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रघुकुल रीत सदा से निभाते,परम वीर बेटे भारत मां के,स्वाभिमान का परचम लहराकर

वीर सपूत
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कर आज उठे, जिनके वंदन  में
वीर  सपूतों  के अभिनन्दन    में,
हम  चैन   से  सोते  अपने  घरों में,
छये  रुधिर  बहाते रहते  रण   में  ।

हैं  दिव्य  प्रसून  ये  भारत  मां  के,
दुश्मनों  को    हैं   धूल   चटाते,
तिरंगें   की   कसमें   खाकर,
तिरंगा  फहराते या  उसमें  लिपट जाते।

ना कोई धर्म  ना  कोई  मजहब,
भारत मां  के  गोद  में  सिर  रख,
चैन से    सो   जाते    हैं,
अखण्ड   भारत   हमें  सौंपकर ।

रघुकुल  रीत  सदा   से   निभाते,
परम    वीर    बेटे  भारत मां   के,
स्वाभिमान  का परचम  लहराकर
ज़र्रे  ज़र्रे  पर  जयहिंद  लिख  जाते ।

                         सुषमा सिंह
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स्वरचित एवं मौलिक

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1 Comments
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ARVIND AKELA said…
वाह, बहुत अच्छे।
बहुत सुन्दर रचना।