💐 (बेटा नहीं मैं बेटी थी)💐
आई जब दुनिया में देखा
लोग पसीना पोछ रहे थे ।
हाथ रख मस्तक पर अपने
पापा भी कुछ सोच रहे थे ।।
समझ रही थी उनकी चिंता
उनके साथ लाचारी थी।
दहेज लोभियों के बीच आई
मैं किस्मत की मारी थी ।।
गोद मिला न मुझे यहाँ
अब तक बिस्तर पर लेटी थी।।
पता चला तब जाकर मुझको
बेटा नहीं मैं बेटी थी ।।
दुख नहीं मेरे हिस्से का
सुख भी बांट दिया जाता ।
जब भी मैं मुस्काऊँ तो
पल मे डांट दिया जाता ।।
बबुआ की गलती पर मेरी
केश खिंचाई होती थी ।
छोटी मोटी बातों पर
रोज पिटाई होती थी।।
माता भी यह समझ रही थी
वो तो सबकुछ देखी थी।
लेकिन वह कुछ बोल न पाती
क्योंकि वह भी बेटी थी ।।
चूल्हा चौका बर्तन बासन
यही मेरी सहेली थी।
पढ़ना लिखना कलम चलाना
बन गई एक पहेली थी ।।
गुड्डा गुड्डी याद नहीं कब
घर में अपने खेली थी ।
मम्मी के संग खानाघर में
रोटी मैंने बेली थी ।।
समझ सकी न अब तक फिर भी
किसकी मैं चहेती थी ।
लेकिन इतना समझ गई
बेटा नहीं मैं बेटी थी ।।
धीरे-धीरे धीरे भई सयानी
पापा के आंखों में पानी।
कहती है एक नई कहानी
बनी मुसीबत उनकी रानी ।।
आते थे घर में तो देती
जाकर उनको दाना पानी ।
सब लोगों के बीच में बैठी
कहती थी मैं रोज कहानी ।।
मां तो हर पल समझ रही थी
खुशियों की मैं खेती थी।
क्योंकि वह भी मेरे जैसी
बेटा नहीं थी बेटी थी ।।
गली चौराहे बाग बगीचे
भरे हैं अब शैतानों से।
कैसे बचूँ मैं सोच रही
इन कलयुग के हैवानो से ।।
रिश्तो की जब बात करें तो
सजी दुकानें दौलत की।
पैसों पर बिक कर मिलती है
नई मकाने औरत की ।।
मायका की यादों को अपने
पलकों में समेटी थी।
घर आंगन को त्यागी क्योंकि
बेटा नहीं मैं बेटी थी ।।
सहती अत्याचार वहां भी
पति ननद और सासू का।
कीमत वे पहचान न पाते
आंख से निकले आंसू का ।।
कई तरह के सपने अपने
आंचल में सहेजी थी।
सास ससुर की सेवा में ही
खुद को मैं समेटी थी ।।
अपने शौक को दफना कर भी
सब कुछ उनको देती थी।
फिर भी सब कुछ सहते रहती
बेटा नहीं मैं बेटी थी ।।
💐 मेरे द्वारा लिखित एक बेटी के जीवन से संबंधित मार्मिक कविता💐
💐 कवि-----प्रेम शंकर प्रेमी💐( रियासत पवई )