जय जवान जय किसान
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----ज्ञानेंद्र मोहन खरे ,महाप्रबंधक, श्रीसीमेंट
श्री शास्त्री जी स्वतंत्र भारत के दूसरे यशस्वी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने अपने संक्षिप्त कार्यकाल में किसानों की समस्या के समाधान हेतु अथक प्रयास किये। उनकी शुरुवात का ही असर है कि आज का किसान बेहतर स्थिति में है। वो खुशहाल है। प्रगतिशील है।
भारत गांवो में बसता है और एक कृषि प्रधान देश है। कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की जड़ है। शास्त्री जी ने जब प्रधानमंत्री पद संभाला तो देश खाद्यान के मामले में आत्मनिर्भर नही था। गेहूं और चावल की पैदावार कम थी। देश मे अनाज की किल्लत थी। देश को गेहूं काआयात करना पड़ता था। शास्त्री जी ने सर्वप्रथम अपनी प्रभावी नेतृत्व और कार्यकुशलता से पंडित नेहरू के निधन से उतपन्न रिक्तता को दूर किया। उन्होंने पंडित जी द्वारा चालू किये गए हरित क्रांति अभियान को द्रुत गति दी।
हरित क्रांति के तहत किसानो को पैदावार बढ़ाने हेतु उन्नत बीज उपलब्ध कराए। बेहतर सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध कराई। पहली बार खेती में कृत्रिम उर्वरको और कीटनाशकों का प्रयोग किया। देश का लक्ष्य गेहूं और चावल की पैदावार बढ़ाना निर्धारित किया गया। इससे खाद्यानों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ी। देश की अर्थव्यवस्था भी बेहतर हुई।
शास्त्री जी ने "जय जवान जय किसान" का नारा दिया जिससे देश के जवानों और किसानों की साख बढ़ी। देश का पूरा जनमानस इस नारें से ओतप्रोत हो गया। इसी से उपजे आतविश्वास से देश ने पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध मे विजय हासिल की। शास्त्री जी के द्वारा संचालित हरित क्रांति अभियान ने इस कठिन और नाजुक दौर में देश की अर्थव्यवस्था कमजोर नही होने दिया। युद्ध के दौरान खाद्यान आपूर्ति बरकरार रखने के लिये एक वक्त का भोजन त्याग शास्त्री जी ने नेतृत्व की नई मिसाल कायम की ।
"सदा जीवन उच्च विचार" शास्त्री जी का जीवन दर्शन था। उन्हें वर्तमान में जीना और सिद्धान्तवादी कार्यशैली पसन्द थी। सादगी और सरलता उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी। शास्त्री जी ने अपने कार्यकाल में सफेद क्रांति का आगाज किया। इसके तहत दूध और दूध के उत्पादों के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया गया। विभिन्न स्तरों पर दुग्ध संघ बनाये गए। मवेशियों की हालत में उल्लेखनीय सुधार हुआ। दुग्ध उत्पादन को उद्योग का दर्जा मिला। शास्त्री जी ने आत्म निर्भरता की जो बुनियाद रखी उस पर सतत खुशहाली की इमारत का निर्माण अनवरत जारी रखना होगा। याद रहे भारत के 70% जनमानस ग्रामीण है और हमारी अर्थव्यवस्था खेती पर निर्भर है । शास्त्री जी द्वारा शुरू की गई हरित क्रांति का प्रचार प्रसार ही उनके पदचिन्हों का उचित अनुसरण होगा। इसी में हमारी और देश की प्रगति और खुशहाली निहित है।
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*किसान की समस्या व समाधान में शास्त्री जी का योगदान*
--------धनंजय जयपुरी, औरंगाबाद
हमारा भारतवर्ष कृषि प्रधान देश है। यहां की 80% आबादी कृषि पर ही निर्भर है। देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में किसानों का अहम योगदान हुआ करता है। इतना होने के बावजूद भी हमारे देश के अधिकतर किसानों की स्थिति बड़ी ही दयनीय है। यह तो विडंबना ही है कि जो किसान सबके भोजन की व्यवस्था करता है उसे ही भोजन आवास एवं अन्य सुविधाओं के अभाव में आत्महत्या करने को मजबूर होना पड़ता है। इसका मूल कारण है कि उसे कभी अकाल की मार झेलनी पड़ती है तो कभी बाढ़ की विभीषिका से उसे जानमाल की क्षति उठानी पड़ती है। कभी उसे अन्य प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है तो कभी सरकार के उदासीन रवैया का शिकार होना पड़ता है।
