कविता
चुनावों का वर्ष
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यह वर्ष चुनावों का वर्ष है,
वादों का वर्ष है,
विवादों का वर्ष है,
अवशादों का वर्ष के।
यहाँ वादे किये जायेंगे,
आश्वासन दिये जायेंगे,
परन्तु इतना तो मालुम है,
चुनाव बाद ये नजर नहीं आयेंगे।
चुनावों की आंधी चल रही है,
शाम आहिस्ता-आहिस्ता ढ़ल रही है,
उम्मीदवार मैदान में खड़े हैं,
मतदाता मैदान में अड़े हैं।
दाँव पेंच यहाँ जारी है,
हर एक दुसरे पर भारी हैं,
देखें मतदाता का क्या निष्कर्ष है,
यह वर्ष चुनावों का वर्ष है।
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अरविन्द अकेला