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रहता था मैं कितना सुखी_सुखी_arvind

हास्य व्यंग्य कविता 

रहता था मैं कितना सुखी
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जब मैं देखा पहली बार उसे,
लग रही थी मुझे चन्द्रमुखी ,
किया शादी बड़े धूम धाम से,
रहा साल दो साल मैं  सुखी।

जब बीत गये मेरे पाँच साल 
दिख रही थी वह  सूर्यमुखी।
तब आया कुछ ख्याल मुझे,
वह प्रतिभाशाली, बहुमुखी

अब तो वह बात बात पर,
बन जाती है ज्वालामुखी,
अब मैं उसकी चाल ढ़ाल देख,
रहने लगा मैं बहुत दुखी।

सोचता हूँ मैं जब कभी,
कितने अच्छे मेरे दिन थे,
मिलता था माँ बाप का प्यार,
रहता था मैं कितना सुखी।
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         अरविन्द अकेला

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