महात्मा गांधी ने किसानों को भारत की आत्मा कहा था लेकिन आज किसानों की समस्या पर राजनीति करने वाले ज्यादा तथा उनकी समस्याओं पर ध्यान देकर उन्हें लाभ पहुंचाने वालों की संख्या नगण्य है।
भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने किसानों के हौसले बुलंद करने एवं उनके उत्साहवर्धन के लिए एक नारा दिया था- *जय जवान जय किसान*। वे निरंतर इस प्रयास में लगे रहते थे कि देश का कोई भी नागरिक भूखा नंगा और अशिक्षित ना रहे। उनका विचार केवल देश की सुरक्षा, आत्मनिर्भरता एवं सुख-समृद्धि केवल सैनिकों एवं शत्रु पर ही आधारित नहीं अपितु, कृषक एवं श्रमिकों पर भी आधारित था। शास्त्री जी किसानों के शुभचिंतक थे। वे निरंतर प्रयास किया करते थे कि हमारे देश के विकास में प्रमुख भूमिका निभाने वाले तथा सबके उदर पूर्ति में अहर्निश अपने खून पसीने को बहाने वाले किसानों को कभी भूखे पेट सोना नहीं पड़े तथा उनके बच्चे धन के अभाव में उच्च शिक्षा प्राप्त करने से वंचित नहीं रह जाएं। देश के किसानों की आर्थिक अवस्था सुदृढ़ करने के लिए शास्त्री जी ने जनता से हर खाली जमीन पर खेती करने की अपील की थी। उन्होंने खुद भी अपने सरकारी आवास के लान में सब्जियां उगाना शुरू किया था। एक दौर था जब हम अमेरिका के पीएल 480 के तहत हासिल लाल गेहूं खाने को बाध्य थे। इसी बीच अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने शास्त्री जी को धमकी भी दी थी कि अगर युद्ध नहीं रुका तो गेहूं का निर्यात बंद कर दिया जाएगा। शास्त्री जी ने उसके इस तरह धमकी दिए जाने पर अमेरिका से गेहूं लेने से साफ इंकार कर दिया था।उन्होंने अपने देश के नागरिकों से अपने भुजबल पर अपनी भूमि से प्रचुर मात्रा में अन्न उपजाने की अपील की थी जिसका असर यहां के किसानों पर रामबाण की तरह पड़ा था। इस तरह हम कर सकते हैं कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का योगदान किसानों की समस्या के समाधान में सराहनीय था।
--० धनंजय जयपुरी ०--
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--------- मीना जैन दुष्यंत
*प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान, जय किसान का नारा दिया था। शास्त्री जी इस नारे के जरिये समाज में वह एक* संदेश पहुँचाना चाहते थे कि किसान और जवान देश की दशा और दिशा तय करते हैं, अगर ये नहीं होंगे तो देश की दुर्दशा हो जाएगी। जहां जवान देश की रक्षा करता है, वहीं किसान खेती के जरिये देश को अनाज देता है। अगर किसान नहीं होगा तो देश में अन्न के टोटे पड़ जायेंगे। *कृषि और किसान भारतीय परम्परा के वाहक हैं। जब परम्परा मरती है तो देश मरता है। किसानों की खुशहाली से ही देश व सम्पूर्ण मानवता खुशहाल होगी। किसान खुशहाल नहीं होंगे तो देश को दुखी होने से कोई नहीं रोक* पायेगा।स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हमारे तथाकथित पश्चिम के अंधानुयायी बांध और कल -कारखाने लगाने की होड़ में जुट गए। पर जिन लोगों के द्वारा यह सब कार्य किया जाना था उनका पेट भरने की दिशा में कतई विचार नहीं किया जा रहा था।