मौत
अपनी आगोश मे जो सुलाती हमें
वक्त होता पूरा तो ले जाती हमें ।
कोई सुचना न देती हैआने की वो
सीधा वारंट लाती ले जाने की वो ।।1।।
होती परछाइयाँ भी नहीं साथ में
कोई जंजीर भी न होती हाथ में ।
कोई शिकायत का मौका भी देती नहीं
वक्त एकपल भी रुकने का लेती नही ।।2।।
रखती लेखा-जोखा सबके कर्मो का वो
कुछ बताती नहीं मन के मर्मो का वो ।
लेकर जाती उसी को जो अनमोल है
ये जो काया पडी़ उसका क्या मोल है ।।3।।
तन के अन्दर है क्या बस उसे है पता
जिसका चलता है पूरे बदन पर सत्ता।
जो हैं रोते यहाँ जिस बदन के लिए
वो तो रोता नहीं निज कफन के लिए ।।4।।
जो जरूरत थी लेकर गई साथ में
पडा़ मिट्टी का ढेला इधर हाथ में ।
अब समझ मैं गया बात ही बात मे
मौत लेकर गई है जिसे साथ मे।।5।।
बिना कारण धरा पर जो घबरा रहा
जो न करना उसे भी है वो कर रहा।
अब संभल जा नहीं कुछ जाएगा वहाँ
सिर्फ करमों का फल ही पाएगा वहाँ ।।6।।
सुनो प्रेमशंकर तुमसे जो मैं कह रहा
जो भी प्राणी धरा पर यहाँ रह रहा ।
आएगी मौत एक दिन लेने को उसे
कुछ रहेगा न फिर भी देने को उसे ।।7।।
अपनी आगोश मे फिर सुलाएगी वो
कुछ भी चाहो न चाहो ले जाएगी वो ।
जो लिखा है कभी वह न रूक पाएगा
वक्त आगे किसी के न झुक पाएगा ।।8।।
कवि---- प्रेम शंकर प्रेमी (रियासत पवई )