लाडली बेटी
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रीत जहां की, किसने और क्यों बनायी
लाडली बेटी अब हो गयी परायी।
पति का घर बसाया, पिता घर वीराना,
पाणिग्रहण हुआ और, हो गयी बेगाना।
सोलहो श्रृंगार कर,पीहर का प्यार लेकर,
चढ़ गयी डोली, अजनबी का हाथ पकड
।
सूना हुआ आंगन, सूनी भयी देहरी,
पत्थर हुए बाबू, मां फफक कर रोयी।
बडी चंचल थी, घर की रौनक थी,
उसके रहते जैसे, घर जन्नत थी।
हर तरफ़ है उदासी, गुमसुम बैठी सखियां
सूझता नहीं कुछ, छेड़े कहां से बतिया।
चहलकदमी करता, तन्हा तन्हा भाई
याद आ रही है, विदा होती बहन की रूलायी ।
रीत जहां की, किसने और क्यों बनायी
लाडली बेटी अब, अब हो गयी परायी।
सुषमा सिंह,औरंगाबाद, बिहार
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स्वरचित एवं मौलिक