खिलजी द्धारा राणा रतन सिंह के अपहरण पर
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धन लोलुप था
रुप लोलुप था,
नराधम अत्याचारी,
बेहद क्रूर था ।
धोखा छल कपट
उसके उसूल थे,
लूटेरा का वंशज,
पंजे जिसके क्रुर थे ।
स्वाभिमानी राजपूत,
उसूलों के थे पक्के,
आगत की आवभगत
अपना धर्म समझते।
फरेबी मेहमान बनकर
आया था चितौड़गढ़,
रानी का दीदार कर,
लौट जाऊंगा अपने घर।
भोले भाले रतन सिंह,
समझ न पाए छल,
शिष्टाचार के नाते,
छोड़ने आए दरवाजे तक।
मौका मिला दुष्ट को,
राणा को बंदी बनाया,
जा पहुंचा दिल्ली,
चितौड़ खबर भिजवाया।
दस दिनों के अन्दर,
गर ना आयी पद्मिनी,
पावोगे ना राणा जिन्दा,
खबर भिजवाया खिलजी।
मची घोर अफरातफरी,
अब आगे क्या होगा,
पहले से है रूठा
सेनापति बादल गोरा।
चंद सहेलियों के संग,
रानी निकल पड़ी ढूंढने,
कहीं तो होंगे सेनानी,
उनका मनुहार करने।
निर्जन वन में जब,
मिले गोरा और बादल,
देख महाराणी को,
फेर लिये अपनी नजर।
बिना देर किए राणी,
घोड़े से उतर गयी,
विलम्ब न हो तनिक,
सारी बात कह गयी ।
राणी की बात सुन,
उचछवास भरा दोनों ने,
बोले रानी हम अनाड़ी,
भला क्या करेंगे इसमें।
राणी सा कांप गयी,
मनुहार करते हुए बोली,
अगर गयी पद्ममिनी दिल्ली,
मेवाड़ी आन क्या होगी।
एक झटके से दोनों खड़े,
हुए, तलवार खींच बोले,
महाराणी घर चलो अब,
खिलजी का गर्दन मरोडे ।
इस बूढ़े गोरा पर,
इतना तो यकीन करो,
राणा जी सकुशल आऐगें
गोरा पर भरोसा रखो।
इन बूढ़े बाजुओं में,
इतनी ताक़त तो है अभी,
टूट पड़ेंगे टिड्डी दल से,
संभल ना पायेगा खिलजी।
हुक्म किया सात सौ डोलियां
तुरंत अभी तैयार करवाओ,
लाव -लश्कर के साथ,
हरेक मे वीरों को बैठाओ।
एकलिंग के चरणों में,
सबने सादर शीश नवायी,
लगा हर हर महादेव का,
जयकारा,धरा अम्बर थर्रायी।
हर एक डोलियों पर,
महाकाल के गण थे,
मरने मारने को उद्धत
रणनीति बनाने में मगन थे ।
बड़ी ही शीध्रता से,
पहुंच गए सब दिल्ली,
खबर भिजवायी जफर को,
कहां छुपा है खिलजी ।
हर्षित हुआ खिलजी,
कारवां डोलियों का देखकर,
आस पूरी होती दिखी,
रणनीति से था बेखबर।
खबर करवाओगे राणा को,
पहले रानी राणा से मिलगी,
तत्पश्चात् निकाह कुबूल
और फिर कलमा पढेगी ।
खुशी से इजाजत मिली,
रतन सिंह से गोरा मिला,
काट डाले लौह बंधन,
राणा चितौड़ कूच किया।
इतने में समझ गया खिलजी,
मेवाडियों की चतुरायी,
डोलियों में होकर सवार,
उसकी मौत है आयी।
टूट पड़ी जफर की सेना,
वीर गोरा मोर्चा संभाला,
राणा पर न आंच आए,
ऐसा व्यूह रच डाला ।
सकुशल पहुंचे राणा चितौड़
खेत रहे गोरा बादल,
विजयी पताका फहरायी मेवाड
दिल्ली गिरा मुंह की खाकर।
शौर्य की हुई जीत,
लम्पटता फिर मुंह की खायी,
राजपूती आन रह गयी,
खिलजी भागा जान बचाई।
सुषमा सिंह
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(स्वरचित एवं मौलिक)