नव दीपक
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झिलमिल झिलमिल कर,
मधुर मधुर जल।
नवाशा का प्रतीक,
नव दीपक जल ।
आओ इस दीपाली,
करें हम प्रण।
मेटेगे हृदय कलुष,
निर्मल करे मन ।
गणेश लक्ष्मी का
करें विधिवत् पूजन,
रौशन घर आंगन,
झिलमिल धरा गगन।
सहस्त्रों दीप मिल,
ऐसी बिखेरी रोशननायी
दमक उठा नगर ,
आसमां जमीं आयी।
मचलने लगे दीए,
सुरभित हुईं अवनि,
मद्बिम रोशनी में,
नहा उठी पृथ्वी।
स्नेह का दीपक,
नेह की बाती,
धरा अम्बर रौशन,
जले सारी राती।
गेंदा गुलाब के,
लगे हैं वंदनवार,
नयी नवेली वसुंधरा,
दुल्हन सा श्रृंगार ।
सुषमा सिंह
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(स्वरचित एवं मौलिक)
मां लक्ष्मी
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स्वर्णिम कलश में,
वैभव ऐश्वर्य भर,
आओ मां लक्ष्मी,
सुख संपदा लेकर।
विहंस रही अवनि,
पहन दीप माला,
कतारबद्ध हुए दीपक,
फैलाने को उजाला।
माटी के दीपक,
करेंगे रात उजियारा,
सितारों के रूपक,
ढाहेगें तम अंधियारा।
ग्रस लिया अमां,
रुप गंध चंद्रमा,
झिलमिला कर जले,
द्वार दरवाजे शमा।
गगन बिहारी तारे,
गहगहा उठी धरा,
मुग्ध हुए सारे ,
शुभ्र प्रकाश फैला ।
सुषमा सिंह
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करवाचौथ
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कर सोलह श्रृंगार,
रंग रुप निखार,
सजी संवरी गोरी,
करवाचौथ का त्योहार।
देख निखरा रुप,
जैसे चांद चकोर,
साजन हुआ मुग्ध,
सजनी भाव विभोर।
छत पर आज,
साजन सजनी साथ,
उतरा आया चांद,
निरखे रूप अगाध।
मेंहदी बिंदियां पायल,
पैरों में महावर लाल,
सोहे कटि करधनी,
शशि सुहावनी रात।
आंखिन आंजन रेख,
मुस्काए पिया देख,
गौरवर्णी सुघड देह,
उमड़ा विपुल नेह ।
सुषमा सिंह
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( स्वरचित एवं मौलिक)