होते तो यह सब नहीं होता। इसलिए तुम्हें हम कह रहें हैं कि अब भी सुधर जाओ। 
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           अरविन्द अकेला

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3 Comments
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ARVIND AKELA said…
वाह, बहुत अच्छे।
शिक्षाप्रद लघुकथा।
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (०६-०९-२०२०) को 'उजाले पीटने के दिन थोड़ा अंधेरा भी लिखना जरूरी था' (चर्चा अंक-३८१६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है

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अनीता सैनी
सख्ती बहुत जरुरी है नासमझ लोग यही भाषा समझते हैं