खेतीबाड़ी को आधुनिक बनाकर हर तरह से उसे बढ़ावा देने के स्थान पर अमेरिका से पी एल *480 जैसा समझौता करके उसके बचे -खुचे घटिया अनाज पर निर्भर रहने लगे। उस का दुष्परिणाम सन 1965 के भारत-पाक के अवसर पर सामने आया जब अमेरिका ने अनाज लेकर* भारत आ रहे जहाज रास्ते में ही रुकवा दिए। पाकिस्तान के नाज-नखरे उठाकर उसका कटोरा हमेशा भरा रखने की चिंता करने वाले अमेरिका ने सोचा इस तरह इस भूखों मरने के हालात में भारत हथियार डाल देगा। लेकिन उस समय के धरती से जुड़े हुए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा ईजाद किया । फल स्वरुप भारत में अनाजों के बारे में आत्मनिर्भर बनने के एक नए युग का सूत्रपात हुआ। *हरित क्रांति लाने का युग कहा जा सकता है।कहा जाता है कि भारत में युद्ध की आग से हरित क्रांति लाने के युग काआरंभ हुआ और इस क्रांति ने आग की तरह शीघ्रता से चारों ओर फैल कर अपने देश को हरा-भरा बना दिया था। खाद्यअनाजों के बारे में देश को आत्म निर्भर कर दिया। हरित क्रांति ने भारत* की खाद्य समस्या का समाधान किया उसे उगाने वालों के जीवन को भी पूरी तरह बदल कर रख दिया ।उनकी गरीबी दूर कर दी। छोटे -बड़े सभी किसान को को सुख का द्वार देख पाने में सफलता पा सकने वाला बनाया ।सुख के साधन पाकर किसानों का उत्साह बढ़ा तो उन्होंने दालें, तिलहन ,ईखऔर हरे चने आदि को अधिक मात्रा में उगाना आरंभ किया ।इससे इन सब चीजों के अभावों की कमी खत्म हो गई ।हरित क्रांति लाने में खेतिहर किसानों का हाथ तो है पर प्रेरणा व प्रयोग शास्त्री जी के थे।कृषि से जुड़े अन्य लोगों को भी काफी लाभ पहुँचा उन्होंने अधिक मात्रा में अनाज उगाना आरंभ किया इससे इन सब चीजों *के अभावों की कमी पूरी हुई ।हरित क्रांति लाने में खेती और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में शास्त्री जी का प्रयास था।इसके लिए नए नए अनुसंधान और प्रयोग में लगी सरकार गैर सरकारी संस्थाओं ने भी निश्चित ही उस समय बड़ा साथ दिया ।उन्नत किस्म के बीजों का विकास तो किया ही खेतों की मिट्टी का निरीक्षण -परीक्षण करके यह बताया कि कहाँ की खेती में कौन- सा बीज बोने से ज्यादा फसल लाभ मिल सकता है ।नए-नए कीटनाशकों और खादों का उचित प्रयोग करना भी बताया तभी हरित क्रांति संभव हो सकी ।किसी भी स्थान की खाली पड़ी जमीन में अन्न उत्पन्न करने की* प्रेरणा दी। किसानों में जब खुशहाली आने अच्छे किस्म का अनाज डेढ़ वासियो को मिलने लगा तो वे भी किसानों का सहयोग करने लगे।
मीना जैन दुष्यंत भोपाल
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------------निशा अतुल्य,देहरादून
लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। उनका जन्मदिवस गांधी जी के जन्मदिवस के समान होने के साथ साथ उनका व्यक्तित्व व विचारधारा भी गांधी जी के जैसे ही थे । शास्त्री जी गांधी जी के विचारों और जीवनशैली से प्रेरित थे । शास्त्री जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी की विचारधारा का अनुसरण करते हुए देश की सेवा की, और स्वतंत्रता के बाद भी अपनी निष्ठा और सच्चाई में कमी नहीं आने दी।
नेहरू जी के निधन के बाद वह 1964 में देश के प्रधानमंत्री बने । लाल बहादुर शास्त्री जी ने 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया था। 1962 में भारत-चीन युद्ध के कारण देश आर्थिक रूप से बहुत कमजोर हो चुका था। जब शास्त्री जी प्रधानमंत्री बने तब देश में खाने का संकट गहराया हुआ था । उस समय देश में भयंकर सूखा पड़ा और खाने की चीजों को निर्यात किया जाने लगा। इसी दौरान 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया।
भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के हमलों का जोरदार जवाब दिया । भारत ने 6 सितंबर को पंजाब फ्रंट खोला और भारतीय सैनिक बरकी तक जा पहुंचे, लाहौर अब दूर नहीं था। भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने की सीमा के भीतर पहुंच गयी थी। घबराकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिए कुछ समय के लिए युद्धविराम की अपील की । उस समय हम अमेरिका की पीएल-480 स्कीम के तहत हासिल लाल गेहूं खाने को बाध्य थे। अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने शास्त्री जी को कहा कि अगर युद्ध नहीं रुका तो गेहूं का निर्यात बंद कर दिया जाएगा । वहीं, शास्त्री जी ने कहा- बंद कर दीजिए गेहूं देना ।
इसके बाद अक्टूबर 1965 में दशहरे के दिन दिल्ली के रामलीला मैदान से शास्त्री जी ने देश की जनता को संबोधित करते हुए देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने का आवह्न किया जिसे उस समय देशवासियों से बड़ी निष्ठा से निभाया और संकट की घड़ी में देश के साथ उसके स्वाभिमान को जिंदा रख पाए । शास्त्री जी ने कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए पहली बार 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया । शास्त्री जी का ये नारा जवान एवं किसान के श्रम को दर्शाता है । उन्हें पता था कि सीमा पर जवान और खेतों में किसान ही देश की रीढ़ व नींव हैं । आपने हरित क्रांति के तहत मूलभूत सुविधाएं किसानों को उपलब्ध कराई बीज ,खाद,और कृषि ऋण सहायतार्थ उप्लब्धद्ध करवाया ।
उनका दिया ये नारा जय जवान जय किसान ,किसानों का स्वाभिमान बन गया ,उनके इस नारे का प्रयोग आज भी रैलियों और सभाओं में किया जाता है ।
स्वतंत्रता के साथ स्वाभिमान से जीना शास्त्री जी ने सिखाया नमन ।
निशा"अतुल्य"
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---------पदमा ओजेंद्र तिवारी, दमोह
मंच की गुणी जनों को मेरा नमन मैं पदमा तिवारी दमोह मध्य प्रदेश से विचार विमर्श गोष्ठी में लाल बहादुर शास्त्री का किसानों के प्रति योगदान में अपने विचार व्यक्त कर रही हूं ।
2 अक्टूबर उन्नीस सौ चार को मुगलसराय नामक गांव में उनका जन्म हुआ था पिता श्री शारदा प्रसाद माता का नाम रामदुलारी था जन्म के डेढ़ वर्ष बाद उनके पिता स्वर्ग सिधार गए उनके घर की माली हालत अच्छी न होने से नाना के घर मे इनका लालन-पालन हुआ।
जय जवान जय किसान के प्रणेता लाल बहादुर शास्त्री विनम्र प्रधानमंत्री थे। पंडित नेहरू के शब्दों में शास्त्री जी ईमान दृढ़ संकल्प शुद्ध आचरण उच्च आदर्शों में पूरी आस्था रखने वाले व्यक्ति थे ।
शास्त्री जी का पूरा जीवन देश सेवा में ही बीता। स्वतंत्रता संग्राम और नव भारत के निर्माण में शास्त्री जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 1926 में उन्होंने लोक सेवा समाज की आजीवन सदस्यता ग्रहण की और इलाहाबाद को अपना कार्य क्षेत्र चुना।
शास्त्री जी को 18 माह की अल्प अवधि में मैं अनेक समस्याओं व चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अपनी सूझबूझ से उनका समाधान ढूंढने में कामयाब रहे। पुरुषोत्तम दास टंडन ने कहा शास्त्री जी में विवाद का हल खोजने विरोधी दलों में समझौता कराने की अद्भुत प्रतिभा विद्यमान थी। देश में खाद्यान्न संकट उत्पन्न होने पर अमेरिका के प्रतिमाह अन्न दान देने की पेशकश पर शास्त्री जी तिलमिला उठे।। संयत बाणी में आवाहन करते हुए बोले पेट पर रस्सी बांधो शाकभाजी ज्यादा खाओ सप्ताह में एक शाम उपवास करो। हमें जीना है तो इज्जत से जिएंगे वरना भूखे ही मर जाएंगे। बेइज्जती की रोटी से इज्जत की मौत अच्छी।
शास्त्री जी मे कठिन से कठिन परिस्थिति का सहजता से साहस निर्भीकता एवं धैर्य के साथ सामना करने की अनोखी क्षमता थी।
