जब से आया है श्याम जी गोकुल में।
दधि माखन चुराये तो मैं क्या करूँ।।
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सूने घर में वो घुस जाये।
दधि ग्वालों को खिलाये तो मै क्या करूँ।।
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तकरार हमसे करे वो कान्हा कुंवर।
अरे वो अंगुठा दिखाये तो मैं क्या करूँ।।
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चोरी करता फिरे सीना जोरी करे।
नाच कर वो दिखाये तो मैं क्या करूँ।।
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एक दिन की नहीं बात हर रोज रोज की।
आकर हमको सताये तो मै क्या करूँ।।
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उनकी बाँकी नजर मुरली है अधर।
चैन दिल का चुराये तो मैं क्या करूँ।।
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मेरा प्यारा कुंवर नंदलाला कुंवर।
मेरे मन को वो भाये तो मैं क्या करूँ।।
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छेड़ मुरली की तान करे हलकान।
नींद मेरी उड़ाये तो मैं क्या करूँ।।
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कान्हा जैसा भी है वो "मीरा " की है।
शीश चरणों में जाये तो मैं क्या करूँ।।
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बहियाँ पकड़े और मरोड़े।
गले मुझको लगाये तो मैं क्या करूँ।।
हाय मैं क्या करूँ।।
केवरा यदु"मीरा"