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हुश्न की गली में, इश्क मंडराने लगा,आशिकों के शोर से, हुश्न घबराने लगा /सुषमा सिंह की तीन अनूठी रचनायें_singh

1 ) दीप तेरे नाम का
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      इक   दीप जलाऊंगी   मैं,
      बेटी     तेरे      नाम    के,
      दुआ   मांगूंगी     रब   से,
      सदा   तेरी  सलामती   के।

      नजर   जो   उठे   तुझपर,
      स्नेह   से    लबरेज     हो,
      ताऊ   चाचा  भाई   मामा,
      सबकी   नजर  में  नेह  हो।

      घर ,  पड़ोस   हर   जगह,
      तुम   सदा  महफूज़  रहो,
      भारत बर्ष  की  बेटी  तुम,
      अहिल्या  सावित्री समतुल्य हो।

      तेरी  नज़रों  में  कहीं  अब,
      खौफ  के   ना   साए    हों
      राह   दफ्तर   और कालिज,
      बेफ्रिक्री   का  अंदाज  हो।

      दीप   तुम्हारी   शक्ति अनंत,
      दूर    करो     हृदय     तम,
      प्रकाश  दो   ऐसा   अनन्त,
      निस्पृह    हो    हरेक   मन।

     उजियारा  ना  हो   बाहरी,
     हृदय   भी   उजियार   हो,
     मन  उपवन  हो  प्रकाशित,
     सबका   यही  प्रयास  हो
     सबमें  सच्चा  प्यार    हो।

                  सुषमा सिंह
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   (सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)
2)  कलम
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    शब्दों  का    उद्गगार   कलम,
   लिखा  कल और आज कलम,
   ज्ञान   सुधा  शब्दो  में  पिरोती,
   ज्ञान   चक्षु  अरूणायी  कलम।

   शब्द    ज्ञान    की   सहचरी,
   कलम   जब  तुम     बोलती,
   इतिहास   मुखर  हो उठते हैं,
   हर  काल  साकार हो उठते हैं।

   दिव्य  स्वपन  की  लहरों  पर,
   कलम  मौज बन थिरकता रहा,
   इतिहास पुराण और वेदों  को,
   शब्दों  में  पिरो  सिरजता  रहा।

   शब्द   अनंत   शब्द   सार्थक
   शब्द   ही    सृष्टि    प्रलाप,
   शब्द  कलम  हुए  साथ  तो,
   बने   ज्ञान पुंज  फैला प्रकाश।
              
                  सुषमा सिंह
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(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)
3) गजल

खिला  जो  गुलाब  तो  , मंडराने लगे भौंरे
फूलों  का   सब  रंग,  चुराने  लगे   भौंरे ।

हुश्न  की  गली  में,   इश्क  मंडराने लगा,
आशिकों  के शोर  से, हुश्न घबराने  लगा।

सब   रस  ले  गये,  भौंरे   गुलाब  के,
कांटे  मात्र  रह  गये  ,बागे  वीरां   के ।

इ्श्क  की  आग   में,  जल  जाएंगे हम,
प्यार  किया  है कांटों से,उलझ जाएंगे हम

चन्दन चन्दन जो महका, तेरा गुलाबी वदन
खुशबुओं से  भर  गया , मेरा सूना दामन ।


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