पाकिस्तान ने जब भारत पर आक्रमण करने का दुस्साहस किया तो शास्त्री जी के नारे जय जवान जय किसान से उत्साहित होकर जहां एक ओर वीर जवानों ने राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राण हथेली पर रख लिए तो दूसरी ओर किसानों ने अधिक अन्न उपजाने का संकल्प लिया। परिणाम ना सिर्फ युद्ध में भारत को अभूत पूर्व विजय हासिल हुई बल्कि देश के अन्य भंडार भी पूरी तरह भर गए। अपनी राजनीतिक सूझबूझ और साहस के बल पर अपने कार्यकाल में शास्त्री जी ने देश की कई समस्याओं का समाधान किया।
10 जनवरी 1966 को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने एक संधि पत्र पर हस्ताक्षर किए। उसी दिन रात्रि को एक अतिथि गृह में शास्त्री जी की रहस्यमय परिस्थितियों में आकस्मिक मृत्यु हृदय गति रुक जाने के कारण
हो गई। उन्हें सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न से विभूषित किया गया विजय प्रधानमंत्री होने के नाते समाधि का नाम विजय घाट रखा गया।
पदमा ओजेंद्र तिवारी दमोह मध्य प्रदेश।
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--------------डॉ अलका पांडेय,मुम्बई
किसानों के नेता
भारत देश के दूसरे प्रधानमंत्री
धरतीपुत्र लाल बहादुर शास्त्री को देश का सबसे सरल, सबसे ईमानदार, सबसे कर्मठ, सबसे तेजस्वी प्रधानमंत्री माना जाता है। वे देश के जवानों और किसानों की गरिमा का उद्घोष करने वाले पहले जननेता थे।
देश की प्रगति में किसानों का योगदान :
हालांकि, आज कल लोग इतना विचार विमर्श नहीं करते, न ही उन्हें इस बात से कोई मतलब है कि, देश की प्रगति में किसका-कितना योगदान है, लेकिन हर व्यक्ति को यह पता होना चाहिए कि, देश की प्रगति में किसान का भी बहुत बड़ा योगदान है। यह बात हमें साल 1964 में देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने ही समझा दी थी। उनका मानना था कि, देश की सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और सुख-समृद्धि केवल सैनिकों और शस्त्रों पर ही आधारित नहीं है बल्कि किसान और श्रमिकों पर भी आधारित है। इसलिए ही उनका नारा 'जय जवान, जय किसान' था।एक समय ऐसा आया भारत पर जब अन्न की क़िल्लत हुई ...
देश में खाद्यान्न संकट उत्पन्न होने पर अमेरिका के प्रतिमाह अन्नदान देने की पेशकश पर तो शास्त्रीजी तिलमिला उठे किंतु संयत वाणी में उन्होंने देश का आह्वान किया- 'पेट पर रस्सी बांधो, साग-सब्जी ज्यादा खाओ, सप्ताह में एक शाम उपवास करो। हमें जीना है तो इज्जत से जिएंगे वरना भूखे मर जाएंगे। बेइज्जती की रोटी से इज्जत की मौत अच्छी रहेगी।' गरीबी में जन्मे, पले और बढ़े शास्त्रीजी को बचपन में ही गरीबी की मार की भयंकरता का बोध हो गया था, फलतः उनकी स्वाभाविक सहानुभूति उन अभावग्रस्त लोगों के साथ रही जिन्हें जीवनयापन के लिए सतत संघर्ष करना पड़ता है। वे सदैव इस हेतु प्रयासरत रहे कि देश में कोई भूखा, नंगा और अशिक्षित न रहे तथा सबको विकास के समान साधन मिलें। शास्त्रीजी का विचार था कि देश की सुरक्षा, आत्मनिर्भरता तथा सुख-समृद्धि केवल सैनिकों व शस्त्रों पर ही आधारित नहीं बल्कि कृषक और श्रमिकों पर भी आधारित है। इसीलिए उन्होंने नारा दिया, 'जय जवान, जय किसान।'
छोटे कद के विराट हृदय वाले शास्त्रीजी अपने अंतिम समय तक शांति की स्थापना के लिए प्रयत्नशील रहे। शास्त्रीजी को कभी किसी पद या सम्मान की लालसा नहीं रही। उनके राजनीतिक जीवन में अनेक ऐसे अवसर आए जब शास्त्रीजी ने इस बात का सबूत दिया। इसीलिए उनके बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि वे अपना त्यागपत्र सदैव अपनी जेब में रखते थे। ऐसे निस्पृह व्यक्तित्व के धनी शास्त्रीजी भारत माता के सच्चे सपूत थे।
