1
बेटी
बेटी
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जीवन श्रृंगार है,
सृष्टि का आधार है,
बिन बेटी के,
सूना संसार है ।
आंगन की तुलसी,
है सोन चिरैया,
बेटी नहीं तो,
वीरान यह दुनिया ।
मेहमां बन कर,
आयी मेरे घर,
चंद दिनों बाद,
हो जाएगी फुर्र ।
परिंदा है बेटी,
खुशी का खजाना,
रूला कर जाएगी,
जाने है जमाना ।
विछोह में इसके,
रोओगे उम्र भर,
बनाएगी बसेरा अपना,
कहीं और जाकर ।
निश्छल प्यार है,
आंखों की पुतली,
घर की रौनक,
बेटी तो है तितली ।
दो कुल की सेतु,
अंगना की गहना,
लाख हो बिपत्ति
धीरज से रहना ।
अन्नपूर्णा है,
गीत है साज है,
बेटियां हैं तो,
सकल समाज है ।
सुषमा सिंह
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2
दरिन्दगी
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आज फिर अन्तर्रात्मा लहुलुहान हुईं
आज फिर दरिंदों ने की दरिंदगी,
आज फिर मन जी भर कर रोया,
आज फिर मानवता शर्मसार हुई ।
कितना रोई कितना गिड़गिड़ायी ,
फिर भी ना अस्मत बचा पायी,
किस तरह से दरिंदों ने नोचा होगा,
कितना वो छटपटाई होगी ।
कितने संवेदना शून्य हो गये हम,
बेटियों का जीना दुभर हुआ,
झंडे बैनर जूलूस और प्रर्दशन,
करुण कहानी का यही अंत हुआ।
सुषमा सिंह
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स्वरचित एवं मौलिक