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20 की सबसे पसंद की जाने वाली सुषमा जी की दो रचनायें_poetry

लाल बहादुर शास्त्री
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गंगा की  लहरों   से   खेलकर,
गंगा  जैसे  पावन   थे   तुम,
राजनीति  की  बदरंग  गलियों  के,
निर्मल  विमल   कुसुम  थे    तुम।

गांधी  के पग  से  पग मिलाकर  चले,
वही   सात्त्विकता  अपना  कर   चले,
क्षण  मात्र  नहीं सोचा  ख़ुद  के  लिए
स्वतंत्रता  का अलख   जगाते   चले,
अभिजात्यता   से    बनाकर     दूरी,
सहज   राहों   के   राही   थे   तुम ।

लाल   तुम  जैसा     चेहरा,
अब  यहां  दीखता    नहीं,
राजनीति  की  निर्मम  चट्टानों  पर,
कोई  फूल  सुकोमल  उगता नहीं,
बिषमताओं    में   पले  -बढे
सत्यानुरागी     थे     तुम।


सत्य  ईमानदारी   और  निष्ठा, 
अतीत  की  हो  गई    बात,
अब  जो  फल-  फूल   रहा,
स्वार्थ  लिप्सा  भाई भतीजा वाद,
इन  दुराग्रहों   से    निरपेक्ष,
योग्यता  के  पुजारी  थे   तुम।

राजनीति   का    सरोवर
हो   चुका  अब    गंदला,
दांव-पेच   छल  प्रपंच  से,
पुता  मिलता  हरेक  चेहरा,
राजनीति के    कीचड  के,
कुमुदिनी  सुवासित थे  तुम।

जय  जवान  जय   किसान,
नारा  अब   कौन  लगाए,
पीढ़ियां  संवारने में जुटे  नेता गण
देशवासियों को समझ  ना  पाए,
किसानों  और  जवानों   के,
सचेतक  अनुरागी   थे   तुम ।
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कुछ सवाल
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राख हुई  चिता  की  अग्नि,
सवाल   चिंगारियों  से  उभरा,
बेटियों  के  साथ    दुष्कर्म ,
यूं  कब   तक  होता  रहेगा ।

कभी   देह  की  भूख,
कभी   दहेज  की  भूख,
मरती   रहेगीं   बेटियां,
जमाना  मौन  कब  तक रहेगा।

थोड़ी   धूप,  थोड़ा   आसमां,
इनके   भी  हिस्से  कर   दो,
ऐ  वहशी  दरिंदों ,बेटियों  को,
जीने  का  हक  कब तक मिलेगा।

फूल  सी  नाज़ुक  बेटियां,
कब  तक  रौंदी  जाती  रहेंगी,
बेटी  होने  की  कीमत,सांसो  
से  कब  तक चुकाती   रहेंगी।


इन  दर्द  भरे  सवालों  का,
अब  जवाब  कौन   देगा ,
पुरुषत्व  की  अहं  में   डूबे  इन  
मक्कारों को सजा कब तक मिलेगा।

                           सुषमा सिंह
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