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई
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---------डॉ नेहा इलाहाबादी, दिल्ली
फ़लक फाउन्डेशन
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शास्त्री जी का जन्म मुगलसराय
के एक बहुत ही गरीब परिवार में
हुआ था ।उनका बचपन बुनियादी चीजो़ं के अभावों के बीच मेंगुज़रा
बचपन ननिहाल में गुज़रा । शिक्षा
वाराणसी में हुई । वह बचपन से ही काफी प्रतिभावान थे ।
पिता का असमय देहान्त हो
जाने से 17 साल की उमर में ही
असहयोग आन्दोलन से जुड़ गये।
कई बार जेल जाकर काफी यातनाएँझेली ।मगर प्रतिभा के धनी होने के कारण इन्हे कोई न कोई पद भी मिलता ही रहा शनैः शनैःएकदिनऐसा भी आया पन्त जी की तबियत ठीक न होने के कारण नेहरू जी ने इनकी कर्तव्य निष्ठा से प्रभावित होकर इन्हे प्रधानमंत्रीका कार्यभार सौंप दिया ।इनका कार्यकाल थोडा़ मगर बेहदशानदार रहा ।
उसी समय देश में खाद्य संकट
उत्पन्न हो गया तभी अमरीका ने हर महीने कुछ खाद्य सामग्री भेजने की पेशकश की तो शास्त्री जी का अन्तर्मन झकझोर गया । वह बडी़ विनम्रता के साथ पूरे देश
का आह्वान किया बोले ।
जीवन यापन के लिए काफी
संघर्ष करना पड़ता है । साग सब्जी खाओ , उपवास करो जीना है तो सम्मान से जियो वर्ना मर जाओ ।भीख में मिली बेईज्जती की रोटी से खाने से तो मौत अच्छी है ।
उन्होने बचपन में ही गरीबी की
मार की भयंकरता खुद भोगी थी।
अतः अभावग्रस्त लोगों के साथ में
उनकी सहानुभूति स्वाभाविक थी।
इसीलिए वह हमेशा प्रयासरत
रहे कि देश में कोई भूखा ,नंगा व
अभाव ग्रस्त न हो।कोई अशिक्षित
न रहे । सभी को विकास केसमान
साधन मिलें ।
उनकी सोच में समाज का विकास
शस्त्रों व सैनिकों पर आधारितनहीं
बल्कि श्रमिकों व कृषकों पर काफी हद तक आधारित है तबसे
जब तक वो जिए इसी पर पूर्णरुपेण प्रयासरत रहे ।
और आजीवन इसी बात पर
जोर देते रहे । और एक नारा भी दिया ।
( *जय जवान जय किसान* )
उनके सादगी पूर्ण व्यक्तित्व व योगदान को देश कभीनहीं भूल पाएगा आजीवन आभारी रहेगा ।
मैं उन्हें श्रद्धासुमन समर्पित करती हूँ 🌹🌹😪😪🌹🌹
डॉ नेहा इलाहाबादी दिल्ली
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----------------करिश्मा सिंह,औरंगाबाद
परम सम्माननीय गोष्टी के अध्यक्ष महोदय मंच पटल पर विद्यमान सज्जनों भाइयों एवं बहनों आज पावन दिवस है।
आज साहस और कर्मठता के प्रतीक शास्त्री जी एवं राष्ट्रपिता गांधी का जयंती है , दोनों महापुरुषों को हम श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
लाल बहादुर शास्त्री जिनका देश के प्रति अप्रतिम योगदान रहा था।
संकटकालीन स्थितियों में देश का बागडोर संभाले थे। जब अकाल की भयावह स्थिति थी। देश में अन संकट पैदा हो गया था। जिसमें किसानों से उपवास व्रत की घोषणा किए तथा 'जय - जवान , जय- किसान' का उन्होंने नारा दिया था।आत्मनिर्भर भारत के लिए जहां कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है किसान एवं कृषि को देश की रीढ़ मानते थे। लेकिन दुर्भाग्य ने उन्हें हमारे बीच से काल कल वीत कर ले गया।
भारत - पाकिस्तान युद्ध, ताशकंद में समझौते और संदिग्ध अवस्था में उनकी मृत्यु देश को झकझोर दिया। उनकी सोंच अधूरी रह गई और आज भी किसानों की स्थिति ठीक नहीं हुई। हमें उनके पद चिन्हों पर चलकर भारतीय कृषि और किसानों की हालत ठीक करना चाहिए तभी भारत आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा।
इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी कलम को विराम देती हूं।
जय हिंद!!🇮🇳🙏🇮🇳