सुबह का आगाज
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पक्षियों ने गीत गाए,
सुखद मनोरम प्रात,
किरण नई छितराई,
गयी भाग फिर रात।
सप्त अश्वो पर सवार,
लालित्य की चादर तान,
अरुण फिर निकल पड़ा,
ओर खिल उठा आसमान।
पीलाभ किरणों से
नहा उठी धरा सारी,
जाग उठा जग सारा,
जिंदगी फिर चल पड़ी।
मंद - मंद बहता पवन
सुवासित धरा गगन,
लता तरु वन कानन
खिलखिला उठा भुवन।
चंचल मचल अविरल,
कलकल करती नदियां,
अजान भजन से गुंजित
शहर गांव और गलियां।
खग वृंद का करलव
सुन भागा दूर अंधेरा ,
सूरज की रश्मियों मे
प्रकाशित , आह्लादित सवेरा।
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित।
सुषमा सिंह