हास्य कविता
शादी से पहले तक मुझको
पता नहीं था आफत का ।
बीबी घर आयी तो उतरा
सारा नशा शराफत का ।।
घर के अन्दर आते ही
पड़ जाता ऐसे चक्कर में ।
कटूक निबोरी जैसा पाता
स्वाद मैं घर के शक्कर में ।।
भोजन से पहले मिलता है
लम्बा लिस्ट सामानों का ।
स्वागत फिर करना है अपने
सार ससुर मेहमानों का ।।
कहाँ गया वो बचपन मेरा
.. सुन्दर सपनों का संसार ।
गुरुवर की छड़ियों से पाता
गीतों की सुंदर झंकार ।।
पापा के फटकार मार से
दुख पाकर मैं रोता था ।
फिर भी बिना किसी फिक्र के
गहरी नींद में सोता था ।।
अब तो माँ भी घर के अन्दर
कोने मे दुबकी रहती ।
सुनकर तीखे वचनों को वह
अन्दर तक दुखती रहती ।।
पता नहीं था सेहरे में
छुपा है तौफा कष्टों का ।
डूब जाती है नईया जिसमें
जग के नारी भक्तों का ।।
लेकिन क्या अफसोस करूँ
आफत खुद बुलाया है ।
बीबी के रूप में हमने यह
कष्ट जीवन का पाया है ।।
अब तो कोस रहा मै खुद को
जीवन भर रोना होगा ।
बंध गया जिस खूँटे से
अपने सर ढोना होगा ।।
नहीं कोई उपाय यहां
मुश्किल से मुक्ति पाने का ।
आरक्षण है मिला हुआ
आफत को गले लगाने का ।।
कवि --प्रेमशंकर प्